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________________ ५५८] चरणानुयोग आधाकर्म आहार पहण करने का प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ९०१-६०६ राधाकर्म आहाकम्माहारगहणपायच्छित्त सुत्तं याघाकर्म आहार ग्रहण करने का प्रायश्चित्त सूत्र ... ६०१. जे भिक्खू आहाकम्म भंजइ, भुजतं वा साइज्ज । १०१. जो भिक्षु आधाकर्म आहार करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उसे चातुर्मासिक अनुवातिकः परिहारस्थान (प्रायश्चिन) अणु ग्याइयं । - नि.उ.१३. सु. ६ आता है। (२) उद्देसिय दोसं (२) ओह शिक दोषउद्देसिय आहार गह्ण णिसेहो औद्देशिक आहार ग्रहण करने का निषेध - ६०२. भूयाई च समारम्म, समुद्दिस्स यजं कर । ९०२. जो आहार-पानी प्राणियों का समारम्भ करने साधुओं को तारिस तु न गिण्हेज्जा. अग्नं पाणं सुसंजर।' देने के उद्देश्य से बनाया गया है, वैसे आहार और पानी को - नूय. सु. १, अ, ११, गा. १४ सुसंयमी साधु ग्रहण न करे। दाणठविय आहारगहण गिसेहो डानार्थ समिट अर, रामा करने का निषेध६०३. असणं वा पाणग वा वि, खाइमं साइमं तहा ।। १०३. अपन, पान, खाद्य और स्वाद्य के विषय में मुनि यह जाने ज जाणेऊन सुणेज्जा वा, राणहा पगड इम ॥ या सुने कि यह दानार्थ तैयार किया गया है। तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । वह भक्त पान मंयति के लिए अकल्पनीय होता है, इसलिए पंतिय पडियाइक्खें, न मे कप्पद्द तारिस ।। मुनि देती हुई स्त्री को मना करे कि-."इस प्रकार का आहार - -दस अ५. उ. १, गा. ६२-६३ मुझे नही कल्पता है।" पुण्णटूठविय आहार गहण णिसेहो पुण्यार्थ स्थापित आहार ग्रहण करने का निषेध९०४. असणं पाणगं या वि, साइमं साइमं तहा। १०४. अश्शन, पान, खाद्य और स्वाद्य के विषय में मुने यह जाने अंजाणेज्म सुणेज्जा वर, पुष्णट्ठा पगडं इमं ।। या सुने कि यह पुण्यार्थ तैयार किया गया है। तं भवे भत्तपाणं तु. संजयाण अकप्पियं । बह भक्त-पान संवति के लिए अकल्पनीय होता है, इसलिए दंतिय पडियाइक्खे, न मे कापड तारिस ॥ मुनि देती हुई स्त्री को मना करे कि 'इस प्रकार का आहार -दसअ. ५. उ.१, गा, ६४-६५ मुझे नही कल्पता है।" यणिमांगठविय आहार महण णिसेहो-.. भिखारियों के लिए स्थापित आहार-ग्रहण करने का निषेध१०५. असणं पाणयं वा वि, खाइमं साइमं तहा। २५. अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य को विषय में मुनि यह जं जाणेज्ज सुणेज्जा था, वणिमछा पराई दम ।। जाने वा मुने कि वह भिखारियों के लिए तैयार किया गया है। तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अम्पियं । वह भन्न-पान संयति के लिए अकल्पनीय होता है, इसलिए बेतिय पडियाइखे, न मे कप्पद तारिस ।। मुनि देती हुई सी को मना कर कि "इस प्रकार का आहार -दस. अ. ५, उ. १. ग.६६-६७ मुझे नहीं कम्पना है।" समणट्ठठविय आहार गहण णिसेहो श्रमणार्थ स्थापित आहार ग्रहण करने का निषेध१०६. असणं पाणगं बा वि, खाइमं साइमं तहा । ६.०६. अशन, पान, खाद्य और म्बाद्य के विषय में मुनि यह जाने ___ज जाणेज्ज सुज्जा वा. समणट्ठा पगा इमं ॥ या सुने कि यह धमणों के लिए तैयार किया गया है। १ (क) आ. सु. २, अ. १. उ. १, गु. ३६१ (ख) आ. सु. १, अ. ८. मु. २०४-२०५ (ग) सूय. सु. २, अ. १. सु. ६८७.६८८ (घ) आ. सु. २, अ.१, उ १०. सु. ३६७
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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