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१८]
परमानुयोग
पात्र के ग्रहण का निषेध
सूत्र २४३.२४५
पडिग्गहस्स गहण विहि-णिसेहो
पात्र के ग्रहण का विधि-निषेध२४३. से मिक्सू दा, भिक्खूणी वा से जं पुण पायं जाणेज्जा सर २४३. भिक्षु या भिक्षुणी पात्र के सम्बन्ध में जाने कि अन्डों से
हार-संतान हाणारं यं अफासुर्य-जाद-को परिगा- -यावत्-मवड़ी के जालों से युक्त है, तो उस प्रकार के पात्र हेज्जा।
को अप्रासुक जानकर-यावत्--ग्रहण न करे। से मिका, मिल्लूनी वा से नं पुण पाय जाना अप्पा भिक्षु या भिक्षुणी पात्र के सम्बन्ध में जाने कि अण्डों से -जाव-संतापगं अणसं, अपिर, भघुवं, अधारजिज, यावत्-मकड़ी के जालों से रहित है, किन्तु उपयोग में आने रोइज्जतं न पचति, तहप्पगारं पाय अफासु-जाव-जो योग्य नहीं है, अस्थिर है (टिकाऊ नहीं है, जीर्ण है) अधद पनिगाहेजना।
(थोड़े समय के लिए दिग जाने वाला) है, धारण करने के योग्य नहीं है, अपनी रुचि के अनुकूल नहीं है तो उस प्रकार के पात्र
को अप्रासुक समझकर—यावत्-ग्रहण न करे । से मिक्सू वा, भिक्खूणी वा से पुण पाय जाणेज्ना अप्पर भिक्ष या भिक्षणी पात्र के सम्बन्ध में जाने कि यह पाय -जाव-संताणगं, मल, पिर, धुवं, धारणिग्णं, रोइजंतं अण्डों से-यावत्-मकड़ी के जालों से रहित है. उपयोग में इस्वति, तहप्पणारं पापं फासु-जाव-परिगाहेजा। आने योग्य है, स्थिर है, या घव है, धारण करने योग्य है, --आ. सु. २, अ. ६, उ. १, सु. ६०. (क) अपनी रुचि के अनुकूल है तो उस प्रकार के पात्र को प्रासुक
समझकर-यावत-ग्रहण करे। धारणिज्ज-अधारणिकज-पडिग्गहस्स पापच्छित्तसुत्ताई- धारण करने योग्य और न धारण करने योग्य पात्र के
प्रायश्चित्त सूत्र२४४. भिक्खू परिग्यहं अणलं, मपिर, मधुवं, अपारगिजं, २४४. जो भिक्ष कान के अयोग्य, अस्थिर, अध व. धारण करने घरेश, धरेंसं वा साइजः।
के अयोग्य ऐसे पात्र को धारण करता है, धारण करवाता है,
धारण करने वाले का अनुमोदन करता है। भिक्खू पडिग्गहं मल, घिर, धुवं, धारणिज्छ न घरे न जो भिक्ष काम के योग्य, स्थिर, धव, धारण करने योग्य घरेंसं वा साइजद।
पात्र को धारण नहीं करता है, नहीं करवाता है, नहीं करने
वाले का अनुमोदन करता है। मेवमाणे भावग्जा पाउम्मासिवं परिहारट्ठाणं उाधाइयं उसे उपातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ.१४, मु. ८-९ आता है। में मिमलू लाय-पाय चार पाय वा मट्टिया-पाय वा, जो भिक्ष, टुम्बे के पात्र को, काष्ठ के पत्र को, मिट्टी के अलं, विरं, युवं, पारगिजं परिमिविध परिभिदिय परिवेश, पात्र को पर्याप्त (काम में आने योग्य), दुड (टिकाऊ), ध्र व एवं परिट्टवेतं वा साइज्जा ।
धारण करने योग्य होते हुए भी तोड़ फोड़ कर परठता है, परठ
वाता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमा आवमा मासियं परिहारट्रागं उग्याइये।
उसे उद्घातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है।
-नि. उ. ५, सु. ६४ अइरेग पडिग्गहदाणस्स विहि-णिसेहो
अतिरिक्त पात्र देने का विधि निषेध२४५. कपर निगपाण वा, निग्ग्रंथोण या हरेगपडिग्गाहं अम- २४५. निर्गन्ध-निग्रंथियों को एक दूसरे के लिए अधिक पात्र मन्नस्स अट्ठाए दूरमवि अवाणं परिवहितए.
बहुत दूर ले जाना कल्पता है।
(अधिक पात्र लेते सनय तीन विकल्प होते हैं) "सो वा धारेस्सह,
वह धारण कर लेगा, अहं वा गं धारेस्सामि,
मैं रख लूंगा, अग्ने वा गं धारेस्सर"
(अथवा अन्य को आवश्यकता होगी तो उसे दे दूंगा।