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सत्र.९७०-६७३
छवित दोष
चारित्राचार : एषणा समिति
[५८७
छड्डिय दोसं
छदित दोष९७०. आहारतो सिया तत्य, परिसाडेन्ज भोयणं ।
१७.. भिक्षा लाती हुई स्त्री यदि मार्ग में जगह-जगह आहार बेतियं पडियाइक्खे, न मे कल्पड़ तारिसं ॥
गिराये तो भिक्ष, उस भिक्षा देने वाली को कहे-तू आहार -दस ५. अ. ६. गा. २... राते हुए ला रही है अतः) "ऐसा आहार मुझे लेना नहीं
कल्पता है।"
ॐ
एषणा विवेक-७
१. गर्भवती निमित्त निर्मित आहार-गर्भवती की दोहद पूर्ति के लिए बना हुआ आहार । २. अरष्ट स्थान --जहाँ अंधकार हो वहां से आहार लेने का निषेध । ३. रजपुक्त आहार-विक्रय के लिए रखे हुए रजयुक्त खाद्य पदार्थ । ४. संघट्टण-पुष्पादि जहाँ विखरे हुए हों वहां से आहारादि लेना। ५. उल्लंघन मार्ग में बैठे हुए या द्वार के मध्य में बैठे हुए बालक, बछड़ा तथा श्वान आदि को लाँचकर आहारादि दिए जाने पर लेना अथवा उक्त प्राणियों को हटाकर आहारादि लेना । ६. बहुजसित धर्मिक-काँटे गुठली आदि फंकना पड़े ऐसे खाद्य पदार्थ लेना । ७. अमपिण्ड-भिक्षाचरों को देने के लिए बनाया हुआ आहार लेना । ८. नित्यपिण्ड-जिस गृहस्थ के यहाँ प्रतिदिन आहारादि का निश्चित भाग दिया जाता है उस घर से आहारादि लेना। ६. आरण्यक-अटदी पार करने वाले यात्रियों से आहारादि लेना। १०. नैवेद्य-देवताओं के अर्घ्य के लिए अपित किये हुए आहारादि में से कुछ भाग लेना । ११. अत्युषण आहार-अत्यन्त गर्म आहार ग्रहण करना दाता को नष्ट हो या पात्र फूट जाय इत्यादि कारण से अग्राह्य होता है।
१२. राजपिण्ड राजा या राज परिवार या राज कर्मचारियों के निमित बने हुए आहारादि लेना । गग्विणी निमित्त-णिम्मिय-आहारस्स विहि-णिसेहो- गर्भवती निमित्त निमित आहार का विधि निषेध-- ९७१. गुन्धिणीए उवप्नत्यं, विविहं पाणभोरणं ।
१७१. गर्भवती के लिए बनाया हुआ विविध प्रकार का भकभुज्जमाणं विबज्जेज्जा, अत्तसेसं पडिच्छए ।'
पान यह ला रही हो तो मुनि उसको ग्रहण न करे, खाने के बाद -दस. अ. ५, उ. १, गा. ५४ बचा हो वह ग्रहण कर सकता है। अदिट्ठाणे गमण-णिसेहो--
अहष्ट स्थान में जाने का निषेध९७२. नीयदुवार तमस, फोटुगं परिवज्जए।
१७२. जहाँ चक्ष का विषय न होने के कारण प्राणी भलीभाति · अचक्खुविसओ जत्य, पाणा दुप्पडिलेहगा ।
न देखे जा सन से नीचे द्वार वाले अन्धकार युक्त स्थान में -दस अ. ५. उ. १, गा, २० आहार आदि के लिए न जावे ।। रजजुत्त-आहारस्स गहण-णिसेहो
रजयुक्त आहार ग्रहण करने का निषेध९७३. तहेव सत्तचष्णाई, कोलुग्णाई आवणे । ६७३. सत्तू, बेर का चूर्ण, तिलपपड़ी, गीला गुड़, पूआ इस
सबकुलि फालियं पूर्य, अन्न वा वि तहाविहं॥ तरह के अन्य भी खाद्य पदार्थ जो बेचने के लिए दुकान में रखे
१ गभिणी से आहार लेने का निषेध और स्तनमान करती हुई स्त्री से आहार लेने का निषेध देखिए-दायक दोष में ।