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मूत्र ६८८-६८६ मूर्वाभिषिक्त राजा के अनेक प्रकार के बाहार ग्रहण का प्राथम्बित सूत्र चारित्राचार : एषणा समित्ति
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भिषवं च गं रायतेपुरिया वएग्जा
यदि भिक्ष को अन्तःपुर की दासी ऐमा कहे"आउसंतो समणा ! णो खलु तुझ कप्पद रायतेपुर णिक्ख- "हे आयुष्मन् श्रमण ! तुम्हें राजा के अन्तःपुर में निष्क्रमण मित्तए वा, पविसितए था।
या प्रदेश करना नहीं कल्पता है। आहरेयं पडिग्गहगं जाए अहं रामंतेडराओ असणं वा-जाव- अत: यह पात्र मुझे दो 'जससे मैं अन्तःपुर से अशन-यावत्साइमं पर अभिहर आहट्ट दलयामि'--.
वाद्य तुम्हें लाकर दूं।" जो तं एवं वयंती पडिसुणेई, पडिमुणतं वा साइजद । जो उसके इस प्रकार के कथन को स्वीकार करता है, कर
बाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जइ चासम्मासियं परिहारटुाणं उमे गातुर्मासिक अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) अणुग्धाइयं ।
--- नि. उ. ६, सु. ३.५ आता है। मुद्धाभिसित्तरायाणं विविपिडाहणस्स पायच्छित- मूर्धाभिषिक्त राजा के अनेक प्रकार के आहार ग्रहण का सुत्ताई
प्रायश्चित्त सूत्र१८५. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुद्दियाणं मुखाभिसितागं । १८५. जो भिक्षु शुद्धवंशीय मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा के१. दुवारियभत्तं दा,
(१) द्वारपालक के निमित्त किया हुआ भोजन, २. पसु-मत्तं वा,
(२) पशुओं के निमित्त किया हुआ भोजन, ३. भयग-भत्तं वा,
(३) नौकरों के निमित्त किया हुआ भोजन, . ४. बल-भत्तं वा,
(४) संनिकों के निमित्त किया हुआ भोजन, ५. कयग-मत्तं वा,
(५) काम करने वालों के निमित्त किया हुआ भोजन, ६. हय-मत्त वा,
(६) घोड़ों के निमित किया हुआ भोजन, ७. गय मस' वा,
(७) हाथियों के निमित्त किया हुआ भोजन, ८. कतार मत्त वा,
(८) अस्थी के यात्रियों के निमित्त किया हुआ भोजन, १. दुविभक्तमत्त वा,
(६) दुर्भिक्ष में देने के लिए किया हुआ भोजन, १७. वमग-भत्तं वा,
(१०) दीन जना के लिए देने योग्य भोजन, ११. गिलाण-मत्त वा,
(११) रोगियों के लिए देने योग्य भोजन, १२. बद्दलिया-मत्त वा,
(१२) वर्षा से पीड़ित जनों को देने योग्य भोजन, १३. पाहुण-भत्तवा, पडिग्गाहेड पडिगाहतं वा साइजह ।। (१३) मेहमानों के लिए बनाया हुआ भोजन, लेता है,
लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेयमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाण उसे चातुर्मासिक अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) अणुग्धाइम।
-नि. उ. ६, मु.६ आता है। जे भिक्खू रपणो खत्तियाणं मुदियाणं मुसामिसित्ताणं। जो भिक्षु तुद्धवंशीय मूभिषिक्त क्षत्रिय राजा का१. उस्सट्ट-पिड वा, २. संसट-पिट वा, ३. अथाह (१) त्यक्त भोजन, (१) बचा हुआ भोजन, (३) अनायों के पिया, ४. किविण-पितवा,
निमित्त निकाला हुआ भोजन, (४) गरीबों के लिए निकाला ५. वणिमग-पिडं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्मइ। हुआ भोजन, (५) भिखारियों के लिए निकला हुआ भोजन
लेता है, लिवाता है, तेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे बावज्जह चाउम्मासियं परिहारट्टाणं अणुघाइय। उसे अनुघातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
मुडाभिसित्तं रायाणंछ दोसायतणाई अजाणिय भिक्खा- मुर्दाभिषिक्त राजा के छः दोपायतन जाने बिना गोचरी गमण-पायच्छित्त सुतं
जाने का प्रायश्चित्त सूत्र१८६. जे भिक्खू रपणो खत्तियाण मुहियागं मुसामिसिसाणं माई १८१. जो भिक्षु शुद्धबंशीय मूर्दाभिषिक्त राजा के प्रः दोषायतनों
छदोसायणाई अजाणिय अपुच्छिय अगवेसिय परं चउराय- को जने बिन', पूछ विना, गवेषणा किये बिना चार पाँच रात