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________________ ५५२] चरणानुयोग नवनिर्मितशमादि में आहार ग्रहण करने के प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ८६५-८६६ नवणिम्मिय गामाइसु आहार महास्स पायच्छित्त सुरतं-- नवनिमितमामादि में आहार ग्रहण करने का प्रायश्चित्त सूत्र८६५. जे भिक्खू गवग-णिवेससि गामंसि दा-जान-सज्जियसंसि वा ८६५. जो भिक्षु नये निवास किये हुए गाँव में -यावत्-समि अणुप्पविसिसा असगं वा-जाव-साइमं वा पजिग्गाहेइ पडि- वेश में प्रवेश करके अशन-यावत- म्वाध ग्रहण करता है, बाहेंतं वा साइज्जइ। लाता है या कराने अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज मासिवं परिहारद्राणं उम्धाइये। उस उद्घातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। --नि. उ. १,गु. ३४ णव अयागराइसु आहार गहणस्स पायच्छित सुतं- नई लोहे आदि की खानों में आहार ग्रहण करने का प्रायश्चित्त सूत्र८६६ जे भिक्खू णवग-णिवेससि ८६६, जो भिक्षु नयी निवास की हुई . १. अयागरं सि गा. २. तंबागरंसि वा, (१) लोहे की. (२) ताबे की, ३. तउजागरंसि या ४. सोसागरंसि वा. (३) त्रपु को. (४) शीशे की, ५. हिरण्णागरसि था, ६. सुवष्णागरसि वा, (५) हिरण्य की (६) सोने की, ३. रयणागरंसि वा, ८. बहरागरंसि वा. (७) रत्नों की, (८) हीरों की खदानों में, अगुप्पविसित्ता असणं पा-जा-साइमं वा पडिग्याहेड पडि- प्रवेश करके अशन-यावत् - स्वाय लता है, लिवाता है. ग्गाहेतं वा साइज्जइ। देने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजह मासियं परिहारट्टाणं उग्याइयं । उसे उद्घातिवः मानिया परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है । -नि. इ. ५,सु. ३५
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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