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________________ ६७०] चरणानुयोग बामूल्य वस्त्रों के ग्रहण का निषेध सूत्र १६८-१६६ महतणमोल्लाण वत्थाणं गहण णिसेहो बहुमूल्य वस्त्रों के ग्रहण का निषेः - १६८, से भिक्षु बा भिषणी चा से जाई पुण षस्थाई जागेब्जा १६८. भिक्षु या भिक्षुणी यदि यह जाने कि ये नाना प्रकार के घिरूवरुवाई महउणमोल्लाई, त जहा । वस्त्र गहाधन समाप्त होने वाला (वह मूल्य) है, जैसे किआईणगाणि या, आजिनक - चूहे आदि के चर्म से बने हुए, सहिणाणि या. श्मण= वर्ण और अदि आदि के कारण बहुत सूक्ष्म पा मुलायम, सहिणकल्लाणाणि वा, प्रतक्ष्णकल्याण - सूक्ष्म और मंगलमय निम्हों से अंकित. आयाणि वा, आजक= किसी देश की सूक्ष्म रोएँ वाली बकरी के रोम से निष्पन्न, कायाणि वा, कायक: इन्द्रनील वर्ण कपान से निर्मित, खोमियाणि वा, क्षौमिक सामान्य पान से बनाया गया वस्त्र, दुगुल्लाणि वा, नुकूल-गोदा में उत्पन्न विशिष्ट कार से बने हुए वस्त्र, पट्टाणि वा, पट्टसूत्र- रेशम के वस्त्र, मलयाणि वा, मलयज = (चन्दन) के सूत से बने या मलयदेश में बने वस्त्र, पतुष्णाणि घा, पतुण =वल्कल तन्तुओं से निमित बस्त्र, अंसुयाणि बा, अंधुक=बारीक वस्त्र, चीगंसुयाणि वा, चीमांक: चीन देश के बने अत्यन्त सूक्ष्म एवं कोमल वस्त्र, वेसरागाणि वा, देश-राग-एक प्रदेश से रंगे हुए, अमिलाणि बा, अमिल=होस देश में निर्मित, गग्जलाणि वा. गजल= पहनते समय बिजली के समान कड़कड़ शब्द करने बाले वस्त्र, फालियाणि वा. स्फटिक के समान स्वच्छ वस्त्र, कोयवाणिया, कंबलगा णि बा, पावाराणि वा, अण्णतराई कोयकोवव देश में उत्पन्न वस्त्र, विशेष प्रकार के वा, सहरपगाराई वत्पाई मजवणमोल्लाई लाभे संते णी पारसी कम्बल मोटा कम्बल) तथा अन्य इसी प्रकार के बहमुल्य पडिगाहेजा। -आ. सु. २. अ. ५. उ. १, सु. ५५७ बस्त्र प्राप्त होने पर भी उन्हें ग्रहण न करे। मच्छ चम्माई णिम्मिय वत्थाणं गहण-णिसेहो -- मत्स्य चम'दि से निर्मित वस्त्रों के ग्रहण का निषेध१६१. से भिक्खू बा, भिक्खूणी वा से जं पुण आईणपाउरणाणि १६६. माधु या साध्वी यदि चमं से निष्पन्न ओढ़ने के वस्त्र जाने वस्थाणि जाणेज्जा, तं जहा जैसे किउहाणि वा, औद्र-सिंधु देश के मत्स्य के चर्म और सूक्ष्म रोम से निष्पन्न वस्त्र, पेसाणि वा, पेष-सिन्धु देश के सूक्ष्म चर्म बाले जानवरों से निप्पन्न पेसलेसाणि वा, पेषलेश-उसी के चर्म पर स्थित सूक्ष्म रोमों से बने हुए बस्त्र, किण्हमिगाईगगाणि वा, गोल भिगाईणगाणिवा, गोरमिगाईण- कृष्ण मृग के चर्म, नील मृग के चर्म, गौर मृग के चर्म से गाणि वा, निर्मित वस्त्र, कणगाणि या, कणगकताणि वा, सुनहरे सूत्रों से निर्मित वस्त्र, सोने की कांति वाले वस्त्र, कणगपट्टाणि था, कणगखइयाणि वा, कणगफुसियाणि वा, सुनहरे सूत्रों की पट्टियों से बने हुए वस्त्र, सोने के पुष्प बग्याणि वा, विवग्घागि वा, आभरणाणि का, आभरण- गुच्छों से अंकित परत, सोने के तारों से जटिन और स्वर्ण चन्द्रि
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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