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________________ सूत्र ९४४-६४८ अनन्तकाय संयुक्त आहार करण प्रायश्चित्त जं च णो संचाएजा भोलए बा. पात्तए वा मे समावाय एम-एभिसा आहे शाम वा अद्विसति का विरामिति था सुसानिस या गोम यरासिंसि वा अण्णयरंसि वा सहम्यगारंसि थंडिलंस पडिले हिम- पडिलेहिय, पमज्जिय-मज्जिय, ततो संजयामेव परिवेन्ना । ...२, ५.१.१.२२४ अतकाय संजुत्तआहारकरणस्स पायच्छित सुतं - ४५. जे भिक्खू अनंतकाय-संजु आहारं आहारेद आहारतं चिप, उम्रितमेव मुंजे मिट्टी, मकड़ी के जाले दिन हो, वहाँ उस संगत आहार से वा पीएन वा । उन जीवों को पृथक करके उस मिश्रित आहार को शोध-शोधरतनपूर्वक खाने या पीने या साइज । माणे आवास परिहारद्वारा नि. उ. १०. सु. ५ परितकाय संजुत्तआहारकरणस्स पायच्छित सुतं -- २४६ परिकार संजुल्ले आहारं आहा आहा WN (५) अपरिचय दोतंअसत्यपरिणयाणं सानुवाण गणजिसेहो या साइज्जइ । सेवमाणे आवज्ज चाउम्मासि गरिन -नि. उ. १२. सु. ४ आता है। चारित्राचार एषणा समिति [५७५ यदि उस आहार का गोधनकर खाना-पीना अशक्य हो तो उसे लेकर एक स्थान में चला जाये। वहाँ द (बली हुई भूमि पर हटियों के परकोट के ढेर पर तुष (भूसे) के ढेर पर, सूखे गोबर के ढेर पर था अन्य भी इसी प्रकार की स्थंडिल भूमि पर भलीभाँति प्रतिलेखन र प्रमार्जन करके पटना पर दे अनन्तकाय संयुक्त आहारकरण प्रायश्चित्त सूत्र - ९४५. जो भिक्षु अनन्तकाय युक्त ( फूलन आदि ) आहार करता है, करवाता है, या करने वाले का अनुमोदन करता है । " उसे चातुर्मासिक अनुद्घानिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त) आता है। प्रत्येककाय संयुक्त आहारकरण प्रायश्चित्त सूत्र - तं जहा - १. पिपल वा २ पिप्पलिचणं वा ३. मिरियं या ४. मिरियण्णं वा ५ सिंगबेरं वा, ६. सिंगबेरचुवणं या अण्णतरं वा तत्पगारं आमं असरथपरिणयं अफामुयं जाव णो पडिगाहेजा । " -आ. सु. २. अ. १ प. ८ सु. ३७६ ९४६ को भा प्रत्येककार नमक वीज आदि युक्त आहार करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है । जो बाटुर्भाकतिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) (५) अपरिणत दोष अशस्त्रपरिणत कमल कंद आदि के ग्रहण करने का निषेध ४७. क्या या २४७. गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए या मिश्री यदि यह जाने कि- अपट्टि समाने से ज्जं पुण जाणेज्जा तं जहा - १. सायं वा २ विरालियं वा ३. सासवणालियं वा अष्णतरं वा तत्पगार आनं असत्यपरिणतं अफासूयं जाव पाहा - आ. सु. २, अ. १, उ. सु. ३७५ ग्रहण न करें । असत्यपरिणयाणं विलिमाईण गणणिसे हो४८. वाडिया समासे - (१) कमलकन्द, (२) पलाशकन्द (कन्द) तथा अन्य भी इसी प्रकार के और शस्त्र परिणत नहीं हुए हों, तो (३) सरसो की नाल कन्द जो कच्चे (सचित) अप्रासुका जानकर यावत् अशस्त्र परिचत पिवत्यादि के ग्रहण का निषेध २४८ गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट थिए या भिक्षुणी यदि यह जाने (१)(२) पल का चूर्ण (२) मिर्च, (४) मिर्च का चूर्ण (५) अदरक, (६) अदरक का चूर्ण अथवा अन्य भी इसी प्रकार के पदार्थ जो कच्चे (सवित्त) और अशस्त्र-परिगत हो, उसे अमाक जानकर यावत्-ग्रहण न करें । नियं कुयुषं उप्पननाधियं गुणाभिं ग्रामवालियं निष्टं ॥ २ कंद मूलं गलन वा आमं छिन्नं च सन्ति । तुंबागं सिगवेरं च आमगं परिवज्जए || दस. अ. ५. उ. २, मा. १८ - इस. अ. ५ उ. १, गा १०१
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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