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________________ ७१०] परगानुयोग एषणीय रजोहरन सब १७२-२७३ रजोहरण एषणा [रजोहरण एषणा का स्वतन्त्र प्रकरण आचारोग में नहीं है। आगम में जहाँ-जहाँ रजोहरण सम्बन्धी स्वतन्त्र सूत्र मिले हैं वे इस प्रकरण में संकलित किये गये हैं । अन्यत्र जहां-जहाँ रजोहरण का कथन है उन सबके स्थल निर्देश गेचे अंकित किये गये हैंकप्प. उ. ३, मु. १४-१५ दस. म. ४, सु. ५४ पह.सं.१,सु. ११ प्रश्न. सं. ५, सु.5 नि. उ. ४, सु. २४ आव. अ.४] एसणिज्ज रयहरणाई एषणीय रजोहरण२७२. कप्पह निम्नमाण वा निमाथीण वा-इमा पंच रयहरणाई २७२. निग्रंथों और निर्ग्रन्थियों को इन पाँच प्रकार के रजोहरणो धारितए वा, परिहरितए वा, तं जहा को रखना और उनका उपयोग करना कल्पता है। यथा(१) ओरिणए, १. औणिक-भेड़ों की ऊन से निष्पन्न) रजोहरण । (२) उट्टिए, २. बौष्टि-ऊँट के केशों से निष्पन्न) रजोहरण । (३) सागए, ३. सानक - (सन के बल्कल से निष्पान) रजोवरण | (४) वन्वाचिप्पए, ४. वरचाचिपक-(बच्चक नानक घास से निष्पन्न) रजोहण । (५) मुंजचिप्पए नार्म पंचमे। -कप्प. उ. २, सु. ३० ५. मुंजचिप्पक--(मुंज से निष्पन्न) रजोहरण । रयहरणस्स पायच्छित्त सुताई रजाहरण सम्बन्धी प्रायश्चित्त सत्र२७३. (१) भिमखू अतिरेग-पमाणं रयहरगं धरेड. घरतं वा २७३. १. जो भिक्षु प्रमाण से अधिक रजोहरण रखता है, रखसाइजह। वाता है, रखने वाग्ने' का अनुमोदन करता है। (२) जे भिमस्तू सुटुमाई रमहरण-सोसाइं करेइ, करेंतं वा २. भिक्षु रजोहरण की फलिया सूक्ष्म करता है, करवाता है, साइबह। करने वाले का अनुमोदन करता है। (३) मे भिक्खू रयहरणं कंजूमगबंधेणं बंधड, बंधतं वा ३. जो भिक्षु रजोहरण को वस्त्र लपेट कर बांधता है, बंधसाइग्नह। वाता है, बाँधने वाले का अनुमोदन करता है। (४) जे भिक्खू रयहरणस्स अविहीए बंधा, बंयंत वा ४. जो भिक्षु रजोहरण को अविधि से बांधता है, धवाता साइब्जा। है, बांधने वाले का अनुमोदन करता है। (५) जे मिक्सू रयहरणस्स एक्कं बंध देइ, ३ वर५. जो भिक्ष रजोहरण को एक बंध देता है, दिलाता है, देने लाइसजा। __ वाले का अनुमोदन करता है। (६) मिक्यू श्यहरणस्स परं सिहं बंधाणं देह, वैतं वा ६.जो भिक्षु रजोहरण के तीन से अधिक बंध देता है, दिलाता है, देने वाले का अनुमोदन करता है। (७) भिक्खू त्यहरणं अणिसट्टघरेघरसं या सारजह। ७.जो भिनु आगम विरुद्ध रजोहरण को रखता है, रखवाप्ता है, रखने वाले का अनुमोदन करता है। १ हरई रओ जीवाण, बझं अभिन्तरं च ज तेणं । रथहरणति पवुच्चइ, कारणमिद कज्जीवयाराको । संयम जोगा इत्थं, रओहरा तेसि कारणं ने पं । रयहरणं त्वयारा, भण्णइ सेणं रओकम्मं ॥ -पिण्डनियुक्ति टीका बाह्य रज और आभ्यन्तर कर्मरज का जो हरण करता हो वह कारण में कार्य का उपचार करके उसे रजोहरण कहा है। योगों के संयम से जो कर्मरज का हरण करने में कारणभूत है बह रजोहरण उपचार से माभ्यन्तर रज का हरण करने बाना है। २ जाग..,...सु.४४६।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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