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________________ ५८. घरणानुयोग वस्त्र सुगन्धित करने का और धोने का निषेध सूत्र १९७-१६८ वस्त्र प्रक्षालन का निषेध-३ से त्या वस्थाणं गंधिकरण धोवण-णिसेहो बस्त्र सुगन्धित करने का और धोने का निषेध१६७. से भिक्खू वा, भिक्खूणी था “पो णवए मे अत्थे" ति कट्ट १६७. "मेरा बस्त्र नया नहीं है" ऐसा सोच कर भिक्षु या गो बदेसिएण सिणाण वा-जाव-पउमेण बा, आपसेज्ज भिक्षुणी उसे (पृराने वस्त्र को) अल्प य बहुत सुगन्धित द्रव्य वा, पघंसेज्ज वा। समुदाय से—यावत्-पदम राग ने आधर्षित प्रर्षित न करे। सक्का भिषणी या जो णवए मे वत्थे" त्ति कटु "मेरा वस्त्र नया नहीं है। इस अभिप्राय से भिक्षु या शिक्षणी जो बहदेसिएण सीओदबियडेण वा, उसिणोवगयियज्ञेण वा, उस मलीन वस्त्र को अल्प वा बहुत शीतल या उप प्रासूफ जल उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा। से एक बार या बार-बार प्रक्षालन न करे। से भिक्खू वा, भिक्खूणी वा "दुग्भिगधे मे वत्ये" ति कटु "मरा बम्ब दुर्गन्धित है" इस अभिप्राय से भिनु या भिक्षणी णो बहुदेसिएण सिणाणेण वा-जाव-पउमेण बा, आधसेज्ज अल्प या बहुत सुगन्धित द्रव समुदाय से-वावत् -पदम राग वा, पप्रंसेज्ज वा। से आपषित-प्रषित न करे। से भिक्खू था, भिवषूणी वा "दुभिगंधे मे वत्थे ति कट्टु मेरा बस्त्र दुर्गश्रित है" इस अभिप्राय से भिक्षया भिक्षणी गोहदेसिएण सीतोदयचियडेण बा, उसिणोनगवियडेण था. उमा मलिन वस्त्र को अस्प या बहन गीतला या उगगक जल उच्छोलेज्ज वा. पधोएज्ज वा। से बार या बार-बार न धोए । -आ. सु. २, अ २, ३. १. मु. ५७२-५०४ वत्य-गंधिकरणस्स धोवणस्स य पायच्छित्तसुताई- वस्त्र को सुगन्धित करने और धोने के प्रायश्चित्त सूत्र१६८. जे भिक्खू "नो नवए मे नत्थे लो" ति कटु बहुदेसिएण। ११. जो भिक्षु "गुले गया वस्त्र नहीं मिला है। ऐगा मोव लोण वा-जाव-अण्णेण वा आघसेज्ज वा पत्रसज्ज दा कार लोध ग-यावत्-वणं से एक बार बार-बार घिसे. आसतं वा पसतं वा साइज्जई। घिसयावे, घिगने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू "नो नवए मे वत्थे लछे" ति कट्टु बहुदेसिएण जो भिक्षु "मुझे नया वस्त्र नहीं मिला है" ऐसा सोन करके सीमोदगवियोण बा, सिणोवगवियडेण बा, उच्छोलेन्ज अदित्त शीतल जल से या अचित्त उष्ण जल से धोये, भूनावे, वा, पधोएज्म वा, जच्छोलेंत वा, पधोएतं या साइजइ। धोने वाले का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे आवजह घाउम्मासियं परिहारटाणं उग्धाइयं उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारमान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १८. सु. ३६-३७ आता है। जे निक्स् "नो नवए मे वत्थे लझे" ति फटु बहुदेवसिएण' जो भिक्षु "मुझे नवा वस्त्र नही मिला है" ऐसा सोच करके लोखेण वा-जाव-वण्णण वा आधसे ज्ज वा, पसेज्न धा पुराने लोध से-थावत्-वर्ण से एक बार या बार-बार घिसे, आघसंत वा, प,सतं वा साइज्जह । घिसनावे, घिसने वाले का अनुमोदन करे ।। जे भिक्खू "नो नवए मे यत्थे लढे" ति कटु बहुदेवसिएण जो भिक्षु "मुझे नया वस्त्र नहीं मिला है" ऐसा सोच करके सीओदर्गावपण वा उसिणोदवियरेण वा, उन्छोलेज्ज वा, पुराने अचित्त नीतल जल से या अचिन्न उष्ण जल से धोये, पधोएज्ज वा, उच्छोलतं बा, पधोएंत वा साइज्जइ। धुलावे, धोने वाले का अनुमोदन करे । १ 'बहुदेसिएणं' का अर्थ है अल्प या बहुत लेप्य पदार्थ से कार्य करना। २ 'बहुदेवसिएण' के अनेक अर्थ है यथा-- बहुत दिन ने लेप्य पदार्थ, बहुत दिन तक अपने पास रखे हुए पदार्थ, बहुत दिन तक एक वस्त्र के लेप्य पदार्थ लगाना या धोना इन्यादि । अथवा यह भी संभव है कि 'बहुदेसिएण' शब्द से ही लिपि दोष से 'बहुदेव भएण' का पाठ बन गया हो तथा भित्र-भिन्न प्रतियों में विभिन्नता हो जाने से दोनों पार वृद्धि होकर प्रचलित हो गये हों। क्योकि 'बहुदेसिएण" के सूत्र का अर्थ जितना स्पष्ट और संगतियुक्त है उतना 'बहुदेवसिएणं' का नहीं है। लोद्रादि अनेक दिन के होने में कोई दोष नहीं होता है तथा अचित्त जज अनेक दिन का होना या रखना सम्भव नहीं है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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