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________________ ६०४ ] चरणानुयोग साधारण आहार को आज्ञा लेकर बांटने की विधि से तमायाए तत्य गच्छेअजा गच्छित्ता पुरुषामेत्र एवं वरेना -- सायनो संरेज्जा एवं से कह दो पि गाहाबडकुलं पिण्डाधिपतिए कृप. उ. ५ गु. ५२ साहारण आहारस्स असृनविय परिभाषण विहि१०. से सहारण या पिडा साधारण आहार को आज्ञा लेकर वाँटने की विधि१०. कोई एक भिक्षु साधमिकाओं के लिए सम्मितिहा अणापुच्छित्ता जस्स जस्स इच्छ तस्स तस्स खयं वपाति लेकर आता है और उन साधर्मिक साधुओं से बिना पूछें ही जिस मातिठाणं संफासे । जो एवं करेक्शः । जिसको देना अच्छा अच्छा (अनुकूल) आहार देता है, तो वह माया स्थान का सशं करता है। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। 1 प० "आउसंतो समणा ! संति भम पुरेसंधुया वा पच्छासंया या सं जहा आयरिए वा उगाए चा पाणी वा गरे वा णाम अधिया एरोसिस हामि ?" से वदतं परो वदेज्जा क्षा, उ०- कामं खलु आउसो ! अहापज्जत निसिराहि जावहयं जावइयं परो यज्जा तावइयं तावदयं णिमिरेज्ज्ञा । सव्वमेतं पदो वा सथ्यमेनं विसि रेज्जा । -आ. सु. २, अ. १, उ. १० सु. ३६६ समण माहणाईणं जगाए गहिय आहारस्स परिभाषण भुजण विहि I ११. से भिक्खू वा भिक्खूणी वा ग्राहावइकुलं विश्ववायडियाए अपसमा से पुणे जाणेज्जा-समणं वा माहणं जा, गामपिडोलगं था, गतिहि वा पुथ्यपषिट्ठ पेहाए णो लेसि संलोए सवारे चिट्ठेज्जा । केवली वूया आयाणमेयं । पुरा हाए तथा परो असणं यासा बलज्जा । अह भिक्खूर्ण पुostafट्ठा एस पतिष्णा जाव एस उवएसे जं णो तेसि संलोए सपडदुवारे चिट्टिज्जा । से लगाए एसपा एवं तमवक्त मिला मागा चि N से बरी अणावातलो चिटुमागास असणं वावा-सा वा आहद्दु लज्जा, से सेवं बबेज्जा- सूत्र ९-११ wwwwww यदि उस गृहीत आहार से निर्वाह न हो सके तो दूसरी बार आहार के लिए जाना कल्पता है। उस साधारण आहार को लेकर स्थान पर जावे, वहाँ साधकों को पहले ही पूछे कि- प्र० आयुष्माम् श्रमणो वहाँ मेरे पूर्व परिचित (जिनसे दीक्षा अंगीकार की है) तथा पश्चात् नरिचित (जिनसे श्रुताभ्यास किया है जैसे कि उप प्रवर्तक स्थविर, गण छेद है। क्या मैं इन्हें पर्याप्त (अनु) आहार दूं ?" उसके इस प्रकार कहने पर यदि वे कहें उ०- "आयुष्मान् श्रमण ! तुम अपनी इच्छानुसार इन्हें अनुकूल आहार दे दो।" ऐसी स्थिति में जितना जितन। वे कहें, उतना उतना आहार उन्हें दे दे। यदि वे कहें कि (अमुक) सारा अनुकूल आहार दे दो तो सारा का सारा दे दे । धगण ब्राह्मण आदि के लिये गृहीत आहार के मांटने खाने की विधि १२. भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करते समय यदि यह जाने की श्रमण ब्राह्मण, ग्राम विण्डोलक ( ग्राम्य भिक्षोपजीवी) और अनियत तिथि से भिक्षा ग्रहण करने पहले से ही प्रवेश किये हुए हैं तो उन्हें देखकर उनसे टि पथ में या उनके मार्ग में खड़ा न होते । केवली भगवान् से कहा है- यह कर्मबन्ध का कारण है। मामने खड़ा देखकर गृहस्य उस साधु के लिए अपन - यावत्-स्वाद्य वहाँ लाकर देगा | शुओं के लिए पहले से यह प्रतिय उपदेश है कि भिक्षु उनके दृष्टि पथ में या मार्ग में खड़ा न होवे । किन्तु एकान्त स्थान में चला जाये, वहां जाकर कोई आताजाला न हो और देखता न हो, इस प्रकार से खड़ा रहे । भिक्षु को अनापात और असंलोक स्थान में खड़ा देखकर गृहस्य भजन- यावत् स्वाश्च लाकर दे, साथ ही वह यों कशे
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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