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________________ २८] चरणानुयोग प्रवेश दृष्टान्त पत्र ३२ १. सिया धम्मपएसो, (१) कभी धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं। २ सिया अधम्मपएसो, (२) कभी अधर्मास्तिकाय के प्रदेश है, ३.सिया आगासपएसो, (३) कभी आकाशास्तिकाय के प्रदेश हैं, ४, सिया जीवपएसो, (४) कभी जीवास्तिकाय के प्रदेश है. ५. सिया खंधपएसो। (५) कभी स्कन्ध के प्रदेश हैं। . एवं वयंत उज्जुसुयं संपद सहयो भगइ । इस प्रकार कहते हुए ऋजुसूत्रनय वाले को शब्द नय वाला कहता है-- जं प्रगसि भइयवो पएसो तं न भवद । जो तुम "प्रदेश विभाज्य है" ऐसा कहते हो वह यथार्थ नहीं है। प.. कहा? प्र०--कंसे? उ... .१, अइ ते महपटखो पएसो एवं ते धम्मपएसो वि उ०-(१) यदि वे प्रदेश विभाज्य हैं तो जो धर्मास्तिकाय सिया अधम्मपएसो, सिया आगासपएसो, सिया जीव- का प्रदेश है वह कभी अधर्मास्तिकाय का प्रदेश भी होगा, कभी पाएसो, सिया बंधपएसो। आकाशास्तिकाय का प्रदेश भी होगा, कभी जीवास्तिकाय का प्रदेश भी होगा और कभी स्कन्ध का प्रदेश भी होगा । २. अधरमपएसो वि सिया धम्मपएसो, सिया आगास- (२) जो अधर्मास्तिकाय का प्रदेश है वह कभी धर्मास्तिपएसो, सिया जीवपएस, सचा बंध्यएस)। कारका प्रवेश भी होगा, कभी आकाशास्तिकाय का प्रदेश भी होगा, कभी जीवास्तिकाय का प्रदेश भी होगा, और कभी स्कन्ध का भी प्रदेश होगा। ३. आगासपएसी वि सिया धम्मपएसो, सिया अधम्म- (३) जो आकाशास्तिकाय का प्रदेश है वह कभी धर्मास्तिपएसो, सिया जीवपएसो, सिया खंघपएसो । काय का प्रदेश भी होगा, कभी अधर्मास्तिकाय का प्रदेश भी होगा, कभी जीवास्तिकाय का प्रदेश भी होगा और कभी स्कन्ध का भी प्रदेश होगा। ४. जीवपएसो वि सिया धम्मपएसो, सिया अधम्म- (४) जीवाम्सिकाय का प्रदेश कभी धर्मास्तिकाय का प्रदेश पएमो, सिपा आगासपएसो, सिया खंधपएसो। होगा, कभी अधर्मास्तिकाय का प्रदेश होगा, कभी आकाशास्तिकाय का प्रदेश होगा और कभी स्कन्ध का प्रदेश भी होगा। ५. खंधपएसो चि सिया धम्मपएसो, सिया अधम्म- (५) म्कन्ध का प्रदेश कभी धर्मास्तिकाय का प्रदेश होगा, पएसो, सिया आगासपएसो, सिया जीवपएको । कभी अधर्मास्तिकाय का प्रदेश होगा, कभी आकाशास्तिकाय का प्रदेश होगा और कभी जीवास्तिकाय का प्रदेश होगा। तं मा भगाहि महपरको पएसो । ममाहि-- अतः प्रदेश विभाज्य है-सा मत कहो-किन्तु ऐमा कहोधम्मे पएसे से पासे धम्मै । धर्मास्तिफाय का जो प्रदेश है वह धर्मास्तिकाय है ।। अधम्मे पएसे से पएसे अधम्मे । अधर्मास्तिकार का जो प्रदेश है वह अधर्मास्तिकाय है । आगासे पएसे से पएसे भागासे । आकाशास्तिकाय का जो प्रदेश है वह आकाशास्तिकाय है। जीवे परसे से पएसे जो जीवे । जोवास्तिकाय का जो प्रदेश है वह जीवास्तिकाय नहीं है। बंधे पएसे से पएसे जो बंधे । स्कन्द्र का जो प्रदेश है वह स्कन्ध नहीं है। एवं वर्यत सणय सममिरुतो प्रगति इस प्रकार कहते हुए शब्दनय वाले को सशभिरूनय वाला कहता हैअणिस-धम्मे परेसे, से पदेसे धम्मे-जाव-खंधे जो तुम कहते हो-धर्मास्तिकाय का जो प्रदेश है, वह पसे, से पदेसे नो बंधे, धर्मास्तिकाय है,-याव-स्कन्ध का जो प्रदेश है वह स्कन्ध नहीं है। तन भव । ऐसा न कहीं।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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