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सूत्र २४०-२४२
श्रमणादि के उद्देश्य से निर्मित पात्र लेने के विधि-निषेध चारित्राचार : एषणा समिति
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निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थिनी पावैषणा के विधि-निषेध-३
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समणाइ उदेसिय मिम्मिय पायस्स विहि-णिसेहो- श्रमणादि के उद्देश्य से निर्मित पात्र लेने के विधि
निषेध-- २४०. से भिक्खू बा, भिक्खूणी वा से ज्ज 'पुण पाय जाणेज्जा-- २४०. विक्षु या भिक्षुणी पात्र के सम्बन्ध में यह जाने कि अनेक
बहवे समण-माहण-अतिहि-किविण-वणीमए समुदिम्स-जाव- श्रमण ब्रह्मण-अतिथि-कृपग-भिखारियों के उद्देश्य से बनाया है आहटु चेए ।
- पावत्-अन्य स्थान से यहाँ लाया है। तंतहप्पमा पपुरिनिरक. असहिगान पयिं . इस प्रकार का पात्र अन्य पुरुष को दिया हुआ नहीं हो, अपरिभुतं अणासेवियं अफासु-जावणो पजिगरहेज्जा । बाहर निकाला नहीं हो, स्वीकृत न किया हो, उपमुक्त न हो,
आसेवित न हो, उसको अप्रासुक जानकर यावत - ग्रहण
न करें। अह पुण एवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकई बहिया पोहर्ष, अत्तट्टियं यदि यह जाने कि इस प्रकार का पात्र अन्य पुरुष को दिया परिषुतं आसेवियं फासुर्य-जाव-पहिगाहेज्जा।
हुआ है, दाहर निकाला है, दाता द्वारा स्वीकृत है, उपभुक्त है, -आ. सु. २. अ. ६, तु.१, सु. ५६१(क) असेवित है. उसको प्रासुक समझाकर-यावत-ग्रहण करें। कोयाई दोस जुत्त पाय-गहण दिहि णिसेहो-- क्रीतादि दोष युक्त पात्र ग्रहण का विधि निषेध२४१. से भिक्खू वा भिवषणी वा से पुण पायं जाणज्जा - २४१. भिक्षु या भिभुगी पात्र के विषय में यह जाने कि गृहस्थ
असंजए भिक्ख परियाए कीयं बा, धोयं वा, रत्तं वा, घट्ट ने साधु के निमित्त से उसे मरीदा है, धोया है, रंगा है, घिसकर वा, मटुवा, समटुवा, संपधूवियं बा-तहप्पगारं पायं साफ किया है, चिकना या मुलायम बनाया है, संस्कारित किया अपरिसंतरकर-जाव-प्रणासेवियं अकामुय-जाव-नो पडिगा- है. धूप इत्रादि से मुनासित किया है ऐसा वह पात्र पुरुषांतरकृत हेज्जा ।
नहीं है-यावत्-किसी के द्वारा आसेवित नहीं हुआ है. ऐसे
पात्र को प्रासुक समझकर--यावत-ग्रहण नहीं करे।। अह पुण एवं जाणेज्जा–पुरिसंतरकष्टु-जाव-आसेवियं फासुयं यदि (साधु या साध्वी) यह जान जाये कि यह पात्र पुस्ता-जाव-पडिगाहेजा।
तरकृत है-यावत् -आसेवित है तो प्रामुक समझकर-यावत- आ. शु. २. अ. ६, उ. १, सु. ५६१ (ख) ग्रहण कर सकता है। कीयाइ-दोससहिय-पाय-गहणस्स पायच्छित सुत्ताई- क्रोतादि दोष युक्त पात्र ग्रहण के प्रायश्चित्त सूत्र२४२. जे भिक्खू परिगह किणेइ, किणावेइ, कीयमाहटु दिन- २४२. जो भिक्षु पात्र खरीदता है, खरीदवाता है, खरीदा हुआ मागं परिष्माहेइ, पडिमाहेंत या साइजद।। लाकर देते हुए को लेता है, लिवाता है या लेने वाले का अनु
भोदन करता है। जे भिक्खू पतिमाहं पामिश्चेद, पामिच्चावेड, पामिच्चमा- जो भिक्षु पात्र उधार लेता है, उधार लिवाता है या उधार हट्ट दिनमाण पडिग्गाहेइ, पहिगाहेंत या साइज्जह । लाकर देते हुए को लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन
करता है। जे भिक्खू पडिमाह परियट्टइ, परियट्टावेह, परियट्टियमा- जो भिक्षु पात्र को अन्य पात्र से बदलता है, बदलवाता है, हटु विज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेत का साहजह। बदला हुआ लाकर देवे उसे लेता है, नियाता है या लेने वाले
का अनुमोदन करता है। ले भिक्खू पडिग्गह अकछेज्ज अणिसिद्ध अमिहामाहटु जी भिक्षु छीना हुआ, दो स्वामियों में से एक की इच्छा दिजमाणं पडिरगाहेइ, पडिमाहेंतं वा साइज्जइ । बिना दिया हुवा, या सामने लाकर दिया हुआ पात्र लेता है,
लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवाजइ चाउम्मासिस परिहारष्ट्रःणं उमघाइयं । उसे उद्घातिका चातुर्मासिकः परिहारस्यान (प्रायश्चित्त!
-नि. ए. १४, मु. १.४ भाता है।