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बरणानुयोग
धर्मनिम्बा करण प्रायश्चित्त
वत्सारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा
(पुनः) चार जाति के पुरुष कहे गये है, जैसे - १. पियधम्मे नाममेगे, नो बढधम्मे,
(१) कोई प्रिय वर्मा है, पर दृढ़धर्मा नहीं है। २. वधम्मे नाममेगे, नो पियधम्मे,
१) कोई दृदृधमा है, पर प्रियधर्मा नहीं है। ३. एगे पियधम्मे कि, वधम्मे वि,
(३) कोई प्रियधर्मा भी है और दूधमा भी है। ४. एो नो पियधम्मे, नो दधम्मे।'
(४) कोई न प्रियधर्मा ही है और न दृधर्मा ही है। -ठाणं. अ. ४, उ. ३, सु. ३१६ धम्मनिंदा पायच्छित्तं
धर्मनिन्दाकरण प्रायश्चित्त६६.जे भिय धम्मस्स अक्षण्यं वयह ययंत वा साइज्जद्द । त सेव- ६६. जो भिक्षु धर्म की निंदा करता है, करवाता है या करने वाले माणे आषस्जद चाउम्मासियं परिहारहाणं अणुग्धाइयं । वा अनुमोदन करता है। वह भिक्षु गुरु चातुर्मारिक परिहार
-नि. उ. ११, मु.९ प्रायश्चित स्थान का पात्र होता है। अधम्मपसंसा पायच्छित्त
अधर्मप्रशंसाकरण प्रायश्चितजे भिक्य अधम्मस्स वष्णं प्रपद बयंतं वा साइज्जा । तं सेव- जो भिक्षु अधर्म की प्रशंसा करता है. करवाता है या करने भाणे आवज्जा चाडम्मासियं परिहारहाणं अणु घाइयं । वाले का अनुमोदन करना है। वह भिक्षु गुरु चातुर्मासिक परिहार
-नि. उ. ११, सु. १० प्रायश्चित्त स्थान का पात्र होता है।
१ वव. उ०१०, सु०११-१३