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सूत्र ३७-३
तिषिहे धम्मे पण्णत्ते तं जहा
१. सुध
२. परिधम्मे
३. अस्थिकायधम्मे ।
तिविहे भगवया धम्मे पण्णसे, तं जहा
सुबहिनिए.
सुझाइए
सुतस्सिए ।
धर्म के भेव-प्रभेद
जया सुअहिज्झियं भवइ, तथा सुझाइयं भवइ । जया सुझाइ भवइ, तया मुतयस्सियं भवइ । सेएाइए तवस्तिए, सुक्खाए भगवा धम्मे पण्णत्तं । - अ० अ० ३ ०४, ० २१७
३८. सविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा
गाम्मे भयो र पाम्मे कुलधन्ये, गण धम्मे संप
००१००७६०
३८. समितं यंति, मुसि विवाए, मंगचेरवासे ।
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मये, साधये, सच्चे संमे
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(३) अस्तिकाय - धर्म - प्रदेश वाले द्रव्यों को अस्तिकाय कहते - ०० ३,२०३, सु० १९४ हैं और उनके स्वभाव को अस्तिकाय-धर्म कहा जाता है । भगवान ने तीन प्रकार का धर्म कहा है, यथा
धर्म तीन प्रकार का कहा गया है
(१) श्रुतधर्म - वीतराग भावना के साथ शास्त्रों का स्वाध्याय रखना ।
(२) चारित्र धर्म मुनि और श्रावक के धर्म का परिपालन
करना ।
धर्म-ज्ञाना
(१) सु-अधीत ( समीचीन रूप से अध्ययन किया गया), (२) ध्यान (समीचीन रूप से चिन्तन किया गया ).
(३) पति-परित)।
-- ठाणं० अ० १०, सु० ७१२ (१०) ब्रह्मचर्यवास |
जय धर्म-अधीत होता है, तब यह
होता है। होता है।
जब वह सुध्यात होता है, तब वह
सुजीत गुप्त और सुवास्थित धर्म को भगवान ने सु-आख्यात (स्वाख्यात) धर्म कहा है ।
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३८. धर्म दस प्रकार का कहा गया है। यथा-. (१) धर्म (२) नगरधर्म, (३) राष्ट्रधर्म, (४) धर्म, (५) कुलधर्म, (६) गणधर्म, (७) संघधर्म ( 5 ) श्रुतधर्म, (१) चारित्र (१०) अस्तिकाय गं ।
३६. श्रमणधर्म दस प्रकार का कहा गया है। यथा
(१) क्षमा, (२) अलोभ, (३) सरलता, (४) मृदुता, (५) लघुता, (६) सत्य, (७) संगम, (८) तप (६) प्यास,
२ (क) चत्तारि धम्मदारा पण्णत्ता, तं जहा
संति, मुक्ति, अज्जवे, मद्दवे ।
(स) पंच अज्जवठाणा पण्णत्ता तं जहा माहु अज्जवं माह मुद्दयं, साहू लाघवं
साहु
१ इन दस धर्मो में पहले चार धर्म लौकिक धर्म हैं। पांचवा छटा और मात्रा लौकिक एवं लोकोत्तर दोनों धर्म हैं। आठवीं और न लोकोत्तर धर्म हैं।
व्यधर्म है।
संति,
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-जाणं ४, ३०४, ० २७२ साहु मुनि |
ठाणं अ० ५ ३० १, सु० ४००
(ग) सम० १० गु० १
(प) चाई, ज्यूस, तिल, जिनिदिए सोहिए, अधिणे, महिलेने नगमे ।
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० मंगरद्दार, ५, ० ९
.
(ग)
धम्मदिन
जे भित्र जयई निच्वं से न अच्छ मंडले ।
- उ० अ० ३१, गा० १०
(छ) पंच ठाणा समणेयं भगवता महावीरेण समणानं णिग्गंधाणं णिच्च वण्णिताई निच्च कितिवादं णिच्च बुझ्याई पिच्चं पत्याई चित्रमभुनाता भवति तं जहा ती मुक्ती, अज्ज, महत्रे, लाघवे । पंचागा समये भगवा महावीरेण समयागं विधानं शिवं वणिपाई जब मियां २. संजये, ३. तवे, ४. चियाए, ५. बंमचेरवासे ।
जहा
- अ० अ० ५.३० १ ० ३६६