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________________ सूत्र ६७७-६७६ नित्य दान में दिये जाने वाले घरों से आहार लेने का निषेध शरित्रासार : एषणा समिति ५८६ ६. अग्गापडं परिविज्जमाणं पेहाए। (६) अग्रपिंड इधर डाला जा रहा है, या फेंका जा रहा है। पूरा असिणाइ वा, अबहराइ वा, पुरा जत्थाणे समण-जान- तथा श्रमण आदि अग्रपिंड वाकर चले गये हैं या लेकर चले वणीमगा खवं खवं उपसंकमंति-से हंता अहमबि खा खा गये हैं, अथवा जहाँ अन्य श्रमण-~-यावत् - भिक्ष वा जल्दी जल्दी उपसकमामि, माइट्ठाणं संकामे, जो एवं करेजा-- जा रहे हैं अतः मैं भी जाकें (और अपिंड प्राप्त करू) ऐना -आ. सु. २, अ.१. उ. ४, सु, ३५२ विचार करे तो वह मापा का सेवन करता है इगलिए ऐसा में बारे। णिच्चवाण-पिण्ड-गहण-णिसेहो - नित्य दान में दिये जाने वाले घरों से आहार लेने का निषेध-- ६७. से भिख्खू या भिक्खूणो वा गाहाबकुल पिंडवाप-पडियाए ९७८. भिक्ष या भिक्षणी आहार के लिए गृहस्थ के घर में पविसिजकामे सेज्जाई पुण कुलाई जाणेज्जा-इमेसु खनु प्रवेश करना चाहे तो इन कुलों को जाने ... कुलेसु। १. णितिए अग्गपिडे बिज्जद।' (१) जिनमें नित्य अपिट दिया जाता है। २. णिसिए पि दिज्नह। (२) जिनमें नित्य पिंड दिया जाता है। ३. णितिए अबढ़ भागे दिग्जा। (३) जिनमें नित्य आधा भाग दिया जाता है। ४. णितिए पाए दिज्जइ । (४) जिनमें नित्य तीरारा चौथा भाग दिया जाता है। ५. णितिए उवभाए विज्जइ । (५) जिनमें नित्य छठा-आठवा भाग दिया जाता है। तहप्पगाराई कुलाई नितियाई नितिउमाणाइं नो पसाए वा, नित्य दान दिये जाने वाले और श्रमण आदि जहाँ निरन्तर पाणाए वा णिक्वमेज्ज वा, परिसिज्ज वा। प्रबेया करते रहते हैं- ऐसे कुलो में भिक्ष भात-पानी के लिए —आ. सु. २, अ० १, ३० १, सु० ३३३ निष्क्रमण प्रवेश न करे। मिच्च दाण पिडाइ भंजमाणस्स पायच्छित्तसुत्ताई- नित्यदान पिंडादि खाने के प्रायश्चित्त सूत्र१६. जे भिक्खू नितिय अग्गपिङ मुंजद भुजंतं वा साइज।। ९७६. जो भिक्ष नित्य अप्रपिंड भोगता है. भोगवाता है, भोगने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू नितियं पिर भुजह, भुजंतं वा साइज्जद । जो भिक्ष नित्य पिंट भीगता है, भोगवाता है, भोगने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू नितियं अवड्यू-भागं भुजई. भुजतं वा नाइज्जई। जो भिक्ष नित्य पिंड का आधा भाग भोगता है, भोगवाता है. भोगने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू नितियं भाग भुजह, मुंजतं वा साइन्जद्द । जो भिक्ष नित्ल पिंड का टोसरा चौथा भाग भोगता है. भोगवाता है, गोगने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू नितियं उवभागं भुलइ, भुजतं वा साइज्जइ जो मिक्ष नित्य पिंड का था, आठवाँ भाग भोगता है, भोगवाता है. भोगने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजह भासियं परिहारट्टा उचाइ । उसे नासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. २, मु. ३२-३६ आता है। -....----... -MANE- HEI. किसी एक घर से नित्य आमंत्रित भिक्षा लेना तीसरा अनाचार है। देखिए----दभ, अ. ३, गा.२ की चूर्णी व टीना तथा अ. १, गा. ४८ तथा नि. भाष्य गा. ६६६ । अनेक स्थलो के उद्धरण सहित संग्रह के लिए देखें मुनि नथमलनी संपादित दशव. अ. ३ का टिप्पण। २ पिंडो खन्नु भत्तट्ठो, अवड्ढ पिंडो उ तस्स जं अद्ध । भागो निभागमादी, लस्सद्धमुबहभागो य । -नि. भाष्य, गा.१००६ इस गाथा में ४ सूत्रों के शब्दार्च का संग्रह कम से हुआ है । तया नित्य अग्रपिंड सूत्र की व्याख्या इसके पूर्व हुई है। तदनुसार आवारांग व निशीच सूत्र के अन सूत्रों का क्रम व्यवस्थित किया गया है। HAMAN"..
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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