________________
• सूत्र ६३६-६४१
पूर्वकर्मकृत हाच आवि से आहार लेने का प्रायश्चित्त
चारित्राचार : एषणा समिति
(५७३
तहप्पगारेणं पुराकम्मकोण हत्येण वा-जाद-भायणेण वा ऐसे पूर्वकर्मकृत हाथ---यावत् भाजन से अशन-यावत्असणं या-जाव-साइमं या अफासुयं जाव-णो पङिगाहेज्जा।' स्वाद्य को मनासुक जानकर-यावत्-ग्रहण न करे ।
-आ. सु. २, म. १, उ. ६, सु. ३६० (२) पुराकम्भकरेण हत्याइणा असणाई गिण्हमाणस्स पाय- पूर्व कर्मकृत हाथ आदि से आहार लेने का प्रायश्चित्त
च्छित्त सुत्तं९४०. से भिषण पुरेकम्मकडेण हत्येण वा-जाव-भायणेण वा असगं १४०. जो भिक्षु पूर्व कर्मकृत हाथ से-यावत् -भाजन से अान या-जाय-साइम वा पडिग्गाहेर, पडिग्गा या साइज्जइ। -यावत्--स्वादिम ग्रहण करता है, करवाता है, करने वाले का
अनुमोदन करता है। से सेवमाणे आयज्जइ चाउम्मासि परिहारटुाणं उग्धाइये। उसे चातुर्मामिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. 3. १२, सु. १४ आता है। वाउफाषिराहगेण भिक्खागहणणिमेहो पायच्छित्तं च- वायुकाय के बिराधक से भिक्षा लेने का निषेध व
प्रायश्चित्त१४१. से भिषखू वा, मिलगी वा गाहाबहकुलं पिउवाय पडियाए ६४१. भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में आहार के लिये
अणुपचिट्ठ समाणे से उजं पुण जाणेजा-असण वा-जाव- प्रविष्ट होने पर यह जाने पि साधु को देने के लिए यह अत्यन्त साइम या जच्चासण अस्संजए भिक्खू पबियाए सर्वेण वा, उष्ण अजान - यावत्-स्वादिम अरांपत महस्थ सूप (छाजले) से, विडयणेण वा, तालियंटेण मा, भत्तेण वा, पत्नभंगेण षा, पंखे से, ताड़ पत्र से, पत्ते से, पत्र-खंड से, शाखा में, शादासाहाए वा, साहाभंगेण वा, पिटुणेण वा, पितृणहत्येण या, खंड से, मोर के पंख से, मोरपीछी से, वस्त्र से, वस्त्रसंड से, चलेग वा, चेलकण्णण वा, हत्येण पा, मुहेण या, पुम्मेज हाथ से या मुंह से, फूंक देकर या पंखे आदि से हवा करके देने या, बीएज्ज वा।
वाला हो तो साधु पहले ही गृहस्थ ने कहेसे पुवामेव आलोएक्जा- "आजसो । ति या भगिणि! ति "हे आयुष्मान् गृहस्थ ! या बहिन ! तुम इस अत्यन्त गर्म या मा एतं तुम असणं वा-जाव-साइम वा अमधुसिणं वा, अमन-यावत्-स्वादिम को सूप से यावत्-पंखे आदि से सूवेण वा-जाव-वीयाहि या अभिखसि मे वा एमेध बा करके ठंडा मत थे। अगर मुझे देना चाहते हो तो ऐसे ही दलयरहि ।"
दे दो।" से सेवं वदंतस्स परो सूत्रेण वा-आव-चौइत्ता वा आहट्ट साधु के ऐसा कहने पर भी गहरथ सूप से- यावत् --पंखे वलएज्जा, तहप्पमारं असणं वा-बाब साहम वा अफासुयं आदि से हवा कर के देने लगे तो उस अशन · यावत् - स्वादिम -जाव-णो पडिगाहेज्जा।
को अप्रासुक जानकर · याचन्-ग्रह न करे। -आ. मु. २, अ. १,उ. ७. सु ३६८ (घ) से भिक्खू अच्चुसिणं असणं वा जाव-साइम चा।
जो भिक्षु अत्यन्त उष्ण-पावत् - स्याद्य पदार्थ को--- १. सुप्पेण वा, २. विठुणेण या, ३. तालियरेण वा. (१) सूप से, (२) पंखे से, (३) ताडपत्र से, ४. पसेण बा. ५. पत्तभंगेण वा, ६. साहाए वा. (४) पत्ते से, (५) पत्रखंड से, (६) शाखा से, ७. साहाभंगेण खा, ८. पिडणेण वा, १. पिहणहत्येण चा, (७) शाखाखंड से. (८) मोरपंख से, (6) मोरपीछी से, १०. लेण वा ११. चेलक पणेण वा, १२. हत्येण वा, (१०) वस्त्र से, (११) वस्त्रबंद से, (१२) हाय से, १३. मुहेण चा, फूभित्ता बीदता आहट्ट वेज्जमाणं पडिग्गा- (१३) मुंह से, फूंक देकर चा पंखे आदि से हबा करके लाकर हे वा साइम्जा।
देते हुए को लेता है, लिवाता है, लेने वाले का भनुमोदन
करता है। त सेत्रमाणे आवजह घाजम्मासियं परिहारदाण उग्याइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि.उ. १०, सु. १३० आता है। १ पुरेकम्मेण हत्थेण, दम्चीए भायणेण वा । नैतिथं पटियाइक्खे न मे कप्पइ तारिस ।।
-दस.अ. ५ उ. १, गा. ३२ २ (क) दस. अ. ४, सु. २२
(ख) दस. अ.८, गा.६