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________________ ५७०] चारित्राचार वनस्पति काय प्रतिष्ठित आहार ग्रहण करने का निवेश मूत्र ६३९-१३२ तं भवे भात-पाणं तु, संजयाण अकपियं । कहे -"ऐसा भक्त-पान संयतों के लिए नहीं कल्पता है, अत: देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पद तारिख ।। मुझे लेना नहीं कल्पता है।" असणं पापगं वा वि, बाहर्म साइमं तहा। अशन पान खाद्य स्वाद्य अग्नि पर रखा हुआ हो उन्ने देती अगणिमि होज निक्खितं, त च उपजालिया दए । हुई स्त्री यदि अग्नि जल कर के दे तो भिक्षु उसे ऐसा कहेतं प्रवे भत्त-पाणं तु, संजयाण अस्पियं । "ऐसा भक्त-पान संयतों के लिए ही कल्पना है, अतः मुझे लेना वैतियं पडियाइने, न मे कप्पद तारिस ॥ नहीं कल्पता है।" असणं पाणगं वा वि, खाइम साइमं तहा। अशन पान खाद्य स्वाद्य अग्नि पर रखा हुआ हो उसे देती अगणिम्मि होज्ज निक्खितं तं च पज्जातिया दए॥ हुई स्त्री यदि अग्नि प्रज्वलित करके दे तो भिक्षु उसे माहेतं भवे भत्त-पाणं तु, संजयाण अप्पियं । "ऐसा भक्त-पान संयतों के लिए नहीं कल्पना है, अतः मुले दंतियं पडियाइफ्ले, न मे कप्पह तारिसं ॥ लेना नहीं कल्पता है।" असणं पाणगं वा वि, खाइसं साइमं तहा । अशान पान खाद्य स्वाद्य अग्नि पर रखा हुआ हो उसे देती अगणिम्मि होज्ज निक्खितं, तेच निव्वादिपा बए ।। हुई स्त्री यदि अग्नि बुझाकर के दे तो भिक्षु उसे कहे-'ऐसा तं भवे भत्त-पाणं तु. संजयाण अफस्पियं । भक्त-पान संपतों के लिए नहीं कल्पता है, अत: मुझे लेना नहीं दंतियं पडियाइक्वे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ कल्पता है।" असणं पाणगं वा वि. खाइमं साइमं तहा। अशन पान खाद्य स्वाद्य अग्नि पर रखा हुआ हो उसे देती अगणिम्मि होज्ज निविखतं,चइस्भिचिया दए । हुई स्त्री यदि अग्नि पर रखे हुए पात्र रो निकालकर दे तो भिक्षु तं भवे भत्त-पाणं तु, संजयाण अकप्पियं । उसे कहे--"ऐसा भक्त-पान संयतों के लिए नहीं कल्पता है, बेतिय पडियाइष, न मे पप्पा तारिस ।। अतः मुझे लेना नहीं कल्पता है।" असणं पाणगं या वि, खाइम साइम तहा । ___अशन पान खाद्य स्वाथ अग्नि पर रखा हुआ हो उसे देतो अगणिम्मि होज्ज निक्खित.तं च निस्मिनिया दए । हुई स्त्री यदि अग्नि पर रन्ने पत्र में पुनः डालकर दे तो भिक्षु से भवे मत्त पाणं तु, मंजाणं अकप्पियं । उसे कहे- "ऐसा भल-पान संयतों के लिए नहीं कल्पता है अतः बेतिय पखियाइक्खे, न मे कप्पर तारिस । मुझे लेना नही कल्पता है।" असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा। ___अचान पान खाच क्वाच अग्नि पर रखा हुवा हो उसे देती अगणिम्मि होज्ज निविखतं, संच ओवत्तिया दए। हुई स्त्री यदि अग्नि पर रखे हुए पात्र को टेढ़ा करके दे तो भिक्षु रो मवे भत्त-पाणं तु, संजयाणं अकप्पिय । उसे कहे .--"ऐसा भक्त-पान संयतों के लिए नहीं कल्पता है, अतः ऐतियं पडिमाइक्खे, न मे कप्पा तारिसं ॥ मुझे लेना नहीं कल्पता है।" असणं पाणगं पा वि, खाइमं साइमं तहा । अशन पान खाच स्वाद्य अग्नि पर रखा हुआ हो उसे देती अगणिम्मि होन्ज निक्खितं, तं च ओयारिया वए । हुई स्त्री यदि अग्नि पर रखे हुए पात्र को उतार करके दे तो तं भवे मत्त-पाणं तु, संजयाणं अप्पिमं । भिक्षु उसे कहे-"ऐसा भक्त-पान संयतों के लिए नहीं कल्पता उतियं परियाइपखे, न मे कप्पड़ तारिसं॥ है, अतः मुझे लेना नहीं कल्पता है।" -दस. अ.५, उ. १, गा. ७६-८५ वणस्सईकायपइट्ठियआहारगणिसेहो वनस्पतिकाय प्रतिष्ठिन आहार ग्रहण करने का निषेध - १३२. से भिक्खू बा, भिक्खूणी वा गाहावइकुलं पिडवायपडियाए ६३२. गृहस्व के घर में आहार के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी अणुपषिटु समाणे से उलं पुण जाणेजा - यह जाने कि--- असणं या-जाब-साइमं वा वस्सतिकायपतिठियं । यह अगना-यावत्--स्वादिम आहार वनस्पतिकाय (हरी सजी पत्ते आदि) पर रखा हुआ है, तहप्पणारं असणं या-जा-साइमं या अफासु-जय-गो उस प्रकार के बनस्पतिकाय प्रतिष्ठित अशन-यावतपडिगाहेकजा ।-आ. सु. २, अ.१, उ. ७, सु. ३६८ (घ) स्वादिम आहार को अप्रासुक जानकर--यावत्-ग्रहण न करे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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