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________________ ..] धरणानुयोग २२. विहित स्थानों पर पात्र मुलाने का विधान परिग्गह आयावणविहित ठाणा २५१. से भिक्खू बा. भिक्खुणी या अभिरुंखेज्जा पार्थ आयावेतए वा पयायेत वा तहपगार पायें से तम्पदा एवंतमवक्क मेज्जा एगतमवक्कमिता अहे शाम थंडिल्लंसि वा जाब गोमयरासिंसि वा अष्णतरंसि वा तहम्यगारसि थंडिल्लंस पहिले पहिले मयि मयि ततो जयामेव पायं आया वेज्ज या पथाबेडज वा । पात्र आतापन के विधिनिषेध – ७ " - आ. सु. २, ६, उ. १, सु. ६०० (घ) परियह आताषण सिकाईवृणी या से पाया तयार पा नो अयंतर हिया -जाद मक्कासंताणए आयरवेज्ज या पयावेज्ज वा । सेवाविपार्थ आयात वा पयावेत व तदगारं पायं पूर्णसि वा जाव-कामजलंसि वा अण्णयरंसि वा तहम्पगारंसि अंतलिय जायंसि दुबद्ध-जाव- चलाचले जो आवावेज्ज या पत्रावेन्ज वा । से मिफ्लू वा. भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा पार्य आपल निजामति वा, अष्णतरंसि वा तहम्यगारंसि सलिखजायंसि युद्ध - जाव चलाचले णो आया वेज्ज वा पयावेन्ज या । सेभिक्खू या भिक्खुणी वा अभिकखेल्ना पाय लावावेसर या पात्तए था, वहपगारं पायं संसि वा जाव हम्मिय वातरंसि या यासि अंत ब- नाव - चलाचले णो आयवेज्ज वा पयाजेज्ज वर । - आ. सु. २, अ. ६, उ. १, सु. ६०० () सासु पनि आवावयास पायच्छित सुताई २५३.रहियाए पीए परिणा पावेज वा आधावतं वा ययावंत या साइज मिसमिकाए बीए कियाहं आया पवेज्ज वा आयात पर पयावेत या साइज्जइ जे भिक्खू ससरकखाए पुढीए पडिग्ग्रहं आया वेज्ज वा, पयावेज्ज वा आयावेतं वा स्यातं वा साइज्जद जेवढी पनि जावावा. परवेज वर आयावेतं वा पयायेतं वा साइज्जइ । सूत्र २५१-२५३ को wwwwwwww विहित स्थानों पर पात्र सुखाने का विधान २५१. भिक्षु या भिक्षुणी पात्र जे धूप में सुखाना चाहे तो पात्र को लेकर एकान्त में जाये, वहाँ जाकर देखे कि जो भूमि अग्नि से दग्ध हो - थावत् (सूखे ) गोवर के ढेर बाली हो या अन्य भी ऐसी स्थंडिल भूमि हो उसका भलीभांति प्रतिलेखन एवं मोहरणादि से प्रमार्जन करके उत्पा सुखाए । निषिद्ध स्थानों पर पात्र सुखाने का निषेध - पा२२. या मिणी पात्र को धूप में खाना चाहे तो वह एवं पात्र की पृथ्वी के निकट की अति पृथ्वी पर - यावत्-मकड़ी के जाले हों ऐसे स्थान में न सुखाये । भिक्षु या भिक्षुणी पात्र को धूप में सुखाना चाहे तो वह उस प्रकार के पात्र को ठूंठ पर - यावत् स्नान करने की चौकी पर अन्य भी इस प्रकार के अन्तरिक्ष जात (आकाशीय) स्थान पर जो कि भलीभांति बंधा हुआ नहीं है यावत् चलाचल है, वहाँ पात्र को न सुखाये । भिक्षु या भिक्षुणी यदि पात्र को धूप में मुखाना चाहे तो इंट की दीवार पर पायादि पर या अन्य भी प्रकार के अन्तरिक्ष जात (आकाशीय) स्थान पर जो कि भलीभाँति बँधा हुआ नहीं है यावत् चलाचल है, वहाँ पात्र को न सुखाए । भिनु या भिक्षुणी पात्र को धूप में मुखाना चाहे तो उस पात्र को स्तम्भ परयावत् महल की छत पर अन्य भी इस प्रकार के अन्दर जात (बाकाशीय) स्थानों पर जो कि बंड - यावत् चलाचल हो वहाँ पात्र को न सुखाए । निषिद्ध स्थानों पर पात्र सुखाने के प्रायश्चित सूत्र२५३. जो भिक्षु वित्त पृथ्वी के निकट की अचित पृथ्वी पर कोई पाता है या जाने वाले का अनुमोदन करता है । जो पृथ्वी पर पात्र को सुनता है. मनाता है या सुखाने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु सनित्त रज युक्त पृथ्वी पर पात्र को सुखाता है, खानेवाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु सचित मिट्टी बिखरी हुई पृथ्वी पर पात्र को सुनाता है, बाता है या पाने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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