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________________ ६४६] परगानुयोग प्राम आदि में निर्गन्ध-निग्रंथियों के रहने का निषेध सूत्र ६६-६५ अगारीहि अगाराई तिताई भवति, तं जहा-आएसणाणि प्रकार के निर्ग्रन्थ श्रमण वर्ग के उद्देश्य से लोहकारशाला मा-जाव-भवणगिहाणि या, महता पुढविकायसमारमेणं-जात्र- --यावत्-भूमिगृह आदि मकान जहाँ तहाँ बनवाए हैं। उन महता तसकायसमारंभेणं, महता सर मेणं, महता समारंभेणं, मकानों का निर्माण पृथ्वीकार के महान समारम्भ से-यावत्महता आरंभेण महता विरूवरूवेहि पावकम्मकिच्चहि, तं प्रसवाय के महान समारंभ से, इस प्रकार महान् सरम्भ-समारम्भ जहा–छायणतो लेवणतो संचार-चुकार-पिहणतो, सीसोना और भारत से तर जा . रागन मर्मजनक कृत्यों परिदृवियपुच्चे भवति, अगणिकाए वा उजालियपुन्ने भवति । से हुआ है जैसे कि त आदि डाली गई है, उसे लंपा गया है संस्तारक कक्ष को सम बनाया गया है, द्वार के दरवाजा लगाया गया है, तथा वहाँ शीतल सचित्त पानी डाला गया है, अग्नि भी प्रज्वलित को गयी है। जे भयंतारो तहप्पगाराव आएसणाणि वा-जाव-प्रया जो निम्रन्थ बम्ण उस प्रकार के लोकारशाला-पावत्गिहाणि वा, जवागच्छति उवाच्छित्ता इतरादतरेहि पाहि भूमिगृह में आकर रहते हैं तथा अन्यान्य छोटे-बड़े गृहों में ठहरते स्ट्रति दुपक्वं ते कम्म सेवंति, अयमाउसो ! महास वज- हैं, वे द्विपक्ष (दव्य से साधुरूप और भाव से गृहस्थरूप) कर्म का किरिया यावि भवति । सेवन करते हैं । हे आयुष्मन् ! उन श्रमणों के लिए यह शय्या -आ. सु. २, अ. २, उ. २, सु. ४४० महासावध क्रिया दोष से युक्त होती है। एगदुवारवतेसु गामाइसु णिग्गंथ-णिग्योण णिसिद्ध ग्राम आदि में निम्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के रहने का निषेध बसण१६. से गार्मसि वा-जाव-रायहाणिसि वा, एगवगडाए, एगवा- १६. गिग्रंन्यों और निर्यमियों को एक वर.का, एक द्वार और एक राए, एगनिक्खमणपवेसाए,नोकप्पई निमांयाण य निग्गयीण निष्क्रमण प्रवेश बाले ग्राम--पावत्--राजधानी में भिन्न-भिन्न प एगयो बत्थए। - काप. उ. १, सु.१० उपाथयों में भी) रामपाल बनना नहीं करपता है। णिगंथ-णिगंथी दगतीरंसि णिसिद्ध किच्चाई- निन्थ-निग्रंथियों के लिए पानी के किनारे पर निषिद्ध कार्य१७ नो कप्पइ निर्णयाण वा निग्गीण वा, बगतीरंसि चिट्ठतए १७. निम्रन्थ और निग्रन्थियों को दकतीर (जल के किनारे) पर वा, निसीइत्सए या, तुट्टित्तए ना, निदाइत्तए श, पयता- खड़ा होना, बैठना, शयन करना. निद्रा लेना, ऊँघना, अशन इसए वा, असणं यश-जाव-साइमं वा बाहरितए था, उच्चारं --यावत्- स्वादिम आहार का खाना-पीना, मल-मूत्र, श्लेष्म, वा, पासवर्ष वा खेलं जा सिंघाणं वा परिवेत्तए, समायं नासामल आदि का परित्याग करना-स्वाध्याय करना, धर्म या करित्तए. धम्मजागरियं वा जागरित्तए. काउसका दा जागरिका (रात्रि जागरण) करना तथा खड़े पा बैठे कायोत्सर्ग ठाणं ठाइत्तए। - कप्प उ. १, सु. २० करना नहीं कल्पता है । णिग्गंथी उवस्सए णिग्गंथाणं णिसिद्ध किच्चाई - निग्रंथियों के उपाधय में निर्ग्रन्थों के लिए निषिद्ध कार्य-- १८. नो कप्पइ निगांयाणं निग्गयीणं उबस्सर्यास--- १८. निग्रंन्यों को निर्गन्थियों के उपाश्रय में१. चिद्वत्तए वा. २. निसीइसए वा, ३. तुपट्टिसए बा, १. खडे होना, २. बैठना, ३, लेटना, ४. निदाइत्सए बा, ५. पयलाइत्तए वा, ६-६. असणं वा ४, निद्रा लेना, ५. ऊँघ लेमा, ६-६. अशन-पावदजाव-साइमं बा, आहारं आहारेत्तए. स्वादम का आहार करना, १०. उपचारं वा, ११. पासवणं वा, १२. खेल बा, १०. मल, ११. भूत्र, १२. कफ और १३. सिंघाणं श परिवेसए, १४. समझायं वा करेत्तए, १३. नाक का मैल त्यागना, १४. स्वाध्याय, १५. साणं वा माइतए, १६. काउसग्गं या करिसए, १५. ध्यान तथा १६ खड़े या बैठे कायोत्सर्ग झरना ठाणं वा ठाइतए। -कप्प. उ. ३, मु.१ नहीं कल्पता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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