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चरणानुयोग
अपरिणत-परिणत हसुन ग्रहण का विधि-निषेध
सूत्र ६६७
"काम खलु आजसो ! अहाल अहापरिणायं बसामो-जाव- "आयुष्मन् ! आप जितने स्थान में जितने समय तक ठहरने आउसो-जा-आउसंतस्स ओग्गहो-जाव-साहम्मिया एसा, की आज्ञा देगे हम और हमारे आने वाले स्वधर्मी उत्ने ही स्थान ताव ओग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं बिहरिस्सामो।" में उतने ही समय तक ठहरेंगे बाद में बिहार कर देंगे।" प० . से कि पुण तस्थ ओग्गहंसि एबोराहिमंसि ?
प्र०-वे भिक्ष या भिक्ष णी (लमुन खाना चाहें तो लसुन
की माण) नियमाकरें? 3०-- अह भिक्खू इच्छेन्जा ल्हसुणं भोत्तर वा से जं पुण २०-यदि वे लमण खाना चाहें तो वे यह जानें कि
ल्हसुणं जाणेज्जा, सअंड-जाव-मक्कडासंताणगं,
लसुन, अण्डे-यावत् --मकड़ी के जालों से युक्त हैं, तहप्पगारं व्हमुणं अफामुयंभाव-णो पडिग्गाहेज्जा । ऐसे लसुन को अधासुफ जानकर-यावत्-ग्रहण न करे। से भिखू वा. भिषखूणी घा से उजं पुष ल्हसुगं भिक्ष या भिक्ष णी यदि यह जाने किजाणेज्जाअप्पंड-जाव-मक्कडा-संताणगं ___अतिरिच्छन्छिन लसुन, अण्डे-यावत्-मकड़ी के जालों से रहित है किन्तु अवोन्छिन -
तिरागा कटा हुआ नहीं है तथा जीव रहित नहीं हुआ है। अफासुयं-जावणो पडिग्गाहेज्जा ।
अतः ऐसे लसुन को अप्रासुक जानकर यावत् -ग्रहण
न करें। से भिक्खू बा, भिक्खूगी वा सेज्ज पुष ल्हसुणं भिक्ष मा भिक्ष णी यदि यह जाने किमाणेज्जाअपंड-जाव-मक्कडा संसाणगं तिरिच्छच्छिम, यह लसुन, अण्डे-यावत् - मकड़ी के जालों से रहित है कोच्छिन्न
और तिरछा कटा हुआ है एवं जीव रहित हो गया है। कासुर्य-जाव पडिगाहेज्जा।
ऐसे लसुन को प्रासुक शनकर-यावत् : ग्रहण करे। से भिक्खू वा, भिक्खूणी वा अभिकखेज्जा
भिक्ष या भाणी१. लहसुण वा, २. लहसुण-कर वा, ३. लहसुग-चोयग, (१) लसुन, (२) लसुन का कंद, लसुन की कतली, ४. लहसुण-णालग वा भोतए।
(४) लसुन की नाल लाना चाहें तो, से उजं पुण जाणेज्मा-ल्हमुणं वा-जाव-रहमुण-णालग यह जाने कि लसुन- यावत्-लसुन की नाल, अण्ड वा सअंड-जाव-मक्कडा संताण
-- यावत्-मरड़ी के जालों से युक्त हैं। अफासुयं-जाय-णो पडिग्गाहेज्जा।
उन्हें अप्रासुक जानकर-यावत्---ग्रहण न करें। से मिक्खू वा, भिक्खूणी वा सेज्ज पुण जागेज्जा- भिक्ष. या भिक्ष णी यह जाने कि -- ल्हसुर्ण वा-जाव-लहसुण णालय वा अप्परं जाव-मक्क- लसुन यावत्-लसुन की नाल अण्डे --यावत्-मकड़ी के डासंताणगं, अतिरिच्छच्छिन्न', अबोन्छिन । जालों से रहित है किन्तु तिरछे कटे हुए नहीं है तथा जीव रहित
हुए नहीं हैं। अफासुयं-जाब-णो पडिगाहेजा।
अत: उन्हें अप्रासुक जानकर ग्रहण न करे । से भिक्खू वा, भिक्खूणी वा से प्रजं पुण नाणेज्जा- भिक्षया भिक्ष णी यह जाने किलहसुणं वा-जाव-लहसुए-णालगं वा अप्पा-चाव मक्क- लसुन--यावत-लसुन की नाल, अण्डे-यावत्-मकड़ी डासंताणनं, तिरिच्छिन्न बोच्छिन्न-फासुयं-जार- के जालों से रहित हैं, वे तिरछे कटे हुए हैं और जीव रहित हो पडिगाहेजा।
गये हैं। --आ. सु. २, अ.७, उ.२, सु. ६३२ तो उन्हें प्रासुक जानकर--यावत् - महण करें।