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________________ सूत्र ३०७-३१० उच्चार-प्रस्रवण भूमि के प्रतिलेखन न करने के प्रायश्चित्त सूत्र चारित्राचार : परिष्ठापनिका समिति [७२९ उज्याहिजमाणे सपायं महाय, परपायं वा, जाइत्ता उच्चार- मूत्र के वेग से बाधित होने पर अपना पात्र लेकर या दूसरे के पासवणं परिवेत्ता, अणुगए सूरिए एई एतं वा पात्र को याचना कर उनमें मल-मूत्र त्याग करके जहाँ सूर्य का सहजह ताप नहीं आता है ऐसे स्थान पर परठता है, परठवाता है या परटने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेषमाणे आवजह मासिय परिहाराषं उग्धाइय। उसे उद्घातिक मासिक परिहारल्यान (प्रायश्चित्त) आता है। -नि.उ. ३ 7.50 उच्चार-पासवण भूमि अउिलेहणस्स पाच्छित्त सुत्ताई- उच्चार-प्रस्रवण भूमि के प्रतिलेखन न करने के प्राय श्चित सूत्र३०८, जे भिक्यू साणुप्पए उपचार-पासवणभूमि न पहिलेहेछ न ३०८. जो भिक्ष, चतुर्थ प्रहर में उच्चार-प्रवण (मल-मूत्र पशिलेहेंतं वा साइज्जइ । त्यागने) की भूमि का प्रतिलखन नहीं करता है, नहीं करवाता है या नहीं करने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्यू तओ उच्चार-पासवणभूमिओ न पडिलेहेइ न पडि- जो भिक्षु तीन उच्चार-प्रत्रवण भूमियों का प्रतिलेखन नहीं लेहेंतं वा साइज्जइ। करता है, नहीं करवाता है या नहीं करने वाले का अनुमोदन बारता है। तं सेवमाणे आवज्जइ मासिय परिहार ठाण उम्घाइयं । उसे उदयपालिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चिन) जाता है । --नि. ४, सु. १०२-१.३। उच्चाराइ अविहिए परिदवणस्स पायच्छित सुत्तं- अविधि से मल-मूत्रादि परठने का प्रायश्चित्त सूत्र३०६. जे भिक्खू उच्चार-पासवर्ण अग्रिहीए परिट्ठवंड, परिवेत ३०६. जो भिक्ष, उच्चार-प्रश्रवण (मल-मूत्र) को अविधि से परवा साहजह। ठता है, परवाता है या पररने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आषाजा मासियं परिहारानं उमघायं। उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। '-नि. उ ४, सु. १०५ थंडिल सामायारीणं अकरणस्स पायच्छित्त सुताई- स्थंडिल सामाचारी के पालन नहीं करने के प्रायश्चित्त सूत्र३१०. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिवेत्ता न पुंछ, न पुंछतं ३१०. जो भिक्ष, उच्चार-प्रस्रवण का त्याग करके (मलद्वार को) वा साइज्ज। नहीं पूंछता है, नहीं पुंछवाता है या नहीं पूंछने वाले का अनु मोदन करता है। जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिवेसा कठेप वा, किलि- जो भिक्ष उच्चार-पत्रवण क त्याग करके काष्ट से, बांस वेण वा, अंगुलियाए वा, सलागाए वा, पुंण्ड, पृष्ठतं वा की खपच्ची से, अंगुली से या शल का से, पूंछता है. पुंछवाता है साइज्जद। यो पूंछने बाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू उच्चार पासवर्ण परिवेसा णायमह, णायमंतं जो भिक्ष उच्चार-प्रस्रवण का श्याग करके आचमा नहीं वा साइजई। करता है, नहीं करवाता है या नहीं करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिवेत्ता तत्थेष आयमइ, जो भिक्ष उच्चार प्रत्रवा का त्याग कर वहीं आचमन आयमतं वा साइन। करता है, बरवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू उच्चार-पासवर्ण परिवेता महबूरे आयमइ जो भिक्ष, उच्चार-प्रसवण का त्याग करके अधिक सूर आयम वा साइजइ। जाकर आचमन करता है, करवाता है या करने वाले का अनु मोदन करता है। जे भिक्खू उच्चार-पासवर्ण परिक्षेसा परं तिष्हं गावापुराण जो भिक्ष उच्चार-प्रसवण का त्याग करके तीन से अधिक आयमइ, आयमंतं वा साइजह । नावापूर (पसली) से आचमन करता है. करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजद मासियं परिहार ठाणं उम्पादयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त आता है। नि, उ. ४, सु. १०६.१९१
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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