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पोच्छकावि के वितरण का विवेक
बारित्राचार : एवणा समिति
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(4) जे भिक्खू रयहरणं पोसटु धरेद, धरतं वा साइग्मइ। . जो भिक्षु रजोहरण को अपने शरीर के प्रमाण से अधिक
दूर रखता है, रस्नदाता है, रखने वाले का अनुमोदन करता है। (8) जे मिक्यू रयहरणं अहि, अहितं वा साइम्गह। . जो भिक्षु रजोहरण पर बैठता है, बिठनाता है, बैठने वाले
का अनुमोदन करता है। (१०) जे मिक्लू रयहरणं उस्सीसमूले सुवेइ, उस वा १०. जो भिक्षु रजोहरण को शिर के नीचे रखता है, रखसाइजह।
वाता है, रखने वाले का अनुमोदन करता है। (११) जे मिक्बू रपहरणं सुपट्ट, तुपट्टतं वा साइजद। ११. जो भिक्षु रजोहरण पर सोता है, सुलाता है, सोने वाले
का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे बावज्जा मासिय परिहारद्वाणं उग्धाइय। उसे उपातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है।
-नि. उ. ५, सु. ६७-७७ गोच्छगाईणं वियरण विवेगो
गोच्छकादि के वितरण का विवेक२७४. निग्गंयं गाहावा कुलं पिंडवाय पडियाए अगुपविट्ठ २७४. निम्रन्थ गृहपति-कुल में गोचरी के लिये प्रवेश करने पर
केह, दोहिं गोम्छग रयाहरण चोलपष्टग-कंबल-सट्ठी संथारगेहि कोई गृहस्य उसे दो गुच्छक (प्रजनी] रजोहरण, चोलपट्टक, कंबल, जानिमंतेजा
लाठी और संस्तारक (बछौना) ग्रहण करने के लिए उपनिमंत्रण
करे"एग आउसो ! अप्पमा परिभुजाहिं एवं बेरार्ण वलयाहि" "आयुष्मन् श्रमण ! (इन दोनों में से एक का आप स्वयं से य तं पडिग्गाज्मा तहेव-जाव-तं नो अपणा परिसुन्जेम्जा, उपयोग करें और दूसरा स्थविरों को दे देना।" इस पर वह नो अन्नेसि दावए सेस तं चेव-जाव-परिद्वावेयवे सिया। निग्रन्थ उन दोनों को ग्रहण कर ले। शेष सारा वर्षन पूर्ववत् कहना
चाहिए, यावत्- उसका न तो स्वयं उपयोग करे और न दूसरे साधुनों को दे, शेष सारा वर्णन पूर्ववत समझना-यावत्-उसे
परठ देना चाहिए। एवं तिहि-जाव-दसहि गोच्छग----रयहरण-चोलपट्टग लट्ठी इसी प्रकार तीन-चावत्-पस गुच्छक रजोहरण बोलपट्टक, कंबल-संथारहि। --वि. सु. ८, उ, ६, सु.५ कम्मल, लाठी और संस्तारक तक का कपन पूर्व के समान कहना
चाहिए।
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, एवं जहा पडिग्गवत्तव्वया भगिया एवं गोच्छग-रयहरण-चोलपट्टग-कंबल-लट्ठी-सयारगेहि बत्तन्वया य भाणियवा-आव-दतहिं मथारएहि उवनिमंतेज्जा-जाव-रिट्ठावेयच्चे सिया। इस सूचना सूत्र के अनुसार यह पाठ व्यवस्थित किया है । यह सूचना सूत्र देखें पात्र प्रकरण में ।
-वि. सु.८, 3. ६, सृ.६