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४)
आच्च सवयं सा परा । सच्चा नेलाजयं मागं बहने
परिभस्सई ॥
चरणानुयोग
सुई च स सद्धं च योरियं पुण दुल्लहं । मध्ये रोषमाणा वि, "नो एवं" पहि
कालं
लहे तु माणूसे भवे, चिरकालेण वि पाणिणं । दांडा विवागो, समयं गोवममा समाय ॥
कालं
विकामइगलो, उनको जीवो उ सबसे । संाईयं समयं गोयम ! मामाए
निप्राप्तिहेतुम
--- उत्स. अ. ३, गा. ९-१०
ओ
महओ
को जीव संाईयं समयं गोयम ! मा पमावए ॥
बाई
उनकोसं जीवो उ सबसे । समर्थ गोयम | भापमायए ।।
उनको जीव संगते । संखाईयं समयं गोयम | मा समाय ॥
अणसहकाय मगओ, उनकोसं जीवो ज सबसे । कालमणन्तपुर समय गोयम मा पाए ।
बेन्दिय कायमओ, उर्वको जीयो कालं संविज्जल प्रियं समयं गोराम ! मा
सबसे । पमायए ॥
उपो भयो उ सबसे कालं संखिज्जसलियं समयं गोयम ! मा पाए ।
रिकामा उनको जीयो सबसे विजयिं समयं गोपथ ! या पमायए
।
चिक्को थीयो सतऽभवन् गहने, समयं गोयम ! मा वायए ॥
देवे मेरइए य अहगओ, उनकोसं जीयो उ सबसे । steeeeeerहणे, समयं गोयम ! मा पमायए ॥
सूत्र ५९
कदाचित् धर्म सुन लेने पर भी उसमें श्रद्धा होना दुर्लभ है। बहुत लोग मोक्ष की ओर ले जाने वाले मार्ग को सुनकर भी उससे भ्रष्ट हो जाते हैं ।
श्रुति और श्रद्धा प्राप्त होने पर भी संयम में वीयं ( पुरुषार्थ ) होना अत्यन्त दुर्लभ है। बहुत लोग मंयम में रुचि रखते हुए भी उसे स्त्रीकार नहीं करते ।
सब प्राणियों को चिरकाल तक भी मनुष्य जन्म मिलना दुर्लभ है। कर्म के विपाक तीव्र होते हैं, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर
पृथ्वीकाय में उप दुवा जीव अधिक से अधिक अपकाल तक वहाँ रह जाता है, इसलिए है गौतम ! तू क्षण भर भी
प्रमाद मत कर ।
अप्काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक असंख्यकाल तक वहाँ रह जाता है, इसलिए है गौतम ! तू क्षण भर भी
प्रमाद मत कर ।
तेजस कार्य में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक असंख्य काल तक वहाँ रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी
प्रमाद मत कर ।
वायु-काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक असंख्य काल तक वहाँ रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी
प्रमाद मत कर ।
वनस्पति-काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक दुरन्त अनन्त काल तक वहाँ रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तु क्षण भर भी प्रमाद मत कर
वीद्रिय-काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक संख्येयकाल तक नहीं रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भी
प्रमाद मत कर ।
त्रीद्रिय-काय में उत्पन्न हुमा जीव अधिक से अधिक संख्येयकाल तक बहीं रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तु क्षण भर भी प्रमाद मत कर
चतुरिन्द्रिय-काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक संख्येय-काल तक वहाँ रह जाता है। इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर ।
पंचेन्द्रिय-काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक सातआय जन्म ग्रहण तक वहाँ रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
देव और नरक-योनि में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक एक-एक जन्म-ग्रहण तक वहाँ रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।