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चारित्राचार
भिक्षाचरी में गया करने का निषेध
सूत्र ८६०-८६२
पिहियदुवार उन्धाऽविहिणिरोहो
ढके हुए द्वार को खोलने का विधि निषेध - १०. से भिक्खू वा, भिक्खूणो था गाहावतिकुलस्स दुवारवाहं ०. भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के गृहद्वार को कांटों की टाटी
कंटगोंदियाए पडिपिहितं पहाए तेसि पुख्वामेत्र जगह में ढका हुआ देखे तो पहले गृहल्वामी की आज्ञा लिए बिना. अण्ण्ण क्यि. अपडिलेहिय, अप्पमज्जिय णो अवंगुणेज वा, प्रति न किए बिना. और प्रमार्जन किये बिना ग्रहदार न खोल पविसेज्ज था।
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कार । तेसि पुवामेव उमाहं अपुण्णषिय पडिलेहिय पमज्जिय ततो पहले ही गृहस्वामी की आज्ञा लेकर प्रतिनबन कर और संजयामेव अजंगृणेज या, पसिसेज्ज वा ।
प्रमार्जन कर यतनापूर्वक गृहद्वार बोले और प्रवेश करे । - आ० पु. १.३०५. मु. ३५६ साणीपावारपिदिय अपमानावपंगुरे।
मुगि गृहपति की आज्ञा लिए, बिना सग या बस्त्र के पर्दे ग कवा नो पणोलेज्या. ओमहं से अजाहा ॥
उका द्वार स्वयं न बोले और किवाड़ भी, वोले । --दा. २.२. उ.?, गा. १८ भियसायरियाए मायाकरणिसेहो .
भिक्षाचरी में माया करने का निषेध६१. भिदखागा पामेगे एवरायु-समाणा या, असमाणा बा. ८६१. स्थिरवास रहने वाला अथवा मासबला आदि रहने वाला
गामाणुगा इज्जमाणे स्बुडाए खलु अयं गामे, संणिरुवाए. या घामानुग्राम विहार वारफे कही पहुँचने वाला कोई भिक्षु अन्य णो मनपराए से इंशा भांतारोवाहिरपाणि गामाणि भिक्खा- साधुओं से कहे "पूज्यवरो! यह गांव बहुत छोटा है, बहुत बड़ा यरियाए यवह।
नहीं है, उसमें भी कुछ पर सूतक आदि के कारण रुके हुए हैं।
इसलिए आप भिक्षावरी के लिए बाहर (दूपरे) गांवों में पधारें ।" संति तत्थेत्तियस्स ,भिरल्युग पुरेराथुया वा, पच्छासंथुया उम गांव में उस भेजने वाले मुनि के दुर्व-परिचित अथवा वा परिवसति, तं जहा-गाहावती वा-जाब-कम्भकरोओ वा, पश्चात् परिचित गृहपात –धावा -नौकरानियां रहते हैं। तहप्पगाराइ कुलाई पुरेसंधुयाणि वा, पच्छासंथुयाणि वा वह गाधु यह शोचे कि इन पूर्वपरिचित और पश्चात्पुब्बामेय भिक डायरियार अणुपविसिस्ताभि. अविय इत्थ परिचिन घरों में पहले ही भिक्षायं प्रवेश करके और अभीष्ट लभिस्सामि सालि था ओयणं वा, खीरं या, पहिं वा. रस्तु प्राप्त कर लूंगा जैसे कि-शाली. औदा आदि स्वादिष्ट गवणीत था, घयं वा. गुलं वा. तेल्वं वा, संकुलि बा. आहार. दूध, दही. नवनीत, वृत, गुड़, तेल, पुडी, मालपुए. फाणित दा. पूर्व वा, सिहरिणि वा तं पुण्यामेव भोल्या जिपरिणी आदि और उम आहार को मैं पहले ही खा पीकर पिच्चा पदिगई संलिहियं संभज्जिय ततो पच्छा भिक्खूहि पात्रों को धो-पाटकर माफ कर लूंगा। इसके बाद आगन्तुक सरि गाहावति कुन्वं पिंडवातपटियाए पविस्सामि । भिक्षुओं के साल आहार-प्राप्ति के लिए गृहस्थ के घर में प्रदेश
करूंगा। माइट्टाणं संफासे. पी एवं फरेज्जा ।
टस : कार का व्यवहार करने वाला भिक्षु कपट का सेवन
करता है । अतः भिक्षु ऐसा नहीं करे । से तत्व भिक्खूहिं सदि कालेण अणुपविसित्ता तत्थितरातिय साधु को वहां पर भिक्षुओं के माथ भिक्षा के समय में ही रेहि फुलेहि सामुदाणियं एसित्तं देखि पिंडवात पडिगाहेता भिक्षा के लिये प्रवेश कर विभिन्न कुलों से सामुदानिक, एषणीय आहारं आहारेजा।
क साधु के वेय से प्राप्त निर्दोष भिक्षा ग्रहण करके आहार --आ. सु. २, अ. १. उ. ४. सु. ३५० करना नाहिये। अभिनिचारिका गमाधिष्क्षि गिसेहो -
अभिनिरिका में जाने के विधि-निषेध-. ८६२. बहवे साहम्मिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिचारिय चारए, १२. अनेक सार्मिक साधु एक साथ "अभिनिचरिका" करना
नो णं कापड थेरे अणापुसिछता एगयो अभिनिधारियं चाहें तो -स्थविर साधुओं को पूछे बिना उन्हें एक साथ "बभिचारए।
नियरिका" करना नही कल्पता है।