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________________ सूत्र १९२-१६६ अवग्रहानन्तकादि के ग्रहण का विधि-निषेध पारिवाचार : एषणा समिति [६७६ उग्गहणतमाईणं गहण विहि-णिसेहो अवग्रहानन्तकादि के ग्रहण का विधि-निषेध१६२. नो कप्पइ निम्मंयाणं १९२. निग्रेन्यों कोउग्राहणन्तगं वा, जग्गहपट्टग वा, धारित्तए वा, परिहरताए (१) अवग्रहानन्तक (चोलपट्टक के अन्दर गुप्तांग को आवृत वा। करने का वस्त्र) और (२) अवग्रहपट्टक (अनग्रहानन्तक को आवृत करने का वस्त्र) रखना या उसका उपयोग करना नहीं कल्पता है । कप्पइ निग्गंधीण किन्तु निर्गस्थियों कोउग्गणन्तगं वा, जगहपट्टगं वा धारिसए वा परिहरितए (१) अवयहानन्तक-साड़ी के अन्दर (गुप्तांग को भावत' वा । - कप्प. उ.. सु. ११-१२ करने का वस्त्र) और (२) मवग्रहपट्ट क (काटिप्रदेश से जानुपर्वन्त पहना जाने वाला कच्छा-जांघिया) राखना या उसका उपयोग करना कल्पना है। कसिणाकसिणवत्थाणं विहि-णिसेहो कृत्स्नाकुलम्न वस्त्रों का विधि-निषेध - १६३, नो कप्पइ निर्गथाण वा निग्गंधीग या....कसिणाई बत्थाई १६३. निर्ग्रन्गों और चिन्थियों को कृत्स्न वस्त्रों का रखना या धारितए वा, परिहारत्तए वा । उपयोग करना नहीं कल्पता है। कप्पड निरगंधाण या, निग्गंधीण 4. अफसिणाचं बत्थाई गिन्तु निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को अकरस्न स्त्रों का रखना धारित्तए वा परिहा रित्तए वा। -बाप्प उ. ३, सु. ७-८ या उपयोग करना बाल्पता है। कसिण वत्य धरणपायच्छित्तसुतं कृत्स्न वस्त्र धारण करने का प्रायश्चित्त सूत्र-- १६४. जे भिक्खू कसिणाई वत्थाई रेइ. धरेंनं वा साइजद । १९४. जो भिक्षु कृत्स्न वस्त्र धारण करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज मासियं परिहान्डाणं उग्धाइयं । उसे मामिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है । -नि. इ.२, सु.२३ भिन्नाभिन्न वत्थाणं विहि-णिसेहो . भिन्नाभित्र वस्त्रों का विधि-निषेध१६५. नो कप्पा निम्गंधाण वा. निममीण वा अभिलाई वत्थाई १६५. निग्रन्थों और नम्रन्थियों को अभिन्न वस्त्रों का रखना या धारितए वा, परिहरिसए वा । उपयोग करन नहीं कल्पता है। कप्पर निगयाण वा, निगवीण वा मिलाई पत्याई निर्गन्यों और निग्रन्थियों को भिन्न वस्त्रों का रखना या यारित्तए वा, परिहरित्तए वा। - वप्प. उ. ३ सु. ६-१० उपयोग करना कल्पता है । अभिन्न यत्थधरण पायच्छित्त सुतं अभिन्न वस्त्र धारण करने का प्रायश्चित्त मुत्र - १६६. जे भिक्षु अभिनाई वत्थाई घरे धरेतं वा साइज्जह ।। १६६. जो भिक्षु अभिन्न वस्त्र धारण करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। . तं सेवमाणे आवस्जद मासियं परिहारटुरणं उधाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। -नि.उ.२, सु. २४
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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