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________________ सूत्रे २५३-२५४ प्रातिहारिक पात्र ग्रहण करने में माया करने का निषेध चारित्राचार एषणा समिति ने भिक्खू चिसमंताएं पुढबीए पहिं आया वेज्ज ना, गयाबेज्ज बा, आयात वा पयातं वा साइज्लइ भबिताए लिए भाकपावेज्ज वा आयात या पयावेत या साइज्जइ । जे हुए परिवा वेज्ज या भयावेतं वा पयायतं वा साइज्जइ । जे भिक्खू कोलावासंसि का वालए जीवरइट्टिए, सअंडे-जान माता परिवशवेन वा वेदना आयातं वा पयातं वा साइज्जइ । जे भिक्खु थूर्णसि वा जाव- कामजलंसि वा अण्णयरंति वा राहत्यगारसि अंत लिखजायंसि दुबले - जाय- चलाचले पडिग्गहं आयावेज वा पयाबेज्ज या, आयातं वा पयातं वा साइज । जे भिक्खू संयंसि वर जाव- हम्मियतलंसि वा अध्ययरंसि वा तहष्पगारसि अंतलिषखजायंसि नुब्बये जाव चलाचले पहिं आयवेिज्ज वा पयावेज वा आयावेत वा पयायेतं वा तरइज्जइ । जे भिक्खू कुलियंस वा जाव-लेलुंसि वा अण्णयसि वा जो भिक्षु ईंट की दीवार पर यावत् — शिलाखंड आदि सम्यगारसितल जानेपर भवा जन्य भी ऐसे अंतरिक्ष जात (आकाशीय) स्थान पर यायावेज श. पयावेज वा आयातं वा पयास वा जो कि भलीभाँति बंधा हुआ नहीं है - यावत् चलाचत है वहाँ पान को सुखा है, सुवाता है या युवाने वाले का अनुमोदन करता है । साहज्जइ । तं सेवमाणे आवज्जद मासियं परिहारद्वाणं उधाइयं । ---नि. उ. १४. सु. २४-३४ भिक्षु पृथ्वी पर पात्र को सुखाता है, ता है या सुखाने नाते का अनुमोदन करता है। परपोता है. रा अपोदन करता है। है या सुखाने वाले जो भिक्षु सहित शिलाखंड आदि पर पान को सुखाता है, सुखाता है या सुखाने वाले का अनुगोधन करता है। पर जो भिक्षु दीमक आदि जीन युक्त तथा अंयुक्त स्थान यावत् - मकड़ी के जाले युक्त स्थान पर पात्र को सुखाता है, सुजाता है या सुखाने वाले का अनुमोदन करता है। पर यावत् स्नान करने की चौकी पर अथवा अन्य भी ऐसे अंतरिक्ष जात (आकाशीय) स्थान पर जो कि भलीभाँति बँधा हुआ नहीं है— यावत् चलाचल है वहाँ पात्र को सुखाता है, सुखवाता है या सुखाने वाले का अनुमोदन करता है। पारिहारिय पायगहणे माया जिसेहो २५४. से एगइओ मुत्तगं सुहागं पारिहारिथं पाये जाता एगाहेण वा जान पंचाहेण वा विश्ववस्थि विप्पवसिय उवा गच्छेजा, तहगारं स संधियं पायें नो अपणा व्हेज्जा नो अन्नमनस बेजा, नो पामिच्वं कुज्जा, मो पाएण पायपरिणाम करेजा, जो भिक्षु स्कंध पर - यावत् महल की छत पर अथवा अन्य भी ऐसे अंतरिक्ष जात (आकाशीय) स्थान पर जो कि भलीभांति बँधा हुआ नहीं है - घावत् चलाचल है वहीं, पात्र को सुखता है, सुखवाता है या सुखाने वाले का चनुमोदन वारता है । पात्र प्रत्यर्पण का विधि-निषेध-द toot - उसे उपावितामसिक परिहारस्थान ( जाता है । प्रातिहारिक पात्र ग्रहण करने में गाया करने का निषेध-२५४. कोई एक भिक्षु किसी अन्य भिक्षु से अल्पकाल के लिए प्रातिहारिक पात्र की याचना करके एक दिन यावत् पाँच दिन कहीं अन्यत्र रह रहकर पात्र देने बावे तो पात्रदाता मिथु उस लाये हुए पात्र की क्षतविक्षत जानकर न स्वयं ग्रहण करे, न दूसरे को दे, न किसी को उधार दे न उम पात्र को किसी पात्र के बदले में दे । + -
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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