SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 717
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र २०३-२०७ चोरों के भय से उन्मार्ग में जाने का निषेध परं च अहारी पपिहे पहाए तस्स बसचिवाणाए णो तेसि भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा- जाव-ततो संजयशमेव गामाणुगामं इज्जेज्जा । बै - आ. सु. २, अ. ५, उ. २, सु. ५८४ विवरण करे | आमोस भएन उम्मान गमण जिसेहो२०४ मा भवानामाना माने अंतरा से विहंसिया से पुण विहं जायेज्जा- इमसि खलु विबहा त्या छेशा पोटी मार्ग में बहुत से चोर तेसि भोभो उम्मम्गेण गच्छेज्जा- जाब- ततो संजयामेव गामा गामं | आ. सु. २. अ. ५. उ. २, सु. १८५ आमोसगाहारियवरयस्स जानना विहि-गिरोहो२०५. से भिक्खू या, भिक्खूणी या गामाणुगाम हूइज्माणे अंतरा से आमोगा संपडियाय से आमोगा एवं चदेज्जा । "आजसंतो समणा ! आहरेतं वत्थं देहि, णिविवचाहि" - बंदिय-वंदिय जाएज्जा, गो अंजलि कट्टु जाएज्जर, पो पडियाए जाएजा धम्मियाए जायगाए जाएज्जा, मावा उ त्यस विवरण पायसिस मुसाई२०६. जे भिक्खू वणमंतं वत्थं विवषणं करे, करें या साइज्जद । freejar वण्णमंत करेद, करें वा साइज्ज६ । "आयुष्मन् श्रमण ! यह बस्त्र लाओ हमारे हाथ में दे दो या हमारे सामने रख दो ।" इस प्रकार कहने पर साधु उन्हें वे यत्र न दे, अगर वे बलपूर्वकले उन्हें भूमि पर रख दे। पुनः लेने के लिए उनकी स्तुति (प्रा) करके हाथ जोड़कर या धीन-वचन कहकर याचना न करे अर्थात् उन्हें इस प्रकार से वापस देने का न कहे । यदि माँगना हो तो उन्हें धर्मवचन कहकर - आ. सु. २, अ. ५ . सु. ५०६ समझाकर माँगे, अथवा मौन भाव धारण करके उपेक्षा भाव से रहे बरम के विवण करने के प्रायश्चित सूत्र तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मातियं परिहाराणं वा । - नि. ज. १८, सु. ३३ ३४ चारित्राचार एवणा समिति तथा मार्ग में चोरों को सामने आता देखकर उस वस्त्र की रक्षा हेतु प्रोों से भयभीत होकर साधु उन्मार्ग से न जाए पावसाविभाव में स्थिर होकर संयमपूर्वकामानुपा सलोम धम्म विहि-गिरोहो २०७. नो कप्प निषीणं सलोमाई चम्माई अहिट्टित्तए । [६८ चोरों के भय से उन्मार्ग से जाने का निषेध २०४. मामनुप्रास विचरण करते हुए भिक्षु या भिक्षुणी के मार्ग में बटत्री वाला सम्बा मार्ग हो और वह यह जाने कि-- इस से लिए जाते हैं, तो साधु उनसे भयभीत होकर उन्मार्ग से न जाए- यावत् समाश्रि भाव में स्थिर होकर संयमपूर्वक ग्रामानुग्राम विचरण करे । घरों से अपहरित यन्त्र के याचना का विधि-निषेध२०५ ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए भिक्षु या भिक्षुणी के मार्ग में चोर हरण करने के लिए आ जाएं और कहें कि धर्म सम्बन्धी विधि- निषेध - ६ २०६. जो भिक्षु वर्ग वाले वस्त्र को विवेगं करता है, दिवर्ण कर वाता है अथवा विवर्ण करने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु वित्र वस्त्र को वर्णवाला करता है, वर्णवान् कराता है अथवा वर्णवान् करने वाले का अनुमोदन करता है । उसे चातुर्मानिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है । लोचन के विधि-निषेध २०७. को उपयोग में लेना नहीं कल्पता है। वासनादि कार्यों के लिए रोम सहित नर्म
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy