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११ प्रकार के प्रार पोरन पानी
चारित्राचार : एवमा समिति
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आचारांग व निशीथ में वर्णित “सुद्ध विय" इससे भिन्न है क्योंकि तत्काल बने शुद्ध वियह ग्रहण करने का शयश्चित्त कहा गया है अत: उसे अचित्त शीतल जल ही समझना चाहिये।
आगमों में वणित माझ अग्राह्य धौवन पानी के संक्षिप्त बयं इस प्रकार हैं११ प्रकार के ग्राह्य धोवन पानी -
(१) उरसेदिम आटे से लिप्ल हाथ या वर्तन का घोषण। (२) संस्थेविम उबाले हुए तिल, पत्र-शाक आदि का धोया हुआ जल । (३) तन्दुलोदक -चावलों का धोषण । (४) तिलोचक-तिलों का शोषण ! (५) सुनोदक -भूसी का घोदण । (६) जबोदक-जो का धोवन । (७) आयाम–अवश्रावण-उबाले हुए चावलों का पानी-मांड आदि । (क) सौवीर-कांजी का जल । (e) शुख विकट हड बहेडा आदि से प्रासुका बनाया जल । (१०) वारोचक-गुड़ आदि के घड़े आदि का धोया जल ।
(११) थाम्ल काजिक-बट्टे पदार्थों का धोवण । १२ प्रकार के अग्राह्य धोवण पानी
(१) आम्रोवक-आम्र होया हुआ पानी। (२) अम्बालोदक-आम्रातक (फल वियेष) धोया हुआ पानी । (३) कपिस्थोवक-केय या कविठ का धोवन । (४) बीजपूरोदक-बिजोरे का श्रोया हुआ पाना । (५) प्रामोवक-दाख का धोवन । (६) दारिमोवक-अनार का धोया हुआ पाती। (७) खजूरोदक-खजूर का धोया हुआ पानी । (6) नालिकेरोदक-मारियल का धोया हुआ पानी । (8) करीरोयक-कर का धोया हुआ पानी। (१०) यविरोवक-वेरों का धोवन पानी। (११) आमलोवक-आंवले का धोग जल । (१२) चिंचोचक-इमली का धोया जल ।
इनके सिवाय गर्म जल भी ग्राह्य कहा गया है। फासुग पाणग गहणविही
अचित्त जल ग्रहण विधि६२. से भिमसू वा मिक्खूगी वा गाहावइकुस पिण्डवायपटियाए ६२. गहस्य के महा गोचरी के लिए प्रविष्ट विक्ष या भिमणी
अणुपविठे समाणे से उजं पुण पाणगजायं जागेमा,तं अगर इस प्रकार का पानी जाने, जैसे कि
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