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________________ सूत्र १९८ वस्त्र को सुगन्धित करने और धोने के प्रापश्चित्त सूत्र चारित्राचार : एषणा समिति [६८१ तं सेवमाणे आवम्जइ चाउम्भासियं परिहारष्ट्राण उग्धाइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित) --नि. उ, १८, मु. ३६-४. भाता है। जे मिक्खू "बुभिगंधे मे बत्थे लद्धे" ति कटु बहदेसिएण जो भिक्षु "मुझे दुर्गन्धी वस्त्र मिला है" ऐसा सोच करके लोण वा-जाव-याणेण वा, आयसेज चा, पघसेज्जा , लोध से-यावत् वर्ण से एक बार या बार-बार घिसे, घिरवावे, आघंसतं वा, पसंत वा साइज्जइ । घिसने वाले का अनुमोदन करे। में भिक्खू "बुदिभगंधे में वत्थे ला" ति कटु बहुवेसिएग जो भिक्षु "मुझे दुर्गन्धी दस्व मिला है" ऐसा सोच करके सौओवगवियडेण वा, उसिणोदगवियशेण वा. उच्छोलेज्ज अचित्त शीत जल से या अचित्त उरुण जल से धोये, धुलावे, वा, पधोएज्ज या, उरछोलतं था, पयोएत वा साइजह। धोने वाले का अनुमोदन करे। ते सेवमाणे आवज्जन चाउम्भासिमं परिहारट्टाणं उधाइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ.१८, सु. ४२-४३ आता है। जे भिक्छु "दुभिगंधे मे वत्थे लढे" ति कट्ट बहुदेवसिएण जो भिक्षु "मुझे दुर्गन्धो वस्त्र मिला है" ऐसा सोच करके लोण वा-जाव-वणेग वा, माघ सेका वा, पधं मेज यश, पुराने लोध से-यावत्-वर्ण से एक बार या बार-बार घिसे, आघसंत वा, पसंतं वा साइजह । घिसावे, पिसने वाले का अनुमोदन करे। जे मिक्खू "बुमिगंधे मे वत्थे लो" ति केटु बहुवेबसिएण जो भिक्षु "मुशे ढुगन्धी वस्त्र मिला है" ऐसा सोच करके सोओवगलियडेग वा, डा.गोविण वा, छोलेज पुरान आपत्त शोत जल से या अचित्त जस जल से धोये, धुलावे, वा, पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा, पधोएतं वा साइज्जह।। धोने वाले का अनुमोदन करे । तं सेवमाणे भावज्जइ चाउ-मासिय परिहारट्ठाणं उधायं। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) --नि.उ. १८, मु. ४५-४६ आता है। १ (क) निणीभ भाष्य में निम्न मूत्र अधिक प्राप्त होते हैं। जे भिक्खनो नाइए मे मुभिगंधे वत्थे लवे" त्ति कटु लोदेण वा-जान-वण्रोण वा आधसज्ज वा, पप सेज्ज वा, आघसतं वा, पसंतं वा साइज्जइ । जे भिवम्व "गो नवए मे सुमिपंधे वत्थे लो" ति कटु बदेसिएण सीओदमवियडेण वा, उनिणोदगविबड़ेण वा, उच्छोलेज्ज या, पधोएज्ज ना, उच्छोलेंतं वा, पधोएंत वा साइज्जइ । -नि० उ०१८, सु०४-४६ जे भिखू "नो नवए में सुब्भिगंधे वत्थे लछे" त्ति कटु बहुदेवसिएण लोदेण वा-जाव-वोण वा नाघनेज्ज वा, पपसेज्ज वा, आपसंत वा, पसतं वा बाइज्जा । जे भिक्यू 'नो पवए में सुब्भिगंधे वत्] लड्ने" त्ति कटु बहुदेवसिएण सीओदगविण्डेण वा, उसिणोदगवियडेण वा, उच्छोलेज ना, पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं बा, पधोगत वा साइज्जइ । -नि० उ० १८, ०५१-५२ (ख) जे भिक्त सुभिगंधे पडिगहे लद्धे - त्ति कटु दुन्भिगंधे करेइ, करैत वा साइज्जा । मे भिक्यू दुन्भिगंधे पडिग्गहे लढे-रि कट सुरिकगंधे करेइ, करेंत वा साइजा ! स्व. पूज्य थी अमोलक ऋषिजी म. तथा स्व० पूज्य श्री धासोलालजी म. सम्पादित प्रतियों में ये दो सूत्र अधिक उपलब्ध हैं।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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