________________
६८६]
चरणानुयोग
सरोम चर्म के उपयोग का प्रायश्चित सूत्र
सूत्र २०७-२१२
प्पड निरगंथाणं सलोमाइं चस्मा अहिद्वित्तए,
किन्तु निम्रन्थों को शयगासनादि कार्यों के लिए रोम-सहित चर्म को उपयोग में लेना कल्पता है।
वह भी परिभुक्त (काम में लिया हुआ) हो, अपरिभुक्त (नया)
से विय परिभुत्ते, नो चेन णं अपरिभुने,
से वि य पाडिहारिए, नो चेवणं अपादिहारिए,
पातिहारिक (लौटाया जाने वाला) हो, अपातिहारिक (न
लौटाया जाने वाला) हो। से षि य एगराइए, नो चेव णं अणंगराइए।
केवल एक रात्रि में उपयोग करने के लिए लाग जावे, पर
-कप. उ. ३, सु. ३-४ अनेक भत्रियों में उपयोग करने के लिए न लाया जावे । सलोम चम्म अहिट्ठाणस्स पायग्छित्तसुतं
सरोम चर्म के उपयोग का प्रायश्चित्त सूत्र---- २०८. मे भिक्खू सलोमाई चम्मा अहिटइ, महिदुत वा २०८. जो भिक्षु रोम सहित चर्म को उपयोग में लेता है. लिवाता साइज्जई।
है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवम्जद चाजम्मासियं परिहारदाण उग्घाइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ. १२, सु. ५ जाता है। कसिणाकसिण चम्म विहि णिसेहो
कृत्स्नाकृत्स्न चर्म का विधि-निषेध२०६. नो कप्पर निग्गंथाण बा, निग्गंधोण वा कसिणाई चम्माई २०६. निर्गन्थों और मिग्रंन्धियों को अखण्ट चर्म पास में रचना धारेत्तए वा, परिहरित्तए वा ।
या उसका उपयोग करता नहीं कल्पता है। कप्पा निग्गंधाण वा निग्गंधीष गा सिणा गया सन्तु निगो और निन्थियों को चर्म खण्ड पास में रखना
घारेत्तए चा, परिहरित्तए वा। -कप्प. उ. ३, सु. ५-६ या उसका उपयोग करना कल्पता है। अखण्ड चम्म धारण पायच्छित सुतं
अखण्ड चर्म धारण करने का प्रायश्चित्त सूत्र२१०. जे मिक्सू कसिणाई चम्माई धरेइ धरतं वा साइज्जद। २१०. जो भिक्ष कृत्स्न (अखण्ड) चर्म वो धारण करता है, धारण
करवाता है या धारण करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवमा मासियं परिहारहाणं उग्धाइयं । उसे मासिक उद्घातिया परिहारस्थात (प्रायश्चित्त) आता है।
-नि. ३. २, सु. २२
चिलमिली को विधि-७
चिलमिली धारण-परिहरण विहाणं
चिलमिली रखने का तथा उपयोग करने का विधान२११. कप्पद निग्गंधाण वा, निग्गंधीण या,
२११. निर्ग्रन्थों और नियन्थियों को चेल-मिलिनिलिका रखना खेलथिलिमिलिय' धारित्तए वा, परिहारत्तए वा।
और उसका उपयोग करना कल्पना है।
-कप्प. उ. १, सु.१६ चिलमिली सयंकरण-पाच्छित्त सुत्तं
चिलमिलिका के स्वयं निर्माण करने का प्रायश्चित्त सूत्र२१२. भिक्खू सोत्तियं वा, रज्जुयं वा, चिलमिल सयमेव करेइ, २१२. जो भिक्षु सूत की अथवा रस्सी की चिलमिली का निर्माण करेंसं वा साहज्जइ।
स्वयं करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।
१ चिलिमिलिका यह देशी शब्द है, यह छोलदारी के आकार वाली एक प्रकार की वस्त्र-कुटी (मच्छरदानी) है तथा बृहत्कल्प सूत्र
उ.१ में द्वार पर लगाये गये पर्दे को भी चिन मिनिका कहा गया है।