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________________ सूत्र ५४.५५ शध्यातर के सोरवालो के पदार्यों को ग्रहण करने का विधि-निषेध चारित्राचार : एषणा समिति [६२३ पडिग्गाहेत्तए । नार जीवन निर्वाह करता है। यदि उस आहार में से निर्ग्रन्थ निग्रन्थियों को देता है तो उन्हें लेना नहीं करपता है। सागारियस्सणायए सिया सापारियस एगवगडाए अंतो सागारिक का स्वजन यदि सागारिक के घर में हो सामासागारियस अमिनिपयाए नागारियं चोयजीबइ, तम्हा रिक के चूल्हे से भिन्न" चूल्हे पर सागरिक की ही सामग्री से शवए, नो से कम्पइ पडिग्याहेत्तए। माहारादि निष्पन कर जीवन निर्वाह करता है। यदि उम आहार में से निर्गन्ध-निर्गन्थियों को देता है तो उन्हें लेना नहीं कल्पता है। सागारियस्सणायए सिया सागारियस्स एगवगवाए बाहि सागारिक का स्वजन यदि सागारिक के घर में बाह्य विभाग सागारियस्स एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा वावर, में सागारिक के ही चूल्हे पर मागारिक की ही सामग्री से आहार नो से कप्पद पडिग्गाहेत्तए। निष्पन्न कर उससे जीवन निर्वाह करता है । यदि उस आहार में से निर्ग्रन्च-निर्गनियों को देता है तो उन्हें लेना नहीं कल्पता है । सागारियस्सणायए सिया सागारियस्स एगवयाए बाहि सागारिक का स्वजन यदि सागारिक के घर के बाह्य सागासागारियरस अभिनिपयाए सागारिय चोयजीवइ, तम्हा रिक के चूल्हे से भिन्न चल्हे पर सागरिक की ही सामग्री से वायए, नो से कप्पइ पडिग्गाहसए । आहार निप्पन कर जीवन निर्वाह करता है। यदि उस आहार में से निग्रंथा-निर्ग्रन्थियों को देता है तो उन्हें लेना नहीं कल्पता है . सागारिकस्सणायए सिया सागारियस्स अमिनिथ्वगाए एम- सागारिक का स्थगन यदि सागारिक के घर के भिन्न गह युवाराए एगमिक्खमण-पवेसाए अंतो सागारियरस एगपयाए विभाग में तथा एक लिफमण-प्रवेश द्वार वाले गृह में सागारिक सागारियं चोवजीवह, सम्हा दावए, नो से पप्पइ पहिग्गा- के ही चूल्हे पर सागारिक की ही मामग्री से. आहार निष्पन कर जीवन निर्वाह करता है । मदि उस आहार में से निर्ग्रन्थ-निग्रंथियों को देता है तो उन्हें लेना नहीं कल्पता है। सागारियस्सणायए सिया सागारियस्स अमिनिस्वगाए एगल सावारिक का स्वजन यदि सागारिका के घर के भिन्न गृह निक्खमण-पसाए अंतो सागारियरस अभिनिपयाए सागारियं विभाग में तथा एक निष्क्रमण-प्रवेश-द्वार वाले गुह में सागारिक चोवजीवइ, तम्हा बाबए, नो से कप्पद पडिगाहेताए । के चूल्हे से भिन्न चूल्हे पर सागारिक की ही सामग्री में आहार निप्पन कर जीवन निर्वाह करता है। यदि उस आहार में से निर्गन्य-निग्रंथियों को दे तो उन्हें लेना नही कल्पता है। सागारियरसणायए सिया सामारियस्स अभिनिश्वगढाए एग- सांगारिक का स्वजन यदि सानारिक के गह से भिन्न ग्रह बुवाराए एगनिवखमण-पवेसाए बाहि सागारियस्स एगपयाए विभाग में तथा एक निष्क्रमण-प्रवेश-द्वार वाले गृह के बाह्म माग सागारियं चोयजीवा, तम्हा दावए, नो से कप्पड पजिग्गा- में सागारिक के चूल्हे पर सागारिक की ही सामग्री में आहार हेलए। निष्पन्न कर जीवन निर्वाह करता है। यदि उस आहार में से नियन्त्र-निग्रंकियों को देता है तो उन्हें लेना नहीं कल्पता है । सागारियस्सणायए सियर सागारियस्स मभिनिव्यगाए एग- सागारिक का स्वजन यदि सागारिक के गृह से भिन्न गृह दुबाराए एगनिक्खमण-पसार, बहि मागारियरस अभिनिप- विभाग में तथा एक निष्कमण-प्रवेशद्वार वाले गृह के बाह्य भाग याए सागारियं चोवजीवर, तम्हा दावए, नो से कप्पइ में सागारिक के चूल्हे से भिन्न चूल्हे पर सागारिक की ही सामग्री पडिग्गाहे तए। -बचउ. ६, सु. E-१६ से आहार निष्पन्न कर जीवन निर्वाह करता है। यदि उस आहार में से निग्रन्थ-निधियों को देता है तो उन्हें जेमा नहीं कल्पता है। सागारिय साहारण पिंड गहणस्स विहि-णिसेहो- शय्यातर के सीरवाली के पदार्थों को ग्रहण करने का विधि-निषेध५५. सागारियस्स चक्कियासाला साहारण बक्कयपउत्ता, तम्हा ५५. सागारिक के सीरवाली चक्रिकापाला लेल की दुकान! - -
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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