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________________ (४) आदान-निक्षेप समिति का स्वरूप-१ आयाण भंड-मत्तणिक्खेवणसमिइ सरूवं आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति का स्वरूप२७५. जे पि य समणस्स सुविहियस्स सजिग्गहधारिस्म भवति २७५ पात्रधारी सुविहित साधु के पास जो भी काष्ट के पात्र, भायण-मंडोवहि-उवगरणं । मिट्टी के पात्र, उपधि और उपकरण होते हैं, जैसे(१) पडिगहो, (२) पादबंधण. २. पाप-बन्धन, (३) पादकेसरिया (४) पादठवणं च, ३. पात्र केसरिका, ४, पात्रस्थापनिका. (५-७) पबलाई तिनंव, (८) रयताणं च, ५-७. तीन पटल, ८. रजस्त्राण, (E) गोच्छओ, (१०-१२) सिन्नच म पच्छावं, ६. गोच्छक, १०-१२, तीन प्रच्छादक (१३) रयोहरणं, (१४) घोल पट्टक, १३. रजोहरण. १४. घोलपट्टक, (१५) मुहर्णतकमादियं एवं पि नंजमस्स उबवू हणट्ठमाए १५. मुखबस्त्रिका आदि ये सब संयम की वृद्धि के लिए होते वायायव-समसग-सीय परिरक्षणढाए। हैं तथा प्रतिकून वायु, धूप, डांस-मछर और शीत से रक्षण के लिए हैं। उवगरणं एग-दोस-रहियं परिहरियय्वं संजएण। इन सब उपकरणों को राग और डेप से रहित होकर साधु को धारण करने वाहिए। निच्वं पडिलेहण-पप्फोडण-पमन्जणाए, अहो य राओ य सदा इनका प्रतिलेखन, प्रस्फोटन और प्रमार्जन करना अप्पमतेम होइ सततं निक्लिवियस्यं च गिहियध्वं च चाहिए । दिन में और रात्रि में निरन्तर अप्रमत रहकर भाजन, मायण-मंडोबहि-उक्मरण। -पह. सु. २. अ. ५, सु. भाण्ड, उपधि और उपकरणों को रखना और ग्रहण करना चाहिए। उवगरण धारण कारण उपकरण धारण के कारण२७६. पिबत्यं व पायं व, कंबलं पायपंछणं । २७६. साधु जो भी वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादत्रोंशन (आदि तपि संजम सज्जट्ठा, धारति परिहरति य । उपकरण) रखते हैं उन्हें मंयम की रक्षा के लिये और लज्जा - दस. म. ६, गा. १६ (निवारण) के लिए ही रखते हैं और उनका उपयोग करते हैं। सव्व भंडग संजुत्त गमण विही सर्व भण्डोपकरण सहित गमन विधी२७७. से भिक्खू वा भिक्खूणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए २७४. भिक्षु या भक्षुणी गृहस्थ के घर में आहार के लिए जाना पविसितुकामे सव्वं मंडगमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडित चाहे तो सर्व भण्डोपकरण लेकर ही जाये और आवे। याए णिक्खमेज्ज वा पविसेज वा। से मिक्खू वा भिक्खूणी वा बहिया विहार भूमि वा विद्यार- भिक्षु या भिक्षुणो उपाश्रय से बाहर की स्वाध्याय भूमि में भूमि वा णिवलममाणे वा, पविसमाणे या सर्व मंकामाचाए या मलोत्सर्ग भूमि में जाता हुमा भी सवं भण्डोपकरण लेकर ही बहिया विहार-भूमि वा बियार-भूमि वा जिमखमेज वा, जावे और आवे। पविसेज्ज वा। १ अन्य स्थविर के निमित्त लाये गये गोच्चक, रजोहरण, कंबलादि के सन्दर्भ हेतु देखिए रजोहरणषणा ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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