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________________ सूत्र २४५-२५० मगत पात्र धारण विधान बारित्राचार : एषणा समिति [tt नो से कपर ते अणापुग्छिय, अणामंतिय अन्नमन्नेसि बाई जिनके निमित्त पात्र लिया है उन्हें लेने के लिए पूछे बिना वा अगुप्पदाउ था। निमन्त्रण किये बिना दूसरे को देना वा निमन्त्रण करना नहीं कल्पता है। कम्पइ से ते आपुछिय आमंतिय अन्नमसि वाउं या उन्हें पूछने व निमन्त्रण करने के बाद अन्य किसी को देना अणुप्पदा वा -यव. उ. ८, गु. १६ या निमन्त्रण करना कल्पता है । पान धारण विधि-निषेध-६ सवटय पात्तधारण बिहाणं सवस्त पात्र धारण विधान२४६. कप्पइ निगांधाणं सवेष्टय लाउय धारेत्तए वा परिहरिसए २४६. निन्य साधुओं को मवन्त (डन्ठल सहित) अलाबु (तुम्बी) वा। रखना या उसका उपयोग करना कल्पता है। कप्पट निग्गंयाणं सदेण्टयं पायकेसरिय" धारित्तए वा निग्रंन्ध साधुओं को सवन्त पात्रकेसरिका रखना या उसका परिहरितए वा। -कप्प. उ. ५, सु. ४१, ४३ उपयोग करना कल्पता है । सर्वेटय-पात्त-धारण-णिसेहो सवन्त पात्र धारण निषेध२४ . नो कप्पद निग्गंधौणं सवेण्टम लाखयं धारेतए पा परि- २४७. निपन्थी साध्वियों को सवृत्त (उन्ठल-सहित) मलाबु हरित्तए वा।' (तुम्बी) रखना या उपयोग करना नहीं कल्पता है। नो कम्पह निमयीमं सवेण्टयं पायकेसरिय धारिसए वा निग्रंथी साध्वियों को सवन्त पात्रकेसरिका रखना या उसका परिरित्तए था। -कप्प. उ. ५, सु. ४००४२ उपयोग करना नहीं कल्पता है। घडिमत्त धारण विहाणं घटिमात्रक धारण का विधान२४८. कप्पा निग्गंधीणं अन्तोलितं घरिमतय धारितए वा परि- २८. निम्रन्थियों को अन्दर की ओर लेप किया हुआ घटीमात्रक हरित्तए वा। -कप्प. उ. १, सु.१७ (भूत्र-विसर्जन पात्र) रखना और उसका उपयोग करना कल्पता है। घडिमत्त धारण णिसेहो घटिमात्र धारण का निषेध२४६. नो कप्पड निरगंयाणं अन्तोलितं घग्नित्तय चारित्तए वा २४८, नियन्त्रों को अन्दर की ओर लेग किया इमा घटीमात्रक परिहरितए वा। --कप्प. उ. १, सु. १८ रखना और उसका उपयोग करना नहीं कल्पता है। कप्पणीय पाय संखा कल्पनीय पात्रों की संख्या२५.. कप्पद निम्मंथाणं तिनि पायाई घउत्थं उड धारिसए। २५०. नियन्य को तीन पात्र और चौथा मात्रक रखना कल्पता है। कप्पर निगची पत्तारि पाया पंचमं सूर्ण पारितए। नियन्थियों को चार पात्र लोर पांचवा मात्रक रखना -कप्प. उ. ५, सु. ३० कल्पता है । १ तुम्बी प्रमाण लकड़ी के एक सिरे पर वस्त्र खण्ड को छोधकर पात्र आदि के भीतरी भाग के पौछने वाले उपकरण को "पात्र केसरिका" कहते है। २ तुम्बी के ऊँचे उठे हुए हन्टल को देखने से भी कदाचित् साध्वी के मन में विकार पैदा हो सकता है अतः उन्ठलयुक्त तुम्बी के रखने का निषेध किया गया है। ३ यह सूत्र बहत्वल्पसूत्र की एक प्रति में मिला है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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