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________________ ५७६ ] वरणानयोग असत्यपरिणयाणं पलंबा गणनसेहो १४. सेवा भी या गावपरिया भिक्खूणी अणुपविट्ठ े समाने से जणं पुण पलंबजातं जगणेज्जा - अशस्त्र - परिणत प्रलंबों के ग्रहण का निषेध १.बं वा, ३. लालपलंबं या ४ सिसिरियलं वा ५ सुरभिपलंबं था, ६. सहलइपलंबं वा अण्णसरं वा तहयमारं पलंबा जाम असत्यपरिणयं अफासुजाव गिज्जा ।" — १. बा २ ज २ दाम बिल्ससरख्यं वा ५. अणण्णतरं वा, तहत्यारं सरटुयजातं आमं असत्यपरिणयं अफासूयं जाव णो पडिगा हेना । - आ. सु. २. अ. १, उप सु. ३७६ वा आ. सु. २. अ. १. उ. सु. ३७७ असत्यपरिणयार्थ गहणजिहो ५०. से भिक्खू वा भिक्खूणो वा गाहाबदकुलं विडवायपडियाए अणुपट्टि समाने से ज्जं गुण पवालजातं जाणेज्जा-तहासावा. २. मोबा. ३. पिलखुवा का. ४. णिपूरपवालं बा ५. सहलइपवाल वा ६. अष्णतरं वा तहमगारं पवालजारां आमं असत्य परिणयं अकासु जाव णो वडिगाहेज्जा ।" "आ० सु० २ अ० १०८ सु० ३३८ कर यावत्-ग्रहण न करे । असत्यपरिणयाणं सरयाणं गहण णिसेहोअशस्त्र परिणत कोमल फलों के ग्रहण का निषेध५१. से भिक्खू वा भिक्खूनी वा गाहावलं पिढवायपडियाए ६५१. गृहग्य के यहाँ आहार के लिए प्रविष्ट भिक्षु या अणुपविट्ट समाणे से बजं सरहुयजाये जाणेज्ना से जहा भिक्षुणी (जिसमें गुठली नहीं पड़ी हो ऐसे) कोमल फल के संबंध में यह जाने कि:-- असत्यपरिणयाणं उच्छु मेरगाईणं गणणिसेहो -- ६५२. से भिक्खू वा भिक्खुणी' या गाहावनकुलं पिवायपडियाए समाने से उलं पुण जाणेज्जा, जहा १. उमे... ४. कसे वा ५. सिंघा वा ६.वा. अण्णतरं वा तहगारं आमं असत्थपरिणयं अफासुर्य जाव गोपा www अगस्त्र-परिणत प्रलंबों के पण का निषेध ९४९. गृहस्थ के नहीं आहार के लिए प्रविष्ट भिए, या भी प्रलम्ब (फल) के विषय में यह जाने कि- सूत्र ६४६-६५२ (१) आत्र फल, (२) अम्बाडग फल ( ३ ) ताल फल, (४) लता फल, (५) सुरिभ फल, (६) शल्यकी फल, त्या इसी प्रकार के अन्य फल जो कच्चे (सविस) और अस्त्र परिणत हों तो अप्राक समझ कर यावत्-ग्रहण न करे । अशस्त्र परिणत प्रवालों के ग्रहण का निषेध६५०. गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रविष्ट भिक्षु, या भिक्षुणी प्रवाल ( पत्तों) के विषय में यह जाने कि- (१) पीपल वृक्ष का प्रवाल (२) बड़ वृक्ष का प्रबाल, (३) प्लक्ष वृक्ष का प्रवाल, (४) नन्दी वृक्ष का प्रभाव, ( ५ ) शल्यकी वृक्ष का प्रवाल या अन्य भी इसी प्रकार के प्रवाल जो कच्चे (चित्त) और अगस्त्र परिणत हों, तो अप्राक जान (१) आम्रवृक्ष कर कोमल फल, (२) कबीठ वृक्ष का कोमल फल, (३) अनार का कोमल फल, (४) बिल्व का कोमल फल, अनया अन्य भी इसी प्रकार का कोमल फल, जो कि कच्चा (चित्त) और अशस्त्र-परिणत है तो अनाक जानवर यावत्ग्रहण न करे। अगस्त्र-परिणत आदि के का निषेधइक्षु ग्रहण ६५२. गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रविष्ट भिक्ष या भिणी यदि यह जाने कि- -आ. मु. २, अ. १, उ. सु. ३०२ - यावत् ग्रहग न करे । , (१) इखण्ड-गंडेरी, (२) अंककरेल, (२) निवारक, (४) करोरू, (५) सिवाडा एवं (६) पूर्ति आलुक नामक वनस्पति है अथवा अन्य भी इसी प्रकार की वनस्पति विशेष है, जो क कच्ची (सनित्त) तथा अवस्य परिगत हो तो अप्रामुक जानकर १ कप्प. उ. १, सु. १ २ तरुणगं वा पवालं, रुक्मस्य तणगस्स वा अन्नरस वा वि हरियम्स आमगं परिवज्जए || ३ कविदु माउलिंग च मूलगं मूलगतियं आमं असत्यपरिणयं मासानि पत्थए । - दम. अ. ५. उ. २. ग्रा. १६ - दस. अ. ५. उ. २. गा. २३ T
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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