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चरणानयोग
यात्रामत राज का आहार ग्रहण करने के प्रापरिचत्त सूत्र
सूत्र ६८६-६८
पंचरायाओ गाहावहकुलं पिशवाय-पडियाए 'णिक्खमइवा, के बाद भी गाथापति कुल में आहार के लिए प्रवेश करता है या पविसई वा, णिक्षमतं वा, पविसंत बा साइज्जह । तं निकलता है, प्रवेश करवाता है या निकलवाता है. प्रवेश करने जहा
बाते का या निकलने वाले का अनुमोदन करता है । यथा१.कोडागार-सालाणि वा, २. भंडागार-सालापि था, (१) कोष्ठागार शारा, (२) भाण्डागारशाला, ३. पाण-सालाणि वा, ४. खीर-सालाणि वा, (३) पानशाला,
४) क्षीर शाला, ५. गंज-सामाणि बा, ६. महाणस-सालाणि बा। (५.) गजशाला,
(६) महानसशाला (रसोई) तं सेवमाणे भायज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्टाणं अणुग्याइयं । जसे चातुर्मासिक अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ. ६, सु.७ आता है। मुद्धाभिसित्तरायाणं जतागयाण आहार-गहणस्स यात्रागत राजा का आहार ग्रहण करने के प्रायश्चित्त पायच्छित्त सुत्ताइं ..
सूत्र-- ६८७. जे भिक्खू रणो खत्तियाणं मुद्दियाणं मुखामिसिसाणं बहिया ६८७. जो भिक्षु शुदवंशीय नर्धाभिरिक्त क्षत्रिय राजा यात्रा के
जत्ता - पट्टियाणं असणं वा-जाव-साइमं दा पहिगाहेह, लिए बाहर जा रहे हों उस समय उनका अशन – यावत् - पडिग्गाहेत वा साइज्जइ ।
स्वाथ आहार ग्रहण करता है, करवाता है या करने वाले का
अनुमोदन करता है। जे भिक्खू रपणो खत्तियाणं मुदियाणं मुशामिसित्तागं बहिया जो भिक्षु शुद्धवंशीय मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा यात्रा से जत्ता-पडिमियत्ताणं असणं बा-जाव-साइमं वा पछिमाहेइ, लौट कर आ रहे हों उस समय उनका अशन-पावत्-स्वाब परिग्गाहेत बरसा इन्जा।
लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुहियाणं मुखाभिसित्ताणं णा - जो भिक्षु युद्धबंशीय मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा नदी यात्रा जत्सा-पट्टियागं असणं वा-जाम-साइमं वा पडिग्गाहेइ. पडि- के लिए जा रहे हो उस समय उनका अशन-यावत् –स्वाद्य ग्गाहेंतं वा साहज्जह ।
ग्रहण करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। में भिक्खू रण्णो खतियाणं मुद्दियाणं मुशामिसित्ताणं ण्इ- जो भिक्षु शुद्धवंशीय मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय रजा नदी यात्रा जत्ता-पडिणियत्ताणं असणं वाजाव-साइन या पडिग्गाहेइ, से लौटकर आ रहे हों उस समय उनका अशन-यावत्पडिग्गाहेंतं वा साइज्जई।
स्वाय चहण करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन
करता है। जे भिक्खू रण्णो खसियाणं मुहियाणं मुखाभिसित्ताणं गिरि- जो भिनु शुक्रवंशीय मुर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा पर्वत यात्रा जत्ता-पट्टियाणं असणं वा-जाव-साइम वा पडिग्गाहेइ, पडि- के लिए जा रहे हों उस समय उनका अशन-यावत् --स्वाद्य गाहेंतं वा साइजद।
ग्रहण करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू रणो बत्तियाणं मुहियाणं मुखाभिसित्ता गिरि- जो भिक्षु मुबंशीय मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा पर्वत यात्रा जत्ता-पडिणियत्ताणं असणं चा-जाव-साइमं चा पडिग्गाहेइ, से लौटकर आ रहे हों उस समय उनका अशन--यावत्पडिग्गाहेंतं वा साइज्ज।
स्वाद्य ग्रहण करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन
करता है। ते सेवमाणे आबज्जइ चाउम्मासिय परिहारट्टाणं अणुग्धाइयं। उसे चातुर्मासिक अनुश्वात्तिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
- नि. इ. ६, सु. १२-१७ आता है। मुद्धाभिसित्त रायाणं णीहड-आहार-हास्स पायच्छित्त. मूर्वामिषिक्त राजा के निकाले हुए आहार लेने के प्रायसुत्ताई
श्चित्त सूत्र-- १८. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुद्दियाणं मुशाभिसिनाणं असणं ९८. जो भिक्षु शुद्धवंगीव मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा का दूगरों
पा-जाब-साइमं वा परस्स णीहडं पडिम्याहेड, पडिग्गाहेतबा को देने के लिए बाहर निकाला हुआ अमन-यावत्-स्वाध साइम्जह । तं जहा
लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। यथा१. खत्तियाण वा, २. राईण वा, ३. कुर ईण वा, १) क्षत्रियों को, (२) राजाओं को, (३) कुराजाओं को, ४. राय-वसट्टियाण वा, ५. राय-पेसियाण वा।
(४) राजा के सम्बन्धियों को, (५) राजा के भुल्यों को,