SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 694
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६२] चरणानुयोग शया-संस्तारक सम्बन्धी प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र १४२-१४३ संस्तारक सम्बन्धी प्रायश्चित्त-६ सेज्जा संथारगार्ण पायच्छित्त सुत्ताई शय्या संस्तारक सम्बन्धी प्रायश्चित्त सूत्र१४२. जे मिक्स उशियं सेज्जा संथारगं परं पजोसयाओ उवा- १४२. जो भिक्षु शीत या ग्रीष्म ऋतु में ग्रहण किये हुए न्या इणावेद, उवाइणावसं वा साइज्जन । मंस्तारक को पयुपण (संवत्सरी) के याद रखता है. रचाता है रखने वाले क अनुमोदन करता है। जे भिक्षू वासावासिय सेजला संथारगं परं दसरापकप्पाओ जो भिन्न वर्षावास के लिए ग्रहण किये गए शय्या संस्तारक उवाइमावेइ जवाहणाबत या माइज्जद। को वर्षावास के बाद दम-रात से अधिक रखता है, रखवाता है, रखने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू उद्धिय वा वासावासिय मेज्मा संथारग उरि- जो भिक्षु फोष माल या वर्षावास के लिये ब्रहण किये गये सिञ्जमाण पेहाए न ओसारेइ न मोसारत वा साइज्जइ । गम्या संस्तारक वो वर्षा में भीगता हुआ देखकर भी नहीं हटाता है, नहीं हटवाता है या नहीं हटाने वाले का अनुमोदन करता है । जे भिक्खू पाबिहारियं सेज्जा संयाग दोचपि अण्णणुग्ण- जो भिक्षु प्रातिहारिवा श-या संस्तारक को दूसरी बार बाजा वित्ता याहि नीणेइ, नोणतं वा साइमाइ । लिए बिना बाहर ले जाता है, बाहर ले जाने के लिए कहता है और बाहर ले जाने वाले का अनुमोदन करता है। मे भिक्खू सागारिपसंतिय सेन्जा संथारगं दोचंपि अणणुण्ण- जो भिक्षु शय्यातर का शय्या संस्तारक को दूसरी बार वित्ता बाहि नोणेइ, नीतं वा साइजह । आज्ञा लिये बिना बाहर ले जाता है बाहर ले जाने के लिए कहता है, वाहर ले जाने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू पारिहारियं वा सागारियस तियं वा सेज्जासंथारगं जो भिक्षु मातिहारिक या शय्यातर का शय्या संस्तारक वोच्चपि अणणुष्णवित्ता बाहिं नीणेइ, नोणेत वा साइजद्द। दूसरी बार आज्ञा लिए बिना बाहर ले जाता है बाहर ले जाने के लिए कहता है और बाहर ले जाने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू पाडिहारिय सेज्जा संथारगं आयाए अपरिहट्ट जो मित प्रातिहारिक शय्या संस्तारक को ग्रहण करके संपव्ययइ संपवयंत वा साइजइ । लौटाये बिना विहार करता है विहार करनाता है, विहार करने बाने का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू सागारियसंतिय सेन्जा संथारगं आयाए अतिगरणं जो भिक्षु शय्यातर के गया-संस्तारक को लेकर व्यवस्थित कटु अणपिगिता संपवयद, संपब्वयं वा साइज्जई। किरी विना और लोटाये बिना विहार करता है, विहार करवाता है और विहार करने वाले का अनुमोदन करता है। मे भिक्खू पाडिहारियं वा सामारियसंलियं त्रा सेजा जो भिञ्ज प्रातिहारिक या शान्यातर को शय्या संस्तारक खो संथारगं विप्पणळे न गधेसइ, न गवेतंसं वा साइन्जद। जाने पर उसकी गवेषणा नहीं करता है, नही करवाता है, नहीं करने वाले वा अनुमोदन करता है । तं सेवमाणे आवग्जाइ मासिय परिहारट्टाणं उपाध्वयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान प्रायश्चित्त) आता है। -नि, इ. २, सु. ५७-५८ सागारिय सेज्जासंथारयं अणणण्णाबिय गिण्हमाणस्स सागारिक का शय्या संस्तारक बिना आज्ञा लेने का पायपिछत्त सुत्तं-- प्रायश्चित्त सूत्र -- १४३. जे भिक्खू पाबिहारिय वा सागारिय-संति वा सेज्जा- १४३. जो भिक्षु प्रातिहारिक या शय्या तर के गाय्या-संस्तारक को संधारयं पच्चप्पिणित्ता दोच्छ पि अणगुणविय अहिदुइ लौटा कर दूसरी बार आज्ञा लिए बिना ही परिभोग करता है, अहिले वा साइज्जइ। करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे भावउजद मासियं परिहारट्ठाणं उपाइयं। उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। -नि, उ.५, सु- २३
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy