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________________ ५६८] चरणानुयोग शंका के रहते हुए आहार ग्रहण करने का निषेध सूत्र ६२८-१३१ (६) बायक-अन्धे से, कम्पन वात वाले से, तुष्ठरोग वाले से, गभिणी तथा जीम विराधना करके देने वाले से आहारादि लेना। (७) उन्मिश्र- किसी भी सचित्त पदार्थ से मिश्रित आहारादि लेना । (८) अपरिणत-सर्वथा अनित्त हुए बिना अर्थात् सचित्त या मिश्र आहारादि लेना । (e) लिप्त हाथ पात्र आदि सचित्त पदार्थों से संसृष्ट (सरडे हुए) हों, उनसे भिक्षा ग्रहण करना। (१.) छदित - यदि कोई कुछ गिराते हुए आहारादि दे उससे लेना। थे दोष गृहस्य अविवेक से और साधु साध्वी आसक्ति आदि से लगाते हैं। (१) संकियदोसं (2) शंक्ति दोषसंकाए चट्टमाणस्स आहार गहण णिसेहो-- शंका के रहते हुए आहार ग्रहण करने का निषेध६२८. से भिक्खू वा. भिक्खूणी वा गहावहकुलं पिंडयाय पडियाए १२८. महन्थ के घर में भिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य से प्रविष्ट अगुपविट्ठ समापे से ज्जं पुण जाणेज्जा भिक्षु या भिक्षुणी यदि वह जाने किअसणं बा-जाव-साइमं या एसणिज्जे सिया, अणेमणिज्जे 'अशन यावत्-स्वादिम एषणीय है या अनेषणीय" इस सिया वितिगिछ समावण्णे अपाणणं असमाहा लेस्साए तरह उसका चित्त आशका से युक्त हो और उसकी असमाधित अवस्था रहे। तहप्पणारं असणं वा-जाव-साइमं वा अकासुर्य-जाव-जो इस प्रकार के अप्शन - यावत्- स्वादिम को अप्रासुक जान पडिगाहेज्जा ।' -आ. सु. २, अ. १. उ. ३, सु. ३४३ कर-यावत् - ग्रहण न करे । (२) निक्खित्तदोसं (२) निक्षिप्त दोषपुढवीकायपइट्ठिय आहार गहण णिसेहो पृथ्वीकाय प्रतिष्ठित आहार ग्रहण करने का निषध६२६. से भिक्खू बा. भिक्खूणो वा गाहावइकुलं पिडवाय पडियाए ६२६. गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी अपविटु समाणे से ज्जं पुणं जागरजा-- यदि यह जाने किअसणं या-जाव-साइमं वा पुडविक्कावपति द्वित, __अशन--यावत्-स्त्रादिम आहार पृथ्वीकाय पर रखा हुआ है. तहप्पगारं असणं वा-जाव-साइमं या अफासुसं-जाव-गो इस प्रकार के अशन-यावत्-स्वादिम को अशासुक जानपडिगाहेजा। कर-यावत्--ग्रहण न करे —ा० सु. २. अ० १. उ०७, मु. ३६८ (क) आउकाय पइट्टिय आहार गण गिसेहो अपकाय प्रतिष्ठित आहार ग्रहण करने का निषेध१३०.से मिक्खू बा, भिक्खूणी या गाहावरफुलं पिडवाय पडियाए ९३७. गृहस्थ के घर में भिक्षा प्राप्ति के लिए प्रविष्ट भिक्ष या अणुपविट्ठ समाणे से जं पुण जाणेज्जा भिक्षुणी यदि यह जाने किअसणं वा-जान-साइमं वा आउकायपतिट्टितं. अशन --यावत् स्वादिम अपनाय पर रखा हुआ है, सहप्पगारं असणं बा-जाव-साइम वा अफासुयं-जावणो इस प्रकार के अशन--यावत् - स्वादिम माहार को अपा. पडिन्गाहेजा। मुक जानकर-यावत् -- ग्रहण न करें। -आ. सु. २, अ. १. उ. ७. सु. ३६८ (ख) तेउकाय पइट्ठिय आहार गहण णिसेहो - अग्निकाय प्रतिष्ठित आहार ग्रहण करने का निषेध६३१. से भिक्स्यू या, भिक्खूणो वा गाहावडकुले पिटवाय पडियाए ६३१. गृहस्थ के घर में आहारार्थ प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी अणुपवि? समाणे से ज्ज पुण जाणेज्जा-- यदि यह जाने कि, १(क) जं भवे भत्तपाणं तु. कापाकापम्मि संवियं । देंतिय पडिया इक्वे, न मे कप्पर तारेसं ॥ ---दस.अ. ५, उ १, गा.५६ २ (ख) असणं पाणगं वा बि, माइमं साइमं तहा। उदगम्मि होज्ज निक्षितं, उत्तिंग-गणगेर्नु वा ॥ तं भवे भत्त-पाणं तु, गंजयाणं अकप्पियं । देतियं पटियाइक्वे, न मे कप्पइ तारिनं ।। -दनअ. ५, उ. १, गा. ७४-७५
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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