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________________ सूत्र १४४-१४७ सुरायुक्त उपाश्रय में रहने का विधि-निषेध र प्रायश्चित्त चारित्राचार : एवणा समिति [६६३ शग्यषणा-विधि निषेध-प्रायश्चित्त-१० सुराजुस वसण उत्स्सय विहि-णिसेहो पायरिछतंच- सुरायुक्त उपाश्रय में रहने का विधि-निषेध व प्रायश्चित्त१४४. उपस्सयस्स अंतोयगडाए, सुरा वियर कुम्भे वा; सोविरक १४४. उपाश्रय के भीतर सुर और सौवीर ने मरे कुम्भ रखे वियत फुम्भे वा, उवनिकलते सिया, नो कप्पद निगंथाण हुर हो तो निग्रंथों और नियंन्धियों को वहाँ "यथालन्दकाल" वा, निम्गयीण वा, अहालंदवि वत्थए । भी बसना नहीं कल्पता है। हुरत्या म उबस्स पडिलेहमाणे नो लभेम्जा, एवं से कप्पड़ कदाचित् गवेषणा करने पर भी अन्य उपाश्रय न मिले तो एगरायं वा दुरापं वा वत्थए । उक्त उपाश्रय में एक या दो रात बसना कल्लता है। जे तत्य एमरायाओ वा, वुरायाओ वा पर बसत से सन्तरा जो वहाँ एक या दो रात से अधिक वसता है वह मर्यादा छए वा, परिहारे वा। -कप्प. उ. २, सु. ४ उल्लंघन के कारण दीक्षामचंद या तप रूप प्रायश्चित्त का पात्र होता है। सीओदजुत्त उस्सय वसण विहि-जिसेहा पायच्छित्तं च--- जल युक्त उपाश्रय में रहने का विधि-निषेध और प्रायश्चित्त१४५. उबस्सयस्स अंतोषगहाए सीओ रंग-विपरकुम्ने पा, उसिणो- १४५ उपायय के भीतर अपित्त शीत जल या उष्ण जल से भरे दगवियजकुम्भे वा, उनिक्सिते सिधा, नो कप्पइ निग्गंधाण हुए कुम्भ रखे हों तो नियन्यों और निन्थियों को वहाँ "यथावा, निगयोग वा. अहालंदमधि वस्थए । लन्दकाल" भी बसना नहीं कल्पता है। हुरत्था य उवासयं पडिलेहगाणे नो लज्जा , एवं से कप्पा कदाचित् गवेषणा करने पर भी अन्य उपाश्रय न मिले तो एगरायं वा. दुरायं वा यथए । उक्त उपाश्रय में एक या दो रात बसना कल्पता है। जे तत्थ एगराधाओ वा. दुरायाओ वा परं वसह, से सन्तरा जो वहाँ एक या दो रात से अधिक बसता है वह मर्यादा छए वा, परिहारे वा। कप्प. उ. २, रा. ५ उल्लंघन के कारण दीक्षाच्छेद या तषरूप प्रायश्चित्त का पात्र होता है। जोई जुत उबस्सय बसण विहि-णिसेहो पायच्छित्तं च - ज्योतियुक्त उपाधय में रहने का विधि-निषेध और प्रायश्चित्त१४६. उचस्सयस्त अंतोवाडाए, सम्बराइए जोई मियाएज्जा, नो १४६. उपाश्रय के भीतर सारी रात अग्नि जले तो निन्ध और कापड निर्णयाण वा निगंथीण या अहालंवधिवत्थए। निग्रंथियों को बहो "यथालन्दकाल" भी बसना नहीं कल्पता है। हुरत्था य उवस्मयं पडिलेहमाणे नो लभेज्जा, एवं से कप्पा कदाचित् गवेषण करने पर भी अन्य उपायय न मिले तो एगरायं वा दुरायं वा वस्थए । उक्त उपाश्रय में एक या दो रात उसना कल्पत है। जे तत्थ एमरायाओ वा, दुराषाओ वा पर वसइ, से संतर। जो वहाँ एक या दो रात से अधिनः बसता है वह मर्यादा छए वा, परिहारे वा। --बाप्प. उ. २, पृ. ६ उल्लंघन के कारण दीक्षाकद या तररूप प्रायश्चित्त का पात्र होता है। पईवजुत्त उबस्सय वसग विहि-णिसेहो पायच्छित्तं च- दीपक युक्त उपाश्रय में रहने का विधि-निषेध और प्रायश्चित्त-- १४७. उवस्सयस्स असोयगडाए, सम्बराइए पईवे बियेज्जा नो १४७. उपाश्रय के भीतर सारी रात दीपक जले तो निन्थों कप्पई निग्गंधाण वा, निग्गयोण वा बहालंदवि वत्थए। और नियन्थियों को यहाँ 'यथालन्दकाल" भी बसना नहीं कल्पता है। हुरत्या य उवस्सयं पडिलेहमाणे नोलभेज्जा, एवं से कप्पा कदाचित् गवेषणा करने पर भी अन्य उपाय न मिले तो एगरायं वा, बुरायंबा वत्थए। उक्त उपाश्रय में एक या दो रात बसना कल्लता है। ala
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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