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________________ ५७२] वरणानुयोग पूर्वकर्म युक्त (अचित्त) सिट्टे आदि के ग्रहण का निषेध सूत्र ६३७६३६ बिलं वा लोणं, उभियं वा लोणं अस्संजए भिक्षुपडियाए, गृहस्थ ने साधु के लिए सचित्त शिला पर, सचित्त शिला वित्तमंताए सिलाए, चित्तमंताए लेलुए, कोलवाससि घा, खण्ड पर, दीमक लगे जीनयुक्त काष्ठ पर तथा अण्डे-यावतु .. वामए, जीय पट्टिए, सडे, जाव-मक्य डासंताणए, भिविसु मबाड़ी के जालों से युक्त स्थान पर विड लवण (जलाया हआ वा, मिक्ति वा, मिविस्सं ति वा, रुचिमु वा, कचिति वा, नमक) या उद्भिज लवण (अन्य प्रकार से अनित्त बना नमक) चिस्सं ति बा। का भेदन किया है (टुकड़े किये हैं) भेदन करता है, या भेदन करेगा तथा लवग को सूक्ष्म करने के लिए पीसा है, पीसता है या पीसेमा। विकंवा लोणं, उग्मियं वा लोणं अफामु यं-जाव-णो पछि- ऐसे विड व उदभिज ततष को अप्रासुक जानकर-यावत् गाहेज्जा । --आ. सु. २, म. १, उ. ६, सु. ३६२ ग्रहण न करे । पुरेकम्म जुत्त पिहुयाई गहणिसेहो पूर्वकर्म युक्त (अचित्त) सिट्टे आदि के ग्रहण का निषेध१३८, से भिक्खू बा, भिक्खूणी वा गाहावइकुलं पिंडबायपडियाए ६३८. गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुती अणुपवि? समाणे से जं पुण जाणज्जा यह जाने किपिहयं बा, बहरयं वा, मुंजियं वा, मंथं वा, चाडलं वा, गेहूँ आदि के सिट्टे, जवार जौ आदि के सिद्दे- अग्नि में पाउलपलयं वा अस्संजए भिक्ल पजियाए चित्तमंताए अर्द्धपक्व या टुकड़े तथा मालवीहि आदि या उनके टुकड़े, इन्हें सिलाए, चिसमताए लेपुए, कोलवाससि वा दारुए जीय- गृहस्थ ने भिक्षु रिए सचित्त शिला पर, सचित्त शिरला खंड पर पलिट्टिते सरे-जाव-मकतासंताणए. कोट्टिए वा, कोट्टति या दीमक लगे हुए जीवाधिष्ठित काठ पर तथा अण्डे-यावतबा, कोट्टिस्सति वा, 'उस्फणिसु बा, उप्पणंति वा उप्फणि- मकड़ी के जालों से मुक्त स्थान पर उन्हें फूट चुका है, कूट रहा संति बा, है या कूटेगा या उपन चुका है, उफन रहा है या उफनेगा, तहप्पगार पिडयं बा-गाव-चाउलपल वा अफासुयं-जाब- इस प्रकार के गेहूँ आदि के सिट्टों-यावत्-शालि आदि णो पडिगाहेजा। --मा. सु. २, अ. १, उ. ६, सु. ३६ के टुकड़ों को अप्रासुक जानकर - थावत् ग्रहण न करे । पुराकम्मकडेण हत्थाइणा आहारगहणस्स णिसेहो-- पूर्व कर्मकृत हाथ आदि से आहार ग्रहण का निषेध--- १३६ से भिक्खू घा, भिक्खूणी का गाहावह कुल पिडचायपवियाए ६३६. भिक्षु वा भिक्षुणी गाथापतियों के घरों में आहार के लिए अशुपविढे समाणे सत्य कंचि मुंजमाण पेहाए, संजहा . प्रवेश करने पर यहाँ विसी गाथापति यावत्-कौकरानी को गाहावई वा-जाव-कम्मकरी वा से पुशमेव आलोएज्जा-- भोजन करते हुए देखे तो उन्हे आहार लेने से पहले ही कहेआउसो ति वा । अगिणी ! ति आ दाहिसि मे एत्तो अण्ण- "आयुष्मान् गृहस्थ ! पा बहिन ! इनमें से किसी एक यर भोयणं जायं प्रकार का भोजन मुझे दोगे ?' से सेवं बवंतस्स परो हरथं शा, मत्तं वा वयिं या, भायणं उनके ऐसा कहने पर गृहस्थ हाथ, लघुपान, चम्मच या वा, सोतोवगवियण वा, उसिणोदवियदेण वा उच्चछोलेन्ज भोजन को अमित शीत था उष्ण जल में धोए तोवा, पोएज्ज वा, से पुष्वामेव आलोएज्जा भिक्ष उन्हें पहले ही कहे -- "आउसो । त्ति वा भगिणी ! ति वा मा एयं तुम हत्य "हे आयुष्मान् गृहल ! या बहिन! तुम हाय-यावस्वा-जाद-मायणं वा सीओदगवियरेण चा, उसिणोगवियण भाजन को अचित्त शीत गा जण जल से मत धोओ मुझे देना वा, उच्छोलेहि वा, यधोबेहि वा अभिकखसि मे बाउँ एमेव चाहते हो तो हाप आदि के छोए बिना ही दे दो।"। दलयाहि।" से सेवं ववंतस्स परो हत्थं वा-जाव-भावणं वा सोओग- ऐसा कहने पर भी गृहस्थ हाय-यावत् राजन को वियडेण वा, उसिणोदधियडेग वा उच्छोलेत्ता पा पधोएसा अचित्त शीत या उष्ण जल से धोकर दे लोया आहट्ट बलएज्जा,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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