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________________ प्रत्र ६६३-६३६ त्रसकाय प्रतिष्ठित आहार ग्रहण करने का निषेत्र चारित्राचार : एषणा समिति [२७१ तसकायपट्टियाहारगहणणिसेहो श्रसकाय प्रतिष्ठित आहार ग्रहण करने का निषेध-- ९३३. से भिक्ख वा, भिक्खूणी वा गाहावइकुल पिण्यायपजियाए ६३३. गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षणी अणुविठे समाये से ज्ज पुष जाणेज्जा यह जाने कि--- असणं वा-जाव-साइमं बातसकायपतिदिठरा । अशन-यावत्-स्वादिक आहार प्रसकाय पर रखा हुआ है, तहप्पगारं असणं वा-जाव-साइमं वा अफासुग-यो उस प्रसार करताय प्रतिष्ठिः सात-यावत्-स्वादिम पडिगाहेजा। - आ. सु.२, अ. १, उ. ७, सु. ३६८ (च) को अप्रासुक जानकर—यावत्-ग्रहण न करे।। णिक्खित्तदोसजुत्तआहारगहणस्स पायच्छित्त सुत्ताइं-- निक्षिप्त दोष युक्त आहार ग्रहण करने के प्रायश्चित्त सूत्र९३४. जे भिक्खू असणं वा-जाव-साइमं का पुषि-पददिव्य, १३४. जो प्रिक्षु सचित्त पृथ्वी पर स्थित अशन--यात्रत्--स्वादिष पडिग्गाहेइ, पडिमाती वा साइम्जा । आहार को लेता है, लिवाला है, लेने पाने का अनुमोदन करता है। जे भिक्षु असणं या-जाब-साइम वा आउ-पहिय, जो भिक्ष सचित्त जल पर स्थित अशन -पावत्-स्वादिम पविगाहेह, पडिग्गाहेत वा सामाना। आहार को लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू असणं वा-गाव-साइमं वा तेज पइद्रियं, जो भिक्षु सचित्त अग्नि पर स्थित अशन-यावत्-स्वापरिग्गाहेइ, पडिमगात या साइमन । दिम आहार को लेता है, लिवाता है. सेने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू असणं वा-जाब-साइम वा पणफइ-पइव्यिं , जो भिक्षु सचित्त बनस्पति पर स्थित अशन--बावत्पडिग्गाहेइ, पहिमपात वा साइजइ । स्वादिम आहार को लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जह घाउम्मासिय परिहारदाण उग्याइयं उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान' (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १७, सु. १२६ १२८ आता है। (३) दायग दोसं-- (३) दायग दोष-- गुन्विणीहत्येण आहार गहण गिसेहो गर्भवती के हाथ से आहार ग्रहण का निषेध६३५. सिया य समणट्ठाए, गुठियणीकालमामिणी। २३५. प्रनव काल के महिने को प्राप्त गर्भवती म्बी खड़ी हो उद्विया वा निसीएज्जा, निसमा दा पुणहए। और श्रमण को भिक्षा देने के लिए कदात्रित बैट जाये अथवा तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाणं अकप्पियं । बैठी हो तो खड़ी हो जाये उनके द्वारा दिया जाने वाला भक्तदेतिय पजियाइवे, न मे कप्पद तारिस ॥ पान संयमियों के लिए अकल्प्य होता है। अतः मुनि देती हुई -दस. अ. ५. उ. १, गा. ५५-५६ स्त्री को कहे "इस प्रकार का आहार मैं नहीं ले सकता " यणपेज्जमाणिहत्येण आहारगहणणिसेहो -- स्तनपान कराती हुई स्त्री के हाथ से हार ग्रहण का निषेध६३६. यणगं पेजमाणी, बारगं वा कुमारियं । ६३६. बालक या बालिका को स्तनपान कराती हुई स्त्री उसे तं निक्विवित्त रोयंत, आहरे पागभोयणं । रोते हुए छोड़कर भक्त-पान लाये तो वह भक्त-पान संमति के तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाणं अप्पियं । लिए अकल्पनीय होता है, इसलिए मुनि देती हुई स्त्री को कहे बतियं पडियाहक्ने, न मे कप्पड़ तारिस ॥ "इस प्रकार का आहार मैं नहीं ले सकता।" -दस. अ. ५. उ. १, गा ५७-५६ पुरेकम्म जुत्त लोणस्स महणणिसेहो पूर्वकर्म युक्त (अचित्त) नमक के ग्रहण का निषेध६.३७. से भिक्षु वा, मिक्खूणी वा गाहावाकुलं पिंग्वाय पजियाए ६३७. भिक्षु या भिक्षुणी आहार के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश अणुपविट्ठ समाणे से ज्ज पुण जाणेज्जा करने पर यह जाने कि
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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