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________________ - - -- - -- सूत्र ५६-६१ शय्यातर के सीरवाली भोजन सामग्री के ग्रहण का विधि-निषेध चारित्राचार : एषणा समिति [६२५ -- सागारियस्स गंधिषसाला निस्साहारण धक्कयपउसा, तम्हा सागारिक के सीर वाली गन्धियशाला में से मागारिक का दादए. एवं से कम्पइ पडिम्गादत्तए। सासदार सागा। रक के बिना सोर का सुगन्धित प्रदार्थ देता है, -वद. न. ६. सु. १५-३० तो साधु को लेना कल्पता है। सागारिय साहारण ओसहि गहणस्स विहि-णिसेहो- शय्यातर के सीरवाली भोजन सामग्री के ग्रहण का विधि निषेध५६. सामारियरस ओसहीओ संथडाओ, तम्हा दायए, नो से ५६. सागारिक के सीर वाली औषधियों (खाद्य सामग्नी) में से कम्प परिग्गाहेत्तए। यदि कोई निर्ग्रन्थ-निर्गस्थियों को देता है तो लेना नहीं - सागारियस्स ओसहीओ असंभडाओ, तम्गा दावए, एवं से सागारिक से बँटवार में प्राप्त खाद्य सामग्री में से कोई देता कपद पडिग्गाहेत्तए । -त्र, द. ६, सु. ३३-३४ है तो साधु को लेना कल्पता है । सागारिय साहारण अंब-फल गणस्स विहि-णिसेहो- माम्यातर के सीरबाली के आम्र फल ग्रहण करने का विधि-निषेध- . ५७. सागारियम्स अम्बफला संथडाओ, तम्हा दायर, नों से ५७. नागारिक के मीरबाले जान्न आदि फलों में से यदि कोई कम्पद पडिगाहेत्तए। निग्रन्थ-निग्रन्थियों को देता है तो उन्हें लेना नहीं कल्पता है। सागारियस्स अम्बफला असंयडा, तम्हा दावए, एवं से कम्पइ गागारिक से बंटवारे में प्राप्त आम्र आदि फल यदि कोई पडिगाहे लए। यव. उ. ६, गु ३५-३६ निर्गस्य-निग्नं श्रियों को देता है तो उन्हें लेना कल्पता है। सागारियपिंड मुंजमाणस्स पायच्छित्त सुतं सागारिक का आहार भोगने का प्रायश्चित्त सूत्र५८. जे भिक्खू सागारिम-पिडं भुजा, भुजंतं वा साइज्जा। ५६ जो भिक्षु सागारिक के पिष्ड को भोगता है, भोगवाता है या भोगने काने का अनुमोदन करता है। सं सेवमाणे आबज्जई मासिय परिहारहाणं उम्घाइयं । उसे मासिक उद्घात्तिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) भाता है। -नि.उ.२, सु. ४६ सागारियपिड गिण्हमाणस्स पायपिछत्त सुतं- सागारिक का आहार ग्रहण करने का प्रायश्चित्त सूत्र५६. जे भिक्ष सागारिय-पिण्ड गिण्हड, गिण्हतं वा साइज्जइ। ५६. जो भिक्षु शय्यातर के आहार को ग्रहण करता है, करवाता . . है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजह भासिय परिहारदाणं उग्धाइयं । उसे मासिका उदघातिक परिहारस्थान (पायश्चित्त) आता है। -नि. उ. २, सु.४५ सागारियकूल अजाणिय भिक्खा-गमणपायच्छित शय्यातर का घर जाने बिना भिक्षा गमन का प्रायश्चित्त' सुसं-- ६०. जे भिक्खू सागारिय-कुलं अजाणिय, अपुच्छिय, अगवेसिय, ६.. जो भिक्षु सागारिका के गृह को जाने विना, पूछे बिना और पुष्यामेव पिण्डवायपडियाए अणुपविसइ, अणुप्पविसतं या गवेषणा किये बिना आहार के लिए प्रवेश करता है, प्रवेश करसाइज्जइ। वाता है या प्रवेश करने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवस्जद मासिय परिहारट्टाणं उग्धाइय। उसे मासिक उघातिक परिहारस्मान (प्रायश्चित्त) आता है। ---नि. उ.२. सु. ४८ सापारियणिस्साए असणाइ जायमाणस्स पायच्छित सागारिक की निश्रा में अशनादि की याचना का प्राय श्चित्त सूत्र--- ६१. जे मिक्सू सागारिय णिस्साए अस वा पाणं वा छाइम वा ६१. जो भिक्षु सानारिक की निना में (दूसरे घर से) अशन, सुतं
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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