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________________ ५८६ चरणानुयोग सचित्त रुप से लिप्त हस्तादि से आहार ग्रहण के प्रायश्चित सूत्र सचित्तदन्वेण संसद्वहत्याइणा आहार-गहण-पायच्छित्त सचित्त द्रव्य से लिप्त हस्तादि से आहार ग्रहण के प्रायसुत्ताई दिचत्त सूत्र६६६. से भिक्खू.... १. उबल्लेण चा, २. ससिणिण का, हत्येण ६६६. जो भिक्ष --(१) गोले या, (२) लिप्त हाथ से, पात्र से, ना, मतेण वन्नीएण वा, भापणेण बा, असगं वा-जाब-साइमं चमचे से या भाजन से अगन--यावत् -स्वाद्य ग्रहण करता है, वा पडिग्गाहेह, परिगाहेत वा साइजद । करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू-- इसी प्रकार जो भिक्ष - ३. ससरक्षेण या, ४. मट्टिया संस?ण वा. ५. असा (३) सचित्त रज, (४) सचित्त मिट्टी, (५) सचित्त ऊस, संस?ण वा, ६. लोणिय संसट्टण वा, ७. हरियास संसट्ठण (६) सचित्त नमक, (७) सनित्त हरिताल, (८) सचित्त मनशिला, वा, ८. मणोसिला संस?ण वा. ६. वणिय संनद्वेग वा, (६) सचित्त पीली मिट्टी, (१०) मचिन गेरू, (११) सचित्त १७. गेरुय संस?ण वा, ११. सेठिय संस?ण बा, १२, श्वेतिका, (१२) सचित्त फिटकरी. (१३) सचित्त हिंगलु, (१४) सोरदिय संस?ण वा. १२. हिंगुलय संस?ण वा, १४. अंजण सचित्त अंजन, (१५) सनित्त लोध, (१) सचिन तुष, (१७) संस?ण वा, १५. लोड संसट्टण बा, १६, कुक्कुससं?ण सवित्त पिष्ट, (१८) सचित्त कंतव, (१६) सचित्त कंद मूल, वा, १७. पिट्ट संस?ण का, १८. कंतब संस?ण वा, १६. (२०) सचित्त अदरक, (२१) सचित पुष्प मा (२२) सचित्त कंदमूल संस?ण वा, २३. सिंगबेर संम?ण वा, २१. पुरफय वनस्पति चूर्ण (चटनी) से संसृष्ट अथवा संस?ण वा, २२. उपकुट्ट संसट्ठीण ना असंसट्टेण वा हत्येण वा, मत्तण वन्यौए या, भायणेण वा असंसृष्ट हाथ से पात्र ने, चम्मच रो, भाजन से अशन असणं वा-जाब-साइमं बा पहिगाहेइ, पडिगाहेंत था . यावत्--स्वाद्य को ग्रहण करता है, करवाता है पा करने वाले साइज्जद। का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजा मासियं परिहारदाणं उग्याइयं। उसे मासिवा उद्घतिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। -नि. उ. ४, सु. ३८-३६ जे भिक्षु अण्णउत्यियाणं वा, मिहत्थाणं वा। जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहन्थ के, सीओवग-परिभोगेण हत्येण वा, मत्तण वा, वरिखएण वा, शीतोदक से भीगे हुए हाथ में, गीले पात्र से, चमच से, भाषणेण या, असणं वा-जाव-साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिगा- भाजन से अपन-यावत् --खाद्य पदार्थ दिया हुबा लेता है, हेत वा साहज्जा । निवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज चाउम्मासिय परिहारहाणं जाघाइये। उसे चातुर्मासक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ.१२, शु. १५ आता है। -.- (पिछले पृष्ठ का पोष) ६ अंजयगतेण हत्थेण, दवीए भायणैण वा । देतियं परिवाइक्स, न मे कप्पा तारिमं ।। १० लोणगतेण हत्येण, देवीए भामणेण वा । देतियं पटियाइक्वे, न मे कप्पइ तारिस ।। ११ गेल्यगतेण हत्येण, दन्वीए भायणेण वा । ऐतियं पटियाइखे, न मे कप्पइ तारिस । १२ बरिणयगतेण हत्थेष, दबीए भायणेण वा। लियं पडियाइक्ले, न मे कप्पा तारिस । १३ रोवियगतेण हत्थेण, दवीए भायर्णण वा। देतिय पडिजाइन, न मे कण्पद तारिस ।। १४ सोरद्वियगतेण हत्येण, दबीए भायर्णण बा । देतियं पटियाइन्वे, न मे कप्पइ तारिस ।। १५ पिट्ठगतेण हत्येण, दबीए भायण था। देंतिय पडियाइवे, न मे कप्पइ तारिस ।। १६ कुक्कुसगतेण हत्येण, दवीर भायगेण । देतियं पडियाइवखे, न मे कमइ तारिस । १७ टक्कुटुगतेण हत्येण, दबीए भाषणे ण बा। देतियं पडियाइनमे, न में कप्पट वारिमं ।। १८ असंस?ण हत्थेण, दवोए भायण वा । दिज्जमाणं न इसज्जा, पच्छाकम्म जहि भवे ।। १६ संसटूण हत्थेण, दब्बीए भायणेण वा । दिज्जमाणं पडिपहेजा, जं तत्सणियं भवे ।। -स. ५. उ., गा. ३३-११ १ इन प्रायश्चित्त सूत्रों में संसृष्ट हाथ आदि २२ प्रकार के कहे है । बस. अ. ५, अ.१गा. ३६-५० तक में तथा आ. सु.२, अ. १. उ. ६, सु.३६० में कुछ कम कहे गये हैं, साथ ही इनमें क्रमभेद भी हैं ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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