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________________ ६१४] चरणानुयोग आधा योजन उपरांत संखडी में जाने का निषेध सत्र ३४-३५ संखडी-गमन-.-११ परमद्धजोयण मेराए संखडोए य गमगाणिसेहो-- आधा योजन उपरान्त संखड़ी में जाने का निषेध३४. से भिषयू वा भिक्खूणी वापरं अजोयणमेराए संखडि ३४. भिक्षु या भिक्षुपी अर्द्ध योजन की सीमा से आगे संजडि संस्त्रडिपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। (बड़ा जीमनबार) हो यह जानकर संखडि में निष्पन्न आहार लेने के निमित्त से जाने का विचार न करे। से भिक्खु वा भिक्षुणी वा भिक्षु मा भिक्षुणी१. पाईण संखडि णकचा परीणं गच्छे अणाढायमाणे, (१) पूर्व दिशा में संम्बडि जाने तो वह उनके प्रति अनादर भाव रखते हुए पश्चिम दिशा में जाए। २. पडीसंखडि गच्चा पाईणं गच्छे अणाढायमाणे, (२) पश्चिम दिशा में संखमि माने तो उसके प्रति अनादर भाव रखते हुए पूर्व दिशा में चला जाए। ३. पाहणं संखडि परचा उदीयं गच्छे अणादायमाणे, (३) दक्षिण दिशा में संखडि जाने तो उनके प्रति अनादर भाव रखकर उत्तर दिशा में चला जाए । ४. उवीण संखडि णमचा दाहिणं गच्छे अगाढायमाणे । (४) उत्तर दिशा में संखडि जाने सो उसके प्रति अनादर भात्र रखकर दक्षिण दिशा में चला जाए। जत्पेव सा संखड़ी सिया, तं जहा संबडि जहाँ भी हो, जैसे किगामंसि वा-जाव-रायहाणिसि वा संकि संसपिडियाए जो गांव में हो-यावत्-राजधानी में हो, उस संखडि में अभिसंधारेज्जा गमणाए। संखडि के निमित्त से न जाए । केवली बूया-आयाणमेयं । केवलज्ञानी भगवान् कहते हैं-यह कर्मबन्धन का कारण है। -आ. सु. २, अ. १, उ, २, सु ३३८ संखडोगमणे उप्पण्णदोसाई संखडी में जाने से होने वाले दोष - ३५. संसद संखरिपजियाए अभिसंधारेमाणे आहाकम्मियं वा, ३५. संखडि में बड़िया भोजन लाने के नंकल्प से जाने वाला उद्देसियं वा मोसजाय वा, कोयगडं वा, पामिच्चं वा, भिक्षु आधार्मिक औशिक, मिन जात, फीत, प्रामित्या, बलात् अच्छेज्ज वा, अणिसिह्र वा अभिहडं वा आह१ दिज्जमाणं छीना हुआ, दुमरे के स्वामित्व का पदार्थ उसकी अनुमति के मुंजेज्जा, बिना लिया हुआ या राम्मुख लाकर दिया हुआ आहार खायेगा। अस्संजते सिक्युपटियाए तथा कोई गृहस्थ भिक्षु के खडि में पधारने की सम्भावना १. ड्डियदुवारियाओ महिलाओ मुज्जा, (१) छोटे द्वार को बड़ा बनाएगा, २. महल्लियनुवारियाओ षडियाओ कुज्जा, (२) बड़े द्वार को छोटा बनाएगा । ३. समाओ सेम्जाओ विसमामो कुज्जा, (1) समस्थान को विषम बनाएगा, ४. विसमाओ सेज्जाओ समाओ फुज्जा, (४) विषम स्थान को सम बनाएगा । ५. पयातामो सेज्जाओ गिवायाओ कुम्जा, (५) वातयुक्त स्थान को निति बनाएगा, ६. णिवायाओ सेज्जाओ पवाताओ कुज्जा, (६) निर्वात स्याम को हवादार बनाएगा, ७. अंतो वा, वहिं था उवासयस हरियाणी हिविय छिविय (७) उपाश्रम के अन्दर और बाहर (उगी हुई) हरियाली वालिय वालिय संघारगं संथारेज्जा, एस बिलुंगयामो को काटेगा, उसे जड़ से उखाड़कर वहाँ आप्तन बिछाएगा। इस सिग्माए। विचार से कि ये निग्रन्थ मकान का कोई सुधार करने वाले नहीं हैं।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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