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________________ ७३०] घरगानुयोग गुप्ति का स्वरूप सब ३११-३१४ www www गुप्ति गुप्ति-अगुप्ति-१ गुत्तिओ सरूवं गुप्ति का स्वरूप३११. एयाओ पंचसमिईओ, समासेण विवाहिया । ३११. ये पांच समितियाँ संक्षेप में कही गई हैं। यहाँ से क्रमशः एतो व तओ गुत्तीओ, बोच्छामि अणुपुष्वसो ।। तीन गुप्तियाँ कहूँगा। -उत्त. अ. २४, मा.१६ गुती भियत्तणे वुत्ता सुभत्येसु सम्वनो। अशुभ व्यापारों से सर्वथा निवृत्ति को गुप्ति कहा है। -~-उत्त. अ. २५, गा. २६ (२) तिगुत्तो संजओ त्रिगुप्ति नंयत्३१२. हत्थसंजए पायसंजए, वायसंजए संजइबिए। ३१२. जो हाथों और पैरों को यतनापूर्वक प्रवृत्त करता है, अजनप्परए सुसमाहियप्पा, सुत्तरचं च बियाणइ जे स भिक्खू ॥ वाणी में पूर्ण विवेक रखता है, इन्द्रिपों को पूर्ण संयत रखता है। -दम. अ. १०, गा. १५ अध्यात्म भाव में लीन रहता है, भली-भांति समाधिस्थ है और जो सूत्र व अर्थ का यथार्थ रूप से शाता है वह भिक्षु है। गुत्ति अगुत्तिप्पगारा गुप्ति तथा अगुप्ति के प्रकार३१३. तओ गुत्तिओ पण्णताओ, तं जहा २१३. गुप्ति तीन प्रकार की कही गई है(१) मणगुसी, (२) बहमुत्ती, (३) कायगुत्ती'। १. मन गुप्ति, २. वचन गुप्ति और ३. कायगुप्ति । संजयमणुस्साणं तओ प्रतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा---- संयत गनुष्यों के तीनों मुप्तियाँ कहीं गई है(१) मणगुत्ती, (२) वइगुत्ती, (३) कायगुसो । १. मन गुरित २. वचन गुप्ति और ३. कायगुप्ति । तओ अगुत्तीओ पण्णत्ताओ. तं जहा अगुप्ति तीन प्रकार की कही गई है(१) मणअगुती, (२) वइअगुती, (३) कायअगुत्ती । १. मन अगुम्सि, २. रचन-अगुप्त, ३. काय-मगुप्ति । -साण. भ. ३, उ. 1,सु. १३४ मन-गुप्ति-२ गणगुत्ती सरूवं३१४. संस्भ समारम्भे आरम्भे य तहेष य । मणं पवत्तमाण तु निमत्तेज्ज जयं जई ।। -उत्स. अ. २४, गा. २१ मन गुप्ति का स्वरूप३१४, यतनाशील यति संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ में प्रवर्तमान मन का निवर्तन करे । १ आव० अ० ४, सु० २२ । २ मन, वचन और काया के निग्रह को गुप्ति और अनिग्रह को अप्ति कहते है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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