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६२४] चरणानुयोम
हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में निर्धन्यों की वसतिवास मर्यादा
हेमंत गिम्हासुग्ाणं बस वासमेश
७३. से गामंसि वा जाब- रायहा णिसि या सपरिक्लेवंस अनाहि रियंस, कल्प निग्धार्ण हेमन्त - गिम्हासु एवं मासं दत्यए ।
सेमं हामिति वा सरिक्लेविं रिनिभा हेमन्तमिम्हा दो मासे बाए
अन्तो एवं माह एवं भा
अम्सो वसमतणाणं अन्तो ममायरिय
कृ. उ. १, सु. ६-७
-कृष्ण, उ. १. सु. कम्पनियांचा अधारिए उपर - कृष्ण. उ. १. सु. १६ कम्पe निगांचाणं, सागारिय- निस्साए वा अनिस्साए वा बथए ।
कृष्ण निष्याणं, पुरिस-सामारिए उदस्सए बत्यए । - कप्प. उ. १, सु. २६ कृ.प्पड निष्याणं आहे आगमण हिंसि वा वियहिंसिया सीता सिमा बा वायए ।
-कप्प. उ. २, सु. १२
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हेमंत म्हासु पियोगं बसवासमेरा७५. से गामंसि वा जाय-रायहाणिसि वा सपरिवसि अहिरियंसि कप निभायीणं हेमंत गिम्हासुदरे मासे वत्थए ।
बहसमा हारि
णिग्वार्ण कम्पनिमा उपस्या
निर्मन्थों के कल्प्य उपाश्रय
७४. कप निरगंधाणं, आवगगिहंसि वा जाव अन्तरावणंसि वा ७४ निर्ग्रन्यों की आपणगृह यावत्-अन्तरापण में बसना थथए । कल्पता है ।
से गामंसि वा जाब- रामहाणिसि का सपरिषदेवंसि समाहिरियंसि कप्पड़ निग्गंीणं हेमन्त- गिम्हासु बारि मासे वस्पए ।
सूत्र ७३-७५
हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में निर्ग्रन्थों की वसतिवास मर्यादा
७३. निर्ग्रन्थों को सपरिक्षेप (प्राकार या बादयुक्त) और अबाहिरिक ( आकार के बाहर की वस्तिरहित ) ग्रामथावत् राज धानी में हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में एक मास तक बसना कल्पता है ।
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निर्मन्थों को सपरिक्षेष और सबाहिदिक ग्राम पावत्राजधानी में हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में दो मास तक दसना कल्पता है ।
एक मास ग्राम आदि के बन्दर और एक मास ग्रामादि के बाहर ।
ग्राम आदि के अन्दर बसने वाले निर्ग्रन्थों को ग्राम आदि के अन्दर बसे घरों में भिक्षाचर्या करना कल्पता है।
के स्वामी से सुरक्षा का आश्वासन प्राप्त हो या न हो) उपाश्रय कृष्ण उ. १, सु. २५ में बसना कल्पता है ।
ग्राम आदि के बाहर बसने वाले निर्ग्रन्थों को ग्राम आदि के बाहर बसे घरों में भिक्षाचर्या करना कल्पता है।
नियों को (खुले द्वार) माले उपाधय में ना कल्पता है ।
नियों को मारक की विधा या अतिया मे
नियन्थों को आगमन गृह में चारों ओर से छप्पर के नीचे अथवा बाँस की जाली युक्त घर में या आकाश के नीचे बसना कल्पता है ।
नियों को पुरुष सागारिक (केवल पुरुष निवास वाले) उपाश्रय में बसना कल्पता है ।
खुले घर में, वृक्ष के नीचे
हेमन्त और ग्रीष्म में नियंत्थियों की वसतिवास मर्यादा७५. निर्ग्रन्थियों को सपरिक्षेष और अबाहिरिक ग्राम — यावत्--- राजधानी में हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में दो मास तक बना कल्पता है ।
- यावत्
निन्थियों को सपरिक्षेप और सबाहिरिक ग्राम--- राजधानी में हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में चार मास तक बसना कल्पता है ।