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औ शिकादि वस्त्र के ग्रहण का निषेध
चारित्राचार : एषणा समिति
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निर्ग्रन्थ निम्रन्थी को वस्त्रैषणा का निषेध-१ [१]
उद्देलियाई बल्थ गहण णिसेहो
औदेशिकादि वस्त्र के ग्रहण का निषेध -- १६५. से भिक्खू वा, भिक्खूणी वा से जं पुष वत्थं जाणेज्जा -- १६५. भिक्षु या भिक्षुणी वस्त्र के तम्बन्ध में यह जाने कि दाता
अस्सिपडियाए एगं साहम्मिय समूहिस्स पाणाद-जात्र-सत्ताई ने अपने लिए नहीं बनाया है किन्तु एक सामिक साधु के लिए समारम्भ समुद्दिस, कोयं, पामिश्च अच्छिा, अभिहाँ प्राणी--यावत्-सत्वों का समारम्भ करके बनाया है, खरीदा है, आहटु चेएइ।
उधार लिया है, छीनकर लाया है, दो स्वामियों में से एक की
आज्ञा के बिना लाया है और अन्य स्थान से यहाँ लाया है। तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं वा, अपुरिसंतरकर्ड या. इस प्रकार का वस्त्र अन्य पुरुष को दिया हुआ हो या न बहिया जोहा वा, अणीहा वा, अत्तट्टियं वा. अगत्तट्टियं दिया हो. बाहर निकाला गया हो मान निकाला गया हो, स्वीवा, परियुत्तं था, अपरिभुत्तं वा, आसेवियं या, अणासेवियं कृत हो या अस्वीकृत हो, उपमुक्त हो या अनुपभुक्त हो, मेवित वा, अफासुयं अणेसणिज्जं ति मम्पमागे लाभे संते णो पडि- हो या अनासेवित हो इस प्रकार के वस्त्र वो अप्रासुक एवं अनैषग्गाहेजा।
णीय समझकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। से मिक्खू वा, भिक्खूणो वा से ज्न पुण चरथं जाणेज्जा- भिक्षु या भिक्षुणी वस्त्र कसम्बन्ध में यह जाने कि-दाता अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुहिस्स पाणाई-जाव- ने अपने लिये नहीं बनाया है किन्नु अनेक सार्मिक माधुओं के सत्ताई समारकम समुहिस्स-जावणो पडिमाहेज्जा । लिए प्राणी-यावत्-सत्वों का समारम्भ करके बनाया है
-यावत्-ग्रहण न करें। से भिक्खू बा, मिष्यणी वा से ऑपुण वत्थं जाणेषजा- भिक्षु या भिक्षुणी वस्त्र के सम्बन्ध में यह जाने कि-दाता अस्सिपडियाए एमं साहम्मिणि समुहिस्स पागाई-जाव-सत्ताई ने अपने लिये नहीं बनाया है किन्तु एक मार्मिणी सादी के समारब्भ समुद्दिस्स-जाव-पो परिग्गाहज्जा ।
लिये प्राणी यावत् - सत्त्वों का समारम्भ करके बनाया है
-यावत्-ग्रहण न करे। से भिक्खू या, भिक्खूणी वा से ज्नं पुण वत्थं जाणेज्जा- भिक्षु या भिक्षुणी वस्त्र के सम्बन्ध में यह जाने कि -- दाता अस्सिपटियाए बहवे साहम्मिणीओ समुहिस्स पाणाह-जाव- ने अपने लिये नहीं बनाया है किन्तु अनेक सामिक माध्वियों के सत्ताई समारम्भ समुहिस्स-जावणो परिगाहेजा। लिये प्राणी यावत्-सत्वों का समार-भ करके बनाया है
--. आ. सु. २, अ. ५, उ. १, सु. ५.५५ (क) -यावत् ग्रहण न करे। समणाइ पगणिय निम्भिय वत्थस्स णिसेही
धमणादि की गणना करके बनाया गया बस्त्र लेने का
निषेध .. १६६ से भिक्खू था, भिक्खूणी वा से जं पुण वत्थं जाणेज्जा-- १६६ भिक्षु या भिक्षुणी बस्त्र के सम्बन्ध में यह जाने कि अनेक
बवे समण-माहण-अतिहि किविणवणीमए, पगणिय-पगणिय- श्रमण ब्राह्मण-अतिथि कृपण-भिखारियों को गिन-गिन कर उनके समुहिस्स-जाद-आहट्ट एइ ।
उद्दम्य से बनाया है-याक्त-अन्य स्थान से यहां लाया है । तं तहप्पगारं वस्य पुरिसंतरक वा, अपुरिसंतरका वाइस प्रकार का वस्त्र अन्य पुरुष को दिया हुआ हो या न -जावणो पडिग्गाज्जा।
दिया हुआ हो यावत्- ग्रहण न करे। -आ. सु. २. अ. ५, उ, १, नु. ५.५५ (स्त्र) अद्ध जोयगमेराए पर बत्थेतणाए गमण णिसेहो- अर्धयोजन से आगे वस्त्र षणा के लिए जाने का निषेध१६७. से भिक्यू वा भिक्खूणी वा पर अजोयगमेराए वत्थपडि- १६७. निक्षु या भिक्षुणी को वस्त्र ग्रहण करने के लिए आधे याए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।
योजन से आगे जाने का विचार नहीं करना चाहिए । ---आ. मु.२, अ. ५. उ.१, सु. ५५४