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________________ सूत्र ६६८ संसृष्ट हाथ आदि से आहार ग्रहण के विधि-निषेध चारित्राचार : एषणा समिति [५८५ लिहदोससंसट्ठ-हत्थाइणा आहार-महण-विहि-णिसेहो६६८. १. अह पुण एवं जाणेज्जा-णो पुरेकम्मकडे, उदउल्ले। तहप्पगारेण उवउल्लेण हत्येण बा-जाव-भायणेणं वा असणं बा-जाव-साइम वा अफासुयं-जाव-णो पडिगाहेजजा, २. अह पुण एवं जाणेज्जा-णो उदउल्ले, ससिणिजे । (६) लिप्तदोषसंसृष्ट हाथ आदि से आहार ग्रहण के विधि-निषेध६६८. (१) भिक्ष यादे यह जाने कि (हाथ-यावत्-भाजन) पूर्वकर्मात नहीं है किन्तु पानी से गीले हैं। ऐसे गीले हाथ यावत् भाजन से दिये जाने वाले अशन -यावत्-स्वाद्य को अप्रासुक जानकर --यावत्-ग्रहण न करे। (२) भिक्ष. यदि यह जाने कि (हाथ-यावत्-भाजन) गीले नहीं है किन्तु स्तिग्ध हैं। ऐरो स्निग्ध हाय-यावत्-भाजन से दिवे जाने वाले अशन . यावत्-स्वाञ्च को मासुक जानकर-यावत् ग्रहण न करे । इसी प्रकार (हाथ - यावत्-भाजन (३) मचित्त रज, (४) सचित्त मिट्टो, (५) सारी मिट्टी. (६) हरताल, (७) हिंगलु, (८) मेनसिल, (8) अंजन, (१) लवण, (११) गेरू, (१२) पाली मिट्टी, (१३) खड़िया (१४) फिटकरी, (१५) तन्दुल चूर्ण, (१६) चोकर या (१७) हरी वनस्पति के चूर्ण से संसृष्ट हैं। तहप्पगारेण ससिणिद्वेण हत्येण सा-जाव-मायणेण वा असणं वा-जाव-साइमं वा, अफासुयं जायणो पङिगाहेज्जा, ३. ससरक्वे, ४. मट्टिया, 2. उसे. ६. हरियाले, ७. हिंगुलुए, ८, मनोमिला ६. अंजणे, १०. लोणे, ११. गेरुए, १२. वणिय, १३. सेतिय, १४. सोरट्रिय, १५. पिट्ठ, १७. उस्कट ठे, -संसठे। तहप्पगारेण हत्थेण वा-जाव-भामण वा असणं त्रा-जाव- साइमं वा, अफासुर्य-जाब-णो पडिगाहेज्जा, ऐसे हाय-यावत्-भाजन से दिये जाने वाले अशन -यावत् स्वाद्य को अप्रासुक जानकर यावत्-ग्रहण न १८. अह पुण एवं जाणेज्जा को उपफुट्ठ संसठे, असंसठे। तहप्पगारेण हत्येण वा-जाव-भायणेग वा असणं वा-जाव- साइमं या अफासुयं-जाव-णो परिगाहेज्जा । १८. यदि यह जाने कि (हाथ-यावत्-भाजन वनस्पति चूर्ण से लिप्त नहीं है, किन्तु पूर्ण अलिप्त है। ऐसे हाय-यावत् ..भाजन से दिया जाने वाले अशन -- यावत्-स्वाध को अप्रासुक जानकर-यावत -प्रहण में करे। १३. मिक्षु यदि यह जाने कि (हाथ-यावत् -भाजन) पूर्ण अलिप्त नहीं है किन्तु (चित वस्तु से) संमृष्ट (लिप्त है। ऐसे संपृष्ट हाथ-यावत -भाजन से दिये जाने वाले अशन यावत्-स्वाद्य को प्रासुक जानकर-यावत् - ग्रहण करे । १६. अह पुण एवं जाणेज्जा-णो असंसो. संसद्धे । तहप्पगारेण संसद्रुण हत्येण वा-जाव-भायणेण वा असणं वा-जाम-साइमं वा फासुर्य-जाव-पडिताहेज्जा। -आ. सु. २, अ. १. उ. ६, मु. ३६० (३) १ उदमोल्लेण हत्थेण, दीए भोयणेण वा। बेतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पद तारिस ।। २ ससिणिद्धेण हत्थेश, दचीए भोयणेण वा । बेतियं पडियाइखे, न में कप्पइ तारिस ।। ३ ससरक्षेण हत्थेण, दब्बीए भोयणेण वा। बेतियं पडियाइक्खे. न मे कप्पइ तारिस ।। ४ मट्टियागतेण हत्थेण, दबीए भाषणेण वा। तिवं पहियाश्यले, न में कप्पह तारिस ।। ५ ऊसगतेण' हत्थेण, दबीए भायोण वा। देंनियं पडियाइक्खे, न म कणइ तारिस ।। ६ हरितालगतेण हत्थेण, दबीए भावणेण वा। देतिष पलियाइबखे, न मे कप्पइ तारिस ।। ७ हिंगुलुयगतेण हत्थेण, दबीए भायणेण वा । दतियं पडियाइक्ने, न में कप्पा तारिस ।। ८ मणोसिलागतेण हत्थेण, दवीए भायणेण बा। देलियं पडियाइवखे. न मे कया तारिसं ॥ (शेष टिप्पण अगले पृष्ठ पर)
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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