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________________ ६२६] घरगानुयोम भोगणपाणी सूचक आगम पाठ www साइमं वा ओभासिय अोभासिय जायड, जायंतं वा पान, सादिम, स्वादिम आहार की याचना करता है, करवाता साहज्जा। है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जा मासियं परिहारहाणं उग्धाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चिस) बता है। -नि.उ. २, सु. ४६ पाणषणा-२ प्राक्कथन--- आगमों में अनेक प्रकार के अचित एवं एषणीय पामी लेने के विधान है। सचित्त एवं अनेषणीय पानी सेने का निषेध है। पानी दो प्रकार के होते हैं-(१) लेने योग्य पानी, (२) न लेने योग्य पानी। (१) लेने योग्य पानी के १० नाम हैं - -आ. सु. २, अ. १, उ. ७. सु. ३६६-३७० दश. भ. ५, उ. १, मा. १०६ (२) न लेने योग्य पानी के १२ नाम हैं -आ. सु. २. ब. १. उ. ८, सु. ३७३ लेने योग्य पानी के आगम पाठ में और न लेने योग्य पानी के बागम पाठ में निश्चित संख्या भूचित नहीं है। लेने योग्य पानी के आगम पाठ में अन्य भी ऐसे लेने योग्य पानी लेने का विधान है। इसी प्रकार न लेने योग्य पानी के आयम पाठ में अन्य भी ऐसे न खेने योग्य पानी लेने का निषेध है।। पानी शस्त्र परिणत होने पर भी तत्काल अचित नहीं होता है, अतः वह सेने योग्य नहीं है। वही पानी कुछ समय बाद अचित्त होने पर लेने योग्य हो जाता है। फल आदि धोये हुए अचित्त पानी में याद बीज गुठनी आदि हों तो ऐसा नान छान करके दे तो भी वह लेने योग्य नहीं है ! धोवणपाणी सूचक आगम पाठ (१) दशवकालिक अ. ५, उ. १, गा.१०६ में तीन प्रकार के प्रोवन पानी लेने योग्य कहे हैं। इनमें दो धोवन पानी आचारांग सु. २, अ. १, उ. ७. सू. ३६६ के अनुसार कहे गये हैं और एफ, "वार धोयण" अधिक है। (२) उत्तराध्ययन अ.१५, गा. १३ में तीन प्रकार के धोवन कहे गये हैं। इन तीनों का कथन आ.सु २, अ.१, उ.७ सू. ३६६-३७० में है। (३) आचारांग सु. २, अ.१, उ,, मू. ३७० में अल्पकाल का धोषन लेने का निषेध है, अधिक काल का बना हवा धोवन लेने का विधान है । तथा गृहस्य के कहने पर स्वतः लेने का विधान है। (४) आ. सु. २, अ. 1, उ.. सु. ३७३ में अनेक प्रकार के धोवन पानी का कथन है। इनमें बीप, गुठली आदि हो तो ऐसे पानी को छान करके देने पर भी लेने का निफ्ध है। (५) निशीथ उ. १७, मू. १३२ में अल्पकाल का धोवन लेने पर प्रायश्चित्त विधान है। अधिक काल का होवन मेने पर प्रायश्चित्त नहीं है । यहाँ ग्यारह बाह्य पानी के नाम है। () ठाणं. अ. ३, उ. ३, सू. १८८ में पउत्य, छ?, अट्ठम तप में ३-३ प्रकार के ग्राह्य पानी का विधान है । इन नव का कथन आ. सु. २, अ. १, उ. ७, मू. २६६-७० में है। (७) दशवकालिका अ. ८, गा. ६ में उष्णोदक ग्रहण करने का विधान है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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