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सूत्र ८६२८६४
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चर्या प्रविष्ट भिक्षु के कर्तव्य
कप मेरे आता एप अभिनिवार चारए ।
बेराय से विपज्जा एवं पं रुपए अभिनिवारिय चारए ।
येरा य से तो विमरेज्जा एवं गं नो कप्पइ एगयओ अभिनिचारियं चा
जे तत्थ थेरेहि अविद्दण्णे एगयओ अभिनिचारियं चरंति से सन्तरा छ वा परिहारे वा । ब. उ. ४. सु. १६ चारिया पट्टि भिक्युस्त किसचाई१३. चरियाट्टि मिक्सु जाव-घउराय पंचराधाओ मेरे पासेज्जा, सच्चैव आलोयणा, सच्चैव परिक्रमणा। सच्चेव भग्गहस्स पुष्यानुभवमा बिरुद्द दवि।
चरियापट्टि भिक्खू परं चउराय-पंचरावाओ मेरे पासेज्जा. पुचो आलोएम्ना. पुणो पदमा पुणो परिहार उवएज्जा ।
मावस अाए दोषिया ।
कप से एवं ए ''अणुजाणह भंते ! मिभोग्यहं अहालयं ध्रुवं नितियं निच्छ उट्टियं ।"
- वब. उ. ४, सु. २०-२१
नियम परे पुणो आलोएज्जा, पुणो पडिवकमेज्जा पुणो छेपपरिहारस्स उबट्टाएज्जा ।
भाव अाए लिया।
चारित्राचा एषणा समिति
करप से एवं वइसए—
"अगुजाण मंते 1 मिलोम्यहं अहालंदं ध्रुवं नितियं निच्छ बेट्टिय"
तओ पच्छा काय संफास |
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किन्तु रथविर माधुओं को पूछ लेने पर उन्हें एक साथ "अभिनितरिका" करना कल्पता है ।
यदि स्थविर साधु आज्ञा दें तो उन्हें "अभिनितरिका" करना कल्पता है ।
यदि स्थविर साधु आज्ञा न देतो उन्हें "अभिनिरिका" है ।
यदि वे स्थविरों से आज्ञा प्राप्त किये बिना "अभिनिचरिका" बरें तो वे दीक्षा छेद या परिहार प्रायश्वित के पात्र होते हैं। चर्या प्रविष्ट भिक्षु के कर्तव्य
८६३ चर्या में प्रविष्ट भिक्षु यदि चार पांच रात की अवधि में स्थविरों को देखे ( मिले) तो उन भिक्षुओं को वहीं आलोचना. नहीं प्रतिक्रमण और पर्वत रहने के लिए यहीं अवग्रह की
वह इस प्रकार प्रार्थना करें कि.
!
पुनः
"हे भदन्त । मित- अवग्रह में विचरने के लिए करूप अनुसार रहने के लिए नियमों के लिए दैनिक शिवकरने के लिए निराशा आने की या दोषों से निवृत्त होने की अनुज्ञा दीजिए 1 इस प्रकार कहकर वह उनके चरण का स्पर्श करें। चर्या निवृत्त भिक्षु के कर्त्तव्य
तओ का काय-संफासं । परियनियस पिचाई
४. परिणानि भिक्यू-न-उराय-पंधरावाओ मेरे ०२४. कोई शिशु पर्या से निवृत होने पर चार पांच रात की अवध में म्यधिरों को देखे (मि) तो उसे ही आपोचता यही प्रतिक्रमण और कल्प पर्यन्त रहने के लिए वहीं अवग्रह की पूर्वाखाना है.
सच्चेव आलोयणा, समय पहिया पुणप्रवणा चिgs महानंदमवि ओमहे ।
पूर्वानुज्ञा है
में प्रविष्ट भिक्षु यदि चारपाँच रात के बाद पत्रि को देखे ( मिले तो वह पुनः प्रतिक और च्छेद या परिहार प्रायश्वित्त में उपस्थित होवे ।
भभाव (संयम की गुरआ) के लिए उसे दूसरी बार अव ग्रह की अनुमति लेनी चाहिए।
यदि कोई भिक्षु affनगरिका से निवृत्त होने पर नार पाँच रात के बाद स्थविरों से मिले तो वह पुन. आलोचना, प्रतिक्रमण और दीक्षाच्छेद या परिहार प्रायश्चित्त में उपस्थित होये ।
fregara ( संयम ) की सुरक्षा के लिए उने दूसरी बार ग्रह की अनुमति लेनी चाहिए ।
-बब. उ. ४, सु. २२-२३ कहकर वह उनके चरणों का स्पर्श करे ।
वह इस प्रकार से प्रार्थना करे कि
"हे नदन्स ! मुझे मितावग्रह यथालन्द ध्रुव नित्य. औरत होने की अनुमति दीजिए।" इस प्रकार