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चरणानुयोग
साल्यातर के भागन्तुक निमित्तक आहार के प्रहण का विधि-निषेध
सूत्र ५२-५४
सागारिय-आगंतुग-निमित्त-आहारगहणस्स विहि- शय्यातर के आगन्तुक निमित्तक आहार के ग्रहप का णिसेहो
विधि-निषेध५२. सागारियस्स आएसे अन्तोषगडाए मुंजइ, निट्ठिए, निसठे, ५१. तम्यातर के यहाँ कोई आगन्तुक के लिये बर के भीतरी पाडिहारिए. तम्हा दावए, नो से कप्पद पडिगाहेत्तए। विमाग में आहार बनाया गया है उन्हें खाने के लिए प्रातिहारिक
रूप से दिया गया है । उस आहार में से वे आगन्तुक दें तो साधु
को लेना नहीं करूपता है। सागारियस्स आएसे बतोबगडाए भंजद, निट्ठिए निसट्टे शय्यातर के यहाँ कोई आगन्तुक के लिये घर के भीतरी अपाडिहारिए तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। विभाग में आहार बनाया गया है उन्हें खाने के लिये अप्राति
हारिक रूप से दिया गया है उस आहार में से थे आगन्तुक
तो साधु को लेना कल्पता है। सागारियस्स आएसे बाहिं यगडाए मुंजइ निदिए निसढे शाय्यातर के यहाँ कोई आगन्तुक के लिये घर के बाह्य भाग पाडिहारिए तम्हा दाबए, नो से कप्पइ पटिगाहेत्तए। में आहार बनाया गया है व उन्हें खाने के लिए प्रातिहारिक रूप
से दिया गया है उस आहार में से वे आगन्तुक को दें तो साधु
की सेना नहीं करता है। सागारियस्स आएसे बाहिं वगडाए मुंजइ निदिए निसठे शय्यातर के यहां कोई आगन्तुक के लिये घर के बाह्म भाग अपारिहारिए तम्हा दाधए, एवं से चप्पद पडिग्गाहेत्तए। में आहार बनाया गया है व उन्हें खाने के लिए अपातिहारिक
---वव. उ. ९. सु. १-४ रूप से दिया गया है, उस आहार में से वे आगन्तुक दें तो साधु
को लेना कल्पता है। सागारिय-दासाह-निमित्त आहार-गहणस्त विहि- शय्यातर के दासादि निनित्तक आहार के ग्रहण का णिसेहो
विधि-निषेध५३. सामारियस्स दासे वा, वेसे वा, भपए वा, भइभए वा अंतो ५३. गागारिक के दास, प्रेव्य, भूतक और मौकर के लिए आहार
वगडाए मुंजइ, निट्ठिए, निसट्टे, पाहिारिए, तम्हा दावए, बना है व उसे प्रातिहारिक दिया है वह उसके घर के भीतरी नो से कप्पद पडिग्याहेत्तए।
भाग में जीमत है उस आहार में से निबन्ध-नियंन्क्ष्यिों को दे
लो उन्हें लेना नहीं कल्पता है। सागारियस्स दासे वा, पेसे वा, मथए वा, भलए वा अंतरे सागारिक के दास, प्रेष्य, मृतक और नौकर के लिए आहार वगडाए मुंजइ, निट्टिए, निसट्टे, अपाडिहारिए, तम्हा बना है व उसे अप्रानिहारिक दे दिया है वह घर के भीतरी दावए, एवं से कप्पद पांडग्याहेत्तए।
भाग में जीमता है, उस आहार में से दे तो साधु को लेना
काल्पता है। सागारियल्स दासे था, पैसे वा, भप्रए या भइमए वा बाहिं सामारिक के दास, प्रेष्य, 'भूतक और नौकर के लिए आहार हाडाए मुंजद, निटुिए, निसट्ठे, पाउिहारिए, तम्हा दाबए, बना है व उसे पातिहारिक दे दिया है। वह घर के बाय भाग नो से कम्पई पडिग्याहेसए।
में जीमता है। उस आहार में मे स्थि -नियंन्धियों को दे तो
उन्हें लेना नहीं कलगता है। सागारियस्स दासे बा, पेसे वा, भयए वा भवभए वा बाहिं सागरिक के दास, प्रेष्य, भूतक और नौकर के लिए वगाए भंजद, निट्टिए, निसट्टे, अपाडिहारिए, तम्हा सागारिक के घर पर बाहार बना है व उसे अप्रातिहारिक दे दिया दाबए एवं से कप्पड़ पडिग्गाहेत्तए।
है। वह घर के बाह्य भाग में जीमता है। उस आहार में से दे
-चव. उ. ६. सु. ५-६ तो साधु को लेना कल्पता है। सागारियोपजीवी-णायगाणं आहार गहणस्स णिसेहो- शय्यातर के उपजीवी शातिजन निमित्तक आहार के
ग्रहण का निषेध५४. सागारियस नायए सिया सागारिपस्स एगवगवाए अंतो ५४. सागारिक का स्वजन यदि सागारिक के घर में सागारिक
एगपयाए सागारियं धोवजीवद, तम्हा दायए, नो से पद के एक ही चूल्हे पर सागारिक को ही सामग्री से आहार निष्पन्न